शतावरी मुख्यत: सर्दियों का पौधा है। इसलिए जिस क्षेत्र में ज्यादा ठंड पड़ती हो वहां इसे लगाया जा सकता है। इसकी रोपाई बसंत ऋतु में की जाती है। इसके पौधे 23 से 30 ए सेल्सियस तक तापमान सह सकते हैं। लेकिन ध्यान रखें ज्यादा कम या उच्च तापमान दोनों पौधों की वृद्धि को प्रभावित कर सकता है।
शतावरी की खेती के लिए मुख्यत: दोमट, चिकनी दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी गई है। इसके साथ ही मिट्टी का पीएच मान 6-8 होना उपयुक्त होता है।
शतावरी की खेती के लिए सबसे पहले खेत को गहरी हल से जोताई कर लेनी चाहिए। इसके बाद इसमें पंक्तियों से 10-12 सेमी गहराई तक 1/3 नाइट्रोजन, फॉस्फेट , तथा पोटाश की पूर्ण खुराक डाल देना उपयुक्त होता है।
शतावरी के खेतों को खरपतवार से बचाने के लिए समय-समय पर निंदाई गुड़ाई करते रहना चाहिए। अन्यथा मिट्टी से खरपतवार पोषक तत्वों को सोखकर पौधों की बढ़वार रोक देते हैं। जिससे पौधों का विकास प्रभावित होता है।
शतावरी की खेती के लिए एक हेक्टेयर के लिए लगभग 7 किलो बीज उपयुक्त होगा।
शतावरी के बीजों में डेढ़ महीने के आसपास पौधे निकलने शुरू हो जाते हैं। यदि आप नर्सरी में इसके बीजों का रोपण कर रहे हैं तो डेढ़ महीने के बाद मानसून की शुरूआत के साथ ही इसे खेतों में लगा दें।
इसके पौधों को सहारे की जरूरत होती है। अत: खंभे या लकड़ी से इसे सहारा देकर रखना पड़ता है।
शतावरी के पौधों को रोपण के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिए। इसके बाद आप सप्ताहभर के बाद सिंचाई करें तो बेहतर होगा। लेकिन ध्यान रखें यदि पखवाड़े भर तक बारिश न हो और खेतों में नमी की कमी दिखाई दें तो सिंचाई अवश्य करते रहें।
9.फायदा
शतवारी में कैलोरी, प्रोटीन, फाइबर, विटामिन ए, के, ई , पोटेशियम, फॉस्फोरस, आदि पाये जाते हैं। जिस वजह से यह स्वास्थ के लिए बहुत ही लाभदायक है। इसके अलावा शतावरी खाने से वजन घटाने में, दिल की बीमारियों से बचाव में, माइग्रेन के कारण होने वाले दर्द से भी छुटकारा, अनिंद्रा से मुक्ति, रीढ़ की हड्डी संबंधी समस्या, मानसिक समस्याओं से बचाव में मदद मिलती है।