हमारे देश में प्राय: हर प्रकार के पेड़-पौधों का किसी ना किसी रूप में औषधीय इस्तेमाल होता है। लेकिन यदि हम बात करें अश्वगंधा की तो इसके औषधीय गुण तो सभी जानते हैं। अश्वगंधा या असगंधा का वानस्पतिक नाम वीथानीयां सोमनीफेरा है। अश्वगंधा का इस्तेमाल गठिया रोग, त्वचा की बीमारियां, फेफड़े में सूजन, पेट के फोड़ों तथा मंदाग्निका के उपचार में किया जाता है। वहीं जड़ों का उपयोग कमर के दर्द निवारण के लिए भी किया जाता है। अश्वगंधा की फसल को 50 से 60 प्रतिशत तक मुनाफा वाला माना जाता है। अश्वगंधा के लिए नीमच (मध्य प्रदेश), अमृतसर (पंजाब), खारी बावली (दिल्ली), पंचकूला (हरियाणा) और सीतामढ़ी (बिहार) में मंडी उपलब्ध है। वहीं अश्वगंधा की खासियत यह है कि यह सिंचित और असिंचित दोनों ही प्रकार की स्थिति में की जा सकती है। ऐसी भूमि जहां अन्य फसलें न ली जा सके वहां इसकी खेती काफी लाभदायक है। तो चलिए आज आपको बता रहे हैं अश्वगंधा की खेती के बारे में…
मिट्टी
अश्वगंधा की खेती के लिए किसी विशेष प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इसकी खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन पौधों के विकास के लिए जमीन में अच्छी नमी और मौसम शुष्क होना चाहिए। अश्वगंधा को सिंचित और असिंचित दोनों ही स्थितियों में उगाया जा सकता है।
खेत की तैयारी
अश्वगंधा की खेती के लिए वर्षा से पहले खेत को अच्छे से जुताई कर लेनी चाहिए। यदि आप 2 से 3 बार जुताई करते हैं मिट्टी अच्छी भुरभुरी हो जाएगी। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि यदि बोआई के समय वर्षा न हो रही हो तो मिट्टी में नमी बरकरार रहे। सिंचित फसल की बोआई करते समय कतार से कतार 30-35 सेंटीमीटर की दूरी और पौधों से पौधों की दूरी अधिकतम 10-12 सेंटीमीटर रख सकते हैं। बुआई के बाद बीज को मिट्टी से अच्छी तरह ढक दें।
जलवायु
अश्वगंधा एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल होने के साथ-साथ यह नकदी फसल भी है। अश्वगंधा ठंडे क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी स्थानों में पाया जाता है। इसलिए इसकी खेती मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग व राजस्थान में बहुतायत में होती है। राजस्थान के नागौरी जिले का अश्वगंधा एक अलग ही पहचान के साथ जाना जाता है।
रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करें
अश्वगंधा की बोआई करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि इसका उपयोग औषधि निर्माण में किया जाता है। इसलिए रासायनिक खाद का प्रयोग ना करें। हां, इतना अवश्य है कि बोआई से पहले इसमें उपयुक्त मात्रा में नाईट्रोजन का उपयोग कर सकते हैं, इससे फसल अच्छी होती है।
सिंचाई
वैसे तो अश्वगंधा को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन सिंचित खेती करते समय महीने में दो बार आप 15-15 दिनों का अंतराल रखते हुए सिंचाई कर सकते हैं। वहीं यदि वर्षा हो रही हो तो पानी की आवश्यकता नहीं होगी। लेकिन वर्षा ना हो तो सिंचाई 15-15 दिनों में करते रहे। ध्यान रखें अधिक वर्षा अथवा सिंचाई से फसल को हानि हो सकती है।
खरपतवार से सुरक्षा
हर फसल की भांति इसमें भी खरपतवार की संभावना बनी रहती है। खरपतवार हर फसल के साथ उग आते हैं और मिट्टी से भरपूर पोषक तत्वों का उपयोग कर पौधों के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए समय-समय पर खरपतवार की निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।
अश्वगंधा के रोग
अश्वगंधा के पौधों की जड़ों निमेटोड और पत्तियों में सडऩ की बीमारी देखी जाती है। इसलिए जड़ों को निमेटोड से बचाने फ्यूराडान का प्रयोग बोआई के समय करें। वहीं पत्ती की सडऩ और लीफ स्पाट से बचाने बीज को उपचारित करके बोना चाहिए।
खोदाई
अश्वगंधा की फसल 150 या 160 दिनों में तैयार हो जाते हैं। इसकी पत्तियों को ध्यान से देखें यदि ये पीले हो गए हों तो फसल की खोदाई कर लेनी चाहिए। इसके बाद इसे रखने की जगह साफ-सुथरा हो ताकि दीमक आदि कीट ना लगे।
50 से 60 प्रतिशत तक मुनाफा देने वाली नकदी फसल है अश्वगंधा…जानें इसकी खेती के बारे में
