खराब मौसम एवं बारिश के कारण फसलों पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है जिसके कारण फसलों में विभिन्न प्रकार के कीट, पतंगों एवं रोगों का प्रकोप पडने की समस्या आ रही है। जिसका प्रबंधन समय में किया जाना अति आवश्यक है। धान फसल में मुख्य रूप से तना छेदक एवं माहू की समस्या आ रही है। धान के तनाछेदक कीट के नियंत्रण के लिए क्लोरोसाईपर की 300 मि.ली. प्रति एक? की दर से या फोरेट 10 प्रतिशत दानेदार की 4-5 किलो ग्राम प्रति एकड़ की दर से प्रभावित क्षेत्र में किसान छिड़काव कर सकते हैं। इसी प्रकार भूरा माहू से प्रभावित क्षेत्र में इमीडा क्लोप्रीड 17.8 प्रतिशत लिक्विड की 40-50 मि.ग्रा. मात्रा को 250 ली. पानी में घोल बनाकर प्रति एकड़ की दर से छिड़काव किया जा सकता है।
इसके अलावा धान फसल में कीट व्याधि के साथ-साथ बीमारी का भी प्रकोप हो रहा है। जिनमें से धान में ब्लास्ट रोग प्रमुख रोग है, जिसमें बाली निकलने के दौरान लक्षण दिखाई देने पर ट्राईसाईक्लाजोन 75 प्रतिशत की 120 ग्राम के दर से प्रति एकड़ में या कार्बेंडाजिन 50 प्रतिशत की 15-20 ग्रा. मात्रा को 15 ली. पानी में घोलकर निरंतर अंतराल में छिड़काव करें। लीफ ब्लाईट के लक्षण दिखाई देने पर प्रोपेकोनाजोल की 20 मि.ग्रा. की मात्रा को 15-20 ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें, जिन क्षेत्रों में जिंक की कमी के कारण धान पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बन रहे हैं, वहां पर जिंक सल्फेट 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर करें।
सोयाबीन फसल में गेरूवा रोग के कारण पत्तियों की निचली सतह पर हल्के पीले, भूरे या लाल रंग के धब्बे बनते है जिसके रोकथाम के लिए फफूंद नाशक प्रोपिकोनाजोल का 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर 8-10 दिन के अंतराल में छिड़काव कर सकते हैं।