टमाटर में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज पदार्थ, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन, नकोटेनिक अम्ल आदि प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। सब्जियों के अलावा टमाटर का सूप, सलाद, चटनी, सॉस भी बनता है, जिसकी वजह से किसानों के लिए टमाटर काफी मुनाफे वाली फसल साबित होती है। साथ ही ये काफी लोकप्रिय सब्जी होने के कारण पूरे देश में इसका उत्पादन हर क्षेत्र में किया जाता है।
टमाटर के फलों के लिए औसत तापमान 18 से 27 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि 10 डिग्री सेल्सियस से नीचे टमाटर में लाल और पीला रंग बनना बंद हो जाता है, और 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर भी लाल रंग बनना कम हो जाता है। इसलिए टमाटर के लिए उपयुक्त जलवायु का खास ध्यान रखना चाहिए।
टमाटर के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त है। लेकिन इसमें जैविक पदार्थ की अधिक मात्रा एवं पानी के निकास का उचित प्रबंध इसके लिए जरूरी है। टमाटर की खेती के लिए खेत को कम से कम 3 से 4 बार अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए।
टमाटर की खेती के लिए उर्वरकों का प्रयोग मिट्टी के आधार पर किया जाना चाहिए। अन्यथा टमाटर की गुणवत्ता प्रभावित हो सकती है। अगर मिट्टी का जांच संभव न हो तो उस स्थिति में प्रति हेक्टेयर नेत्रजन-100 किलोग्राम, स्फूर-80 किलोग्राम तथा पोटाश-60 किलोग्राम की दर से डालना चाहिए। जब फूल और फल आने शुरू हो जाए, उस स्थिति में 0.4-0.5 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव करना चाहिए। लेकीन सांद्रता पर जरूरी ध्यान दें।
टमाटर की फसलों में कीट नियंत्रण बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि फसलों को नष्ट कर देता है। इसमें फलछेदक टमाटर का सबसे बड़ा शत्रु है। इसलिए इस नियंत्रण आवश्यक है। इसके अलावा इसमें हरे रंग के छोटे-छोटे कीट भी होते हैं, जो पौधों के रस चूस लेते हैं। इसलिए इस पर नियंत्रण आवश्यक है। इसके अलावा सफेद मक्खियों से टमाटर की फसलों की रक्षा जरूरी है।