वन भूमि में वर्षो से काबिज लोंगों को वनाधिकार पत्र मिलने से अनेक गरीब परिवारों की जिंदगियां संवर गई हैं। पहाड़ों और जंगलों से घिरे उत्तर बस्तर कांकेर जिले में 12 हजार 883 लोगों को लगभग 4339.115 हेक्टेयर भूमि का व्यक्तिगत वनाधिकार पट्टा प्रदान किया गया है। इसके साथ ही 04 हजार 854 सामुदायिक वनाधिकार पट्टे के तहत लगभग 179449.810 हेक्टेयर भूमि लोगों को प्रदान की गई है। इसी प्रकार 145120.733 हेक्टेयर भूमि का 338 वन संसाधन हक भी वितरण किया गया है। इन्हीं खुशनसीब लोगों में से एक नरहरपुर विकासखण्ड के ग्राम देवगांव के किसान श्री खम्मनसिंह हैं, जिनके जीवन में वनअधिकार पत्र मिलने से बड़ा बदलाव आया है।
श्री खम्मनसिंह नेताम के बताया कि उनके पिता पहले छोटे झाड़ के जंगल की जमीन पर खेती करते थे, इसी 1.02 हेक्टेयर भूमि का वनाधिकार पट्टा उन्हें प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा कि जमीन का पट्टा मिलने से अब उन्हें बेदखली का भय नही है। अब बिना चिंता के वह खेती कर रहे हैं। उन्होंने अब आधुनिक खेती शुरू करना शुरू कर दिया है। वे दो फसली खेती करने लगे है, जिससे उनकी आमदनी में वृद्धि हुई है। पिछले साल उन्होंने खरीफ एवं रबी फसल का लगभग 70 हजार रूपये का धान विक्रय किया है।
श्री खम्मनसिंह ने जमीन में रोजगार गारण्टी योजना के तहत 02 लाख 30 हजार रूपये की लागत से डबरी निर्माण कराया है और लगभग 01 लाख रूपये खर्च कर नलकूप खनन भी करवाया है, इससे फसल की सिंचाई करने में मदद मिल रही है। सिंचाई की सुविधा हो जाने से अब वे जमीन में सब्जी उत्पादन भी करने लगे हैं। उपयोग के बाद बची सब्जियों का वह विक्रय करते हैं। उन्होंने खेत के मेड़ पर अरबी, केला और देसी सब्जियां लगायी है, जिससे आमदनी में वृद्धि हो रही है। उन्होंने डबरी में मछली पालन के लिए मृगल, रोहू और कतला मछलियों का बीज डाला है। मछलियां अब बढ़कर बिक्री करने लायक हो गई है, उन्हे विश्वास है कि मछलियों के बेचने से भी उन्हें अच्छी आमदनी प्राप्त होगी।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा किसानों के हित में किये जा रहे कार्यों के प्रति आभार प्रकट करते हुए खम्मनसिंह ने बताया कि उनके द्वारा खेती-किसानी के लिए कर्ज लिया गया था, जिसे राज्य सरकार द्वारा माफ कर दिया गया है। उन्हें सहकारी समिति के माध्यम से खाद एवं बीज भी कर्ज के रूप में प्राप्त हुआ है। उन्होने कहा कि जमीन का मालिकाना हक वनाधिकार मान्यता पत्र मिलने से उनके परिवार के भरण-पोषण की चिंता दूर हो गई है।
वन अधिकार पत्र बना वरदान… चिंतामुक्त हो आधुनिक कृषि की ओर बढऩे लगे किसान
छत्तीसगढ़ शासन द्वारा वन भूमि में कई वर्षों सें काबिज होकर खेती करने वाले किसानों को वन अधिकार मान्यता पत्र प्रदान करने की महत्वाकांक्षी योजना राज्य के अनेक भूमिहीन तथा गरीब ग्रामीण लोगों के लिए सहारा बन गया है। शासन की इस योजना के परिणामस्वरुप अनेक जरूरतमंद लोग जिनके पास खेती के लिए या तो बिल्कुल भी भूमि नहीं है या फिर बहुत कम भूमि है उनमें अपने भविष्य को लेकर एक नई आशा का संचार हुआ है। वन अधिकार पट्टा मिलने से वे बहुत खुश हैं। अब वे जमीन से बेदखली की चिंता से मुक्त हो चुके हैं और आधुनिक तरीके से खेती कर आत्मनिर्भर बनने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
राज्य के कांकेर जिले के दुर्गूकोंदल विकासखण्ड के ग्राम सुरूगदोंह निवासी 50 वर्षीय किसान दुकालूराम और 60 वर्षीय किसान जयदेव ने बताया कि वर्षों से काबिज जमीन पर खेती करते आ रहे थे, लेकिन सरकारी रिकार्ड में वन विभाग की जमीन होने के कारण उन्हें बेदखली का हमेशा से भय बना रहता था। ग्राम सुरंगदोह में दुकालूराम को 4.38 हेक्टेयर और जयदेव आरदे को 4.65 हेक्टेयर जमीन का वनाधिकार पट्टा मिला है। महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अंतर्गत कृषक दुकालूराम और जयदेव के खेत का समतलीकरण और तालाब निर्माण का कार्य किया गया है, साथ ही सौर ऊर्जा का लाभ भी दिया गया है। उनके द्वारा खरीफ व रबी दोनों सीजन में धान एवं मक्का की खेती की जा रही हैं। इसके अलावा उ?द, मूंग, रागी और खेत के मेड़ों में अरहर की फसल ली जाती है। तालाब में मछली पालन भी किया जा रहा है। दुकालूराम एवं जयदेव ने बताया कि रबी सीजन में उनके द्वारा 2-2 हेक्टेयर में मक्का फसल प्रदर्शन भी लिया गया था, जिसमें कृषि विभाग के अधिकारियों का सराहनीय सहयोग रहा।