Lauki
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लौकी की व्यावसायिक खेती

सब्जियों में लौकी की अपनी अलग ही पहचान बनी हुई है। लौकी से कई प्रकार की सब्जियों के साथ ही रायता, कोफ्ता, हलवा व खीर भी बनाई जाती है। इसके अलावा लौकी का उपयोग आजकल जूस निकालने में भी होने लगा है। क्योंकि पौष्टिकता और औषधीय से भरपूर लौकी हर किसी की प्रिय होती है। यह कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने में बहुत फायदेमंद है। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व खनिजलवण के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं। तो चलिए आज हम बात करते हैं लौकी की व्यावसायिक खेती के बारे में…

जलवायु
वैसे तो लौकी की खेती हर क्षेत्रों में की जाने लगी है। लेकिन हम आपको बताते हैं लौकी की खेती अच्छी पैदावार के लिए गरम व आर्द्रता वाली जलवायु सबसे उपयुक्त है। इसे जायद व खरीफ दोनों मौसमों में आसानी से उगाई जाती है। इसलिए लौकी की फसल के लिए मौसम का खास ध्यान रखना जरूरी है।

मिट्टी
वैसे तो आजकल लौकी की खेती के लिए हर प्रकार की मिट्टी का आने लगी है। लेकिन बलुई, दोमट तथा जीवांश युक्त चिकनी मिट्टी में इसकी खेती बहुत ही अच्छी होती है। इसके अलावा आप ऐसे मिट्टी में भी इसकी फसल ले सकते हैं, जिसमें पानी सोखने की क्षमता अधिक हो।

तैयारी
लौकी की फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए। इसके बाद 2 से 3 जुताई देशी हल से करें। लेकिन ध्यान रखें हर जुताई के बाद खेत में पाटा चलाकर मिट्टी भुरभुरी कर लें, ताकि सिंचाई के समय पानी का लेबल सही रहे।

बीज की मात्रा व उर्वरक
लौकी के अच्छी फसल के लिए उपयुक्त मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग जरूरी है। यानी अच्छी उपज हेतु 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 35 किलोग्राम फास्फोरस व 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से उर्वरक का प्रयोग कर सकते हैं। यदि आप लौकी की सीधी बोआई करते हैं तो ढाई से तीन किलो बीज एक हेक्टेयर के लिए पर्याप्त है। लेकिन यदि आप नर्सरी उत्पादन करते हैं, तो प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम बीज ही काफी होता है।

बुआई का समय और विधि
लौकी की बुआई के लिए फरवरी और जून-जुलाई का मौसम उपयुक्त होता है। लेकिन पहाड़ी इलाकों में आप मार्च-अप्रैल में इसे बो सकते हैं। लौकी की बुआई यदि आप गर्मी में करते हैं तो ढाई से तीन मीटर व बारिश में साढ़े 4 मीटर की दूर पर 50 सेंटीमीटर चौड़ी व 20 से 25 सेंटीमीटर गहरी नालियां बना लें। इसके दोनों किनारे पर गरमी में 60 से 75 सेंटीमीटर व बारिश में 80 से 85 सेटीमीटर फासले पर बीजों की बोआई करेंं।

सिंचाई
वैसे तो लौकी को खरीफ मौसम में खेत की सिंचाई करने की जरूरत नहीं होती, लेकिन यदि बारिश नहीं हो रही है तो एक पखवाड़े में सिंचाई करनी चाहिए यानी सिंचाई के लिए 10 से 15 दिन उपयुक्त है। लेकिन गरमी में ज्यादा तापमान होने पर 4 से 5 दिनों के फासले पर सिंचाई करना जरूरी है।

कीट नियंत्रण
लौकी के फसलों पर कीट नियंत्रण के उपाय बहुत जरूरी होते हैं। नहीं तो उत्पादन पर प्रभाव पड़ता है। लौकी में सूंडी पौधों की छोटी पत्तियों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट के अधिक आक्रमण से पौधे पत्ती रहित हो जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए सुबह ओस पडऩे के समय राख का बुरकाव करें। इससे प्रौढ़ कीट पौधों पर नहीं बैठते हैं, जिससे नुकसान कम होता है। इसके अलावा फल मक्खी भी इस लौकी के लिए नुकसानदेय है। ये फलों के अंदर का भाग खा कर खत्म कर देते हैं। कीट फल के जिस भाग पर अंडे देते हैं, वह भाग वहां से टेढ़ा हो कर सड़ जाता है। इसलिए इसका रोकथाम करना चाहिए।

इसके साथ ही लौकी की फसलों में एक विशेष प्रकार का रोग भी लगता है। इसकी शुरुआत में पत्तियों और तनों पर सफेद या धूसर रंग पाउडर जैसा दिखाई देता है। कुछ दिनों के बाद ये धब्बे चूर्ण भरे हो जाते हैं और इसके अधिक प्रकोप के कारण पौधे जल्दी बेकार हो जाते है। फलों का आकार छोटा रह जाता है। इसके अलावा लौकी की फसल में अन्य प्रकार कीट भी लगते हैं, जिसकी समय-समय पर विशेषज्ञों से राय लेकर उपचार करते रहना चाहिए, ताकि लौकी के फसल का उत्पादन भी भरपूर हो और मुनाफा ज्यादा से ज्यादा हो सके।

लौकी की फसल से एक साल में 1.60 लाख प्रति एकड़ कमाई…

कुरूशनार के कृषक अब शासन की राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ लेकर आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हो रहे हैं और अपने जीवन स्तर को बेहतर बनाकर बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। कुरूषनार के ऐसे ही कृषक लखेश्वर पिता सनकेर जो पूर्व में अपनी पूर्वजों की सवा एकड़ भूमि पर परम्पारिक तरीके से खेती-किसानी का काम करते थे। उनकी मेहनत और लगन को देखकर उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने उन्हें शासन की योजनाओं का लाभ लेकर खेती-किसानी करने की सलाह दी। उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों की सलाह पर कृषक लखेवर ने अपनी सहमति देकर उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों के मार्गदर्शन में कार्य प्रारंभ किया।

उद्यानिकी विभाग के सहायक संचालक ने जानकारी देते हुए बताया कि कृषक लखेश्वर के खेत में शासन की मनरेगा येाजनान्तर्गत भूमि समतलीकरण का कार्य किया गया है। समतलीकरण पश्चात उद्यान विभाग द्वारा उसके खेत में ड्रिप, शेडनेट हाउस आदि का लाभ दिया गया है। जिसमें उच्चगुणवत्ता वाले बीज उत्पादन हेतु कृषक लखेश्वर से अनुबंध किया गया है। कृषक लखेश्वर ने बताया कि उसे इस वर्ष लौकी की खेती करने से उसे 1 लाख 60 हजार प्रति एकड लाभ प्राप्त हुआ है। वर्तमान में उसने अपने खेत में करेला की फसल लगायी है, जिससे दो से ढाई लाख रूपये प्राप्त होने की उम्मीद है। सब्जी की खेती से कृषक की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है। जिससे आसपास के किसानों को शासन की योजनाओं का लाभ लेने की प्रेरणा मिलेगी और उनके जीवन स्तर में बदलाव आयेगा।