जामुन की खेती… व्यापारिक लाभ वाली
जामुन खाने में स्वादिष्ट होने के साथ ही कई औषधीय गुण भी लिए हुए है। जामुन अम्लीय प्रकृति का फल है पर यह स्वाद में मीठा होता है. जामुन में भरपूर मात्रा में ग्लूकोज और फ्रुक्टोज पाया जाता है। जामुन में लगभग वे सभी जरूरी लवण पाए जाते हैं जिनकी शरीर को आवश्यकता होती है। जामुन का वृक्ष सदाबहार होता है। इसे हिंदुस्तान में देशी फसल के नाम से जाना जाता है। इसकी खेती इंडोनेशिया, फिलीपींस, भारत , म्यांमार, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में होती है। भारत में जामुन की खेती ज्यादातर गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आसाम और तमिलनाडु राज्यों में होती है। तो चलिए आज हम बात करते हैं जामुन की खेती के बारे में…

1. फायदे

जामुन में औषधीय गुण होने के कारण इसके फल और बीज दोनों उपयोगी होते हैं। जामुन की बीज को सूखा के और पीस के दही के साथ खाना चाहिए। इससे मधुमेह, पथरी, खूनी दस्त, दांत और मसूड़ों की समस्याओं, पाचन क्रिया की समस्याएं दूर हो जाती हैं। पाचन क्रिया के लिए जामुन बहुत फायदेमंद होता है. जामुन खाने से पेट से जुड़ी कई तरह की समस्याएं दूर हो जाती हैं. मधुमेह के रोगियों के लिए जामुन एक रामबाण उपाय है. जामुन के बीज सुखाकर पीस लें. इस पाउडर को खाने से मधुमेह में काफी फायदा होता है. मधुमेह के अलावा इसमें कई ऐसे तत्व पाए जाते हैं जो कैंसर से बचाव में कारगर होते हैं. इसके अलावा पथरी की रोकथाम में भी जामुन खाना फायदेमंद होता है. इसके बीज को बारीक पीसकर पानी या दही के साथ लेना चाहिए।  

2. जलवायु

जामुन की खेती किसी भी क्षेत्र में की जा सकती है। लेकिन ध्यान रखें इसकी खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जलवायु वाली जगह सर्वोत्तम होती है। भारत में इसकी खेती ठंडी जगहों को छोड़कर कहीं भी की जा सकती है। क्योंकि इसे पेड़ और फल पाला को सहन नहीं कर सकते और नुकसान पहुंच सकता है। इसके अलावा बेहद गर्म मौसम भी इसके लिए उपयुक्त नहीं होता है।

3. मिट्टी

वैसे तो जामुन की खेती के लिए किसी खास किस्म की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन इसके पेड़ काफी सख्त होते हैं, इसलिए पुअर, सोडिक, नमकीन, चूने वाली और दलदली मिट्टी में उगाएं तो बेहतर होगा। और यदि आप इसकी व्यापारिक खेती करना चाहते हैं तो जल निकासी की अच्छी सुविधा वाली दोमट मिट्टी सबसे बेहतर है। लेकिन ध्यान रखें इसका पीएच मान 5 से 8 के बीच होना चाहिए।

4. किस्में

राजा जामुन, सी.आई.एस.एच. जे-45, री जामुन, कोंकण भादोली, गोमा प्रियंका, काथा, भादो, सी.आई.एस.एच. जे-37, नरेंद्र 6, जत्थी और राजेन्द्र 1 जामुन की उन्नत किस्में हैं। इसकी खेती फायदेमंद होती है और अच्छा मुनाफा भी मिलता है।

5. पौधरोपण का समय

जामुन के पौधों को बारिश के मौसम में लगाना बेहतर होता है। बरसात से पहले इसे मध्य फरवरी से मार्च के अंत तक उगाया जाता है।

6. सिंचाई

जामुन के पौधरोपण के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद गर्मियों में हफ्ते में एक बार और सर्दियों में 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करते रहना चाहिए।

7. उर्वरक

पौधों को गड्डों में लगाने से पहले गड्डों में 10-15 किलो पुरानी सड़ी गोबर या वर्मी कम्पोस्ट को मिट्टी में मिलाकर भर दें। इसके अलावा हर पौधे को 100 ग्राम एन.पी.के. साल में 3 बार देना चाहिए।

8. खरपतवार से बचाव

जामुन के पौधों को खरपतवार से बचाने निंदाई गुड़ाई अवश्य करना चाहिए। अन्यथा खरपतवार मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्वों को सोख लेते हैं और पौधों की बढ़वार प्रभावित हो सकती है। इसलिए समय समय पर खरपतवार से नियंत्रण के उपाय करते रहना चाहिए।

9. रोग व कीटों से बचाव

जामुन के पौधों में पत्ता जोड़ मकड़ी की रोकथाम के लिए एकत्रित हुई पत्तियों को तोड़कर हटा देना चाहिए और उचित मात्रा में क्लोरपीरिफॉस या इंडोसल्फान का छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा यदि पत्ती झुलसा के लक्षण दिखाई दें तो  रोकथाम के लिए पौधों पर उचित मात्रा का एम-45 की छिड़काव करना चाहिए। यदि पौधों में पोषक तत्व की कमी की वजह से फल और फूल झर रहे हों तो इनकी रोकथाम के लिए उचित मात्रा का जिब्रेलिक एसिड का छिड़काव करें।

10. फल तोड़ाई

पौधरोपण के 8 से 10 बाद जामुन का पेड़ तैयार हो जाता है और फल आने लगते हैं. फल फूल खिलने के डेढ़ से दो महीने बाद पकते हैं और बैंगनी काले रंग के हो जाते हैं। ध्यान रहें फलों को पकने के लिए बारिश अच्छा होता है। इसके फलों को रोज तोडऩा चाहिए जिससे वो जमीन पर न गिरे। जमीन पर गिरने से फल खऱाब भी हो सकते है।

11. उपज

एक पूर्ण विकसित पेड़ से लगभग 80 से 90 किलो जामुन प्राप्त हो जाते हैं। और मौसमी फल होने के चलते इसका बाजार में अच्छा दाम भी मिलता है। इसलिए इसकी खेती फायदेमंद होती है।

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