बीज और मिट्टी जनित रोगों से फसल को बचाने के लिए बीजोपचार जरूरी
बीज और मिट्टी जनित रोगों से फसल को बचाने के लिए बीजोपचार जरूरी

बीज अनेक रोगाणु जैसे-कवक, जीवाणु, विषाणु व सूत्रकृमि आदि के वाहक होते हैं, जो भंडारित बीज एवं खेत में बोये गये बीज को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे बीज की गुणवत्ता एवं अंकुरण के साथ-साथ फसल की बढ़वार, रोग से लडऩे की क्षमता, उत्पादकता एवं उत्पादन पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है। इसलिये बीज भंडारण के पूर्व अथवा बोवाई के पूर्व जैविक या रासायनिक अथवा दोनों के द्वारा बीज का उपचार किया जाना चाहिए।

बीजोपचार विभिन्न माध्यम से किया जाता है। बीजोपचार ड्रम में बीज और दवा डालकर ढक्कन बंद करके हैंडल द्वारा ड्रम को 5 मिनट तक घुमाया जाता है। इस विधि से एक बार में 25-30 किलो ग्राम बीज उपचार किया जा सकता है। बीजोपचार ड्रम कृषि विभाग के माध्यम से अनुदान में अथवा कृषि सेवा केन्द्र से प्राप्त किया जा सकता है।

बीज उपचार की पारम्परिक विधि घड़ा विधि है। इस विधि से बीज और दवा को घड़ा में निश्चित मात्रा में डालकर घड़े के मुंह को पॉलीथीन से बांधकर 10 मिनट तक अच्छी तरह से हिलाया जाता है। थोड़ी देर बाद घड़े का मुंह खोलकर उपचारित बीज को अलग बोरे में रखा जाता है। बीज उपचार की अन्य विधि प्लास्टिक बोरा विधि है। इस विधि में बीज और दवा को डालकर बोरे के मुंह को रस्सी से बांध दिया जाता है और 10 मिनट तक अच्छी तरह हिलाने के बाद जब दवा की परत बीज के ऊपर अच्छी तरह लग जाये तब बीज को भंडारित अथवा बुआई की जाती है।

बीजोपचार के लाभ
बीज एवं मृदा जनित रोग जैसे- ब्लास्ट, फाल्सस्मट उकटा, जड़ गलन आदि बीमारी से फसल प्रभावित नहीं होती है। बीजोपचार करने से बीज के उपर एक दवाई की परत चढ़ जाती है जो बीज को बीज अथवा मृदा जनित सूक्ष्म जीवों के नुकसान से बचाती है। बीज की अकुंरण क्षमता को बनाये रखने के लिये बीजोपचार जरूरी होता है, क्योंकि बीज उपचार करने से कीड़ों अथवा बीमारियों का प्रकोप भंडारित बीज में कम होता है। बुआई पूर्व कीटनाशी से बीज का उपचार करने पर मृदा में उपस्थित हानिकारक कीटों से बीज की सुरक्षा होती है। उपचारित बीज की बुआई करने से बीज की मात्रा कम लगती है एवं बीज स्वस्थ्य होने के कारण उत्पादकता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है।