धान की फसलों को रोगों से बचाना बेहद जरूरी
धान की फसलों को रोगों से बचाना बेहद जरूरी

कृषि विभाग ने खरीफ फसलों की देखभाल एवं बेहतर उत्पादन के लिए किसानों भाईयों को सम सामयिक सलाह दी है। धान की फसल में जहां कन्से निकलने की अवस्था आ गई हो वहां नत्रजन की दूसरी मात्रा का छिड़काव करने की सलाह किसानों दी गई है। इससे धान के कन्से की स्थिति में सुधार आएगा। फसल में कीट या खरपतवार होने की स्थिति में दोनों को नियंत्रित करने के बाद ही प्रति हेक्टेयर 40 किलो यूरिया के छिड़काव सलाह दी गई है।

 कृषि विभाग के अधिकारियों ने धान फसल के प्रारंभिक गभोट अवस्था में मध्यम एवं देर अवधि वाले धान फसल के 60-75 दिन के होने पर नत्रजन की तीसरी मात्रा का छिड़काव करने को कहा है। पोटाश की सिफारिश मात्रा का 25 प्रतिशत भाग फूल निकलने की अवस्था पर छिड़काव करने से धान के दानों की संख्या और वजन में वृद्धि होती है। धान फसल पर पीला तना छेदक कीट के वयस्क दिखाई देने पर तना छेदक के अण्डा समूह हो एकत्र कर नष्ट करने के साथ ही सूखी पत्तियों को खींचकर निकालने की सलाह दी गई है। तना छेदक की तितली एक मोथ प्रति वर्ग मीटर में होने पर फिपरोनिल 5 एससी एक लीटर प्रति दर से छिडकाव करने की सलाह कृषकों को दी गई है। पत्ती मोडक (चितरी) रोग के नियंत्रण के लिए प्रति पौधा एक-दो पत्ती दिखाई देने पर फिपरोनिल 5 एससी 800 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने को कहा गया है। धान की फसल में रोग के प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्ती पर हल्के बैगनी रंग के धब्बे पड़ते हैं जो धीरे-धीरे बढ़कर चौड़े और किनारों में सकरे हो जाते हैं, इन धब्बों के बीच का रंग हल्का भूरा होता है। इसके नियंत्रण के लिए टेबूकोनाजोल 750 मिली लीटर प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने की सलाह किसानों को दी गई है।

 इसी तरह कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को मक्का फसल नरमंजरी पुष्प की अवस्था में नत्रजन की तीसरी मात्रा 35-40 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने तथा सोयाबीन में पत्ती खाने वाले एवं गर्डल बीटल कीट दिखने पर प्राफेनोफास 50 ई.सी. या फ्लुबेंडामाईड 39.35 प्रतिशत एससी 150 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर दर से छिड़काव करने की सलाह दी गई है। वैज्ञानिकों ने किसानों को फल एवं सब्जी के खेतों से पानी की निकासी की व्यवस्था सुनिश्चित करने के साथ ही फलदार वृक्षों की कटाई-छटाई करने मध्य कालीन फूलगोभी की रोपण तैयारी पूर्ण करने तथा जूने में रोपित मुनगे की फसल एवं पिछले वर्ष रोपित आम के पौधे में सधाई हेतु काट-छाट करने को कहा है। पपीते में फल झड़न को रोकने हेतु 20 पीपीएम की दर से नैफ्थलिन एसीटीक एसीड का छिड़काव करने की सलाह किसानों को दी गई है। 

धान की फसलों को रोगों और खरपतवार बचाना बेहद जरूरी

बरसात के मौसम के साथ ही पूरे देश में बड़ी संख्या में धान के फसलों की बुआई शुरू हो जाती है। इस दौरान बोआई के साथ ही जैसे-जैसे फसलें धीरे-धीरे बढ़ती जाती हैं, तो इसमें उर्वरक और सिंचाई के लिए पर्याप्त ध्यान देना होता है। इसके साथ ही धान की फसलों में कई प्रकार के रोग भी लग जाते हैं, जिसके लिए किसान लगातार चिंतित रहते हैं। तो ऐसे रोगों से बचाव के लिए आपको कृषि वैज्ञानिकों से सतत संपर्क बनाए रखना चाहिए, ताकि उनकी सलाह से फसलों को कोई नुकसान न हो।

वैसे आपको बता दें कि धान में लगने वाले प्रमुख रोगों में दीमक भी एक है। इसलिए फसल से पहले गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके साथ ही किसी प्रकार के कच्चे गोबर का प्रयोग नहीं करना चाहिए। यदि फसल लगाने से पूर्व किसी प्रकार का अवशेष शेष है, तो उसे अवश्य नष्ट कर देना चाहिए। साथ ही फसल लगाने से पहले मिट्टी को अच्छी तरह संतुलित करना चाहिए।

धान की फसल में लगने वाला एक और रोग खैरा है। कहा जाता है कि यह रोग जिंक की कमी के चलते होता है। इससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं।

इसी तरह धान की फसल में झोंका रोग भी लगता है। इसके लिए किसानों को लगातार फसलों की देखरेख की सलाह दी जाती है। धान की फसल पर ही भूरा धब्बा रोग भी लगता है। इसलिए इससे बचाव के लिए खेत के आस-पास के क्षेत्र को खरपतवार से यथा सम्भव मुक्त रखना चाहिए। उर्वरकों का संतुलित प्रयोग करना चाहिए। समय से बुवाई एवं फसल चक्र अपनाना चाहिए।

वहीं धान की फसल पर पत्ती लपेटक कीट का प्रभाव भी देखा जाता है। जब धान की फसल पकने की अवस्था में आती है, तो प्राय: इसका प्रकोप देखा जाता है। इसलिए धान की फसल को इन रोगों से बचाना बेहद जरूरी है। अन्यथा फसल उत्पादन पर इसका प्रभाव पड़ता है और उत्पादन में कमी आने के साथ-साथ क्वालिटी में भी फर्क आता है

धान की फसलों में खरपतवार रोकने के प्रभावी तरीके…

धान की फसल में खरपतवार एक बहुत बड़ी समस्या है यदि समय पर इसका नियंत्रण नहीं किया गया तो फसल पूरी तरह से नष्ट हो जाती है। खरपतवार पैदावार में कमी के साथ धान में लगने वाले रोग के कारकों एवं कीट व्याधियों को भी आश्रय देते हैं। धान की फसल में खरपतवार के कारण 15-85 प्रतिशत तक नुकसान होता है, कभी कभी यह नुकसान 100 प्रतिशत तक पहुच जाता है, इसलिए सही समय पर खरपतवार नियंत्रण करना बहुत आवश्यक है।

इसे लेकर कृषि वैज्ञानिकों ने बताया गया कि  सीधी बुआई वाले धान में बुआई के 15-45 दिन एवं रोपाई वाले धान में रोपाई के 35-45 दिन तक फसल को खरपतवार मुक्त रखना आर्थिक रूप से लाभदायक होता है तथा फसल का उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता है। बुआई के 3 दिन के भीतर  खरपतवार नियंत्रण के लिए पायरेजोसल्फ़ुएरोन 10: डब्लू .पी. दवा का छिडकाव 80 ग्राम प्रति एकड़ की दर से करना चाहिए । इस दौरान खेत में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है।

दूसरी बार बुआई के 20-25 दिन के भीतर बिसपायरिबैक सोडियम दवा का छिडकाव 100 एम एल प्रति एकड़ की दर से करना चाहिए। इसके छिड़काव से घास कुल के संकरी पत्ती वाले जैसे सांवा एवं चौड़ी पत्ती वाले जैसे कौआ, कैनी तथा मोथा का नियंत्रण हो जाता है। खरपतवारनाशी रसायन के छिड़काव के लिए हमेशा फ्लैट फेन या फ्लैट जेट नोजल का प्रयोग प्रभावी खरपतवार नियंत्रण के लिए करना चाहिए।

बोआई से पहले अवश्य करें बीजोपचार
बोआई से पहले बीजोपचार अवश्य कर लेना चाहिए। जिससे बीज की गुणवत्ता एवं अंकुरण के साथ-साथ फसल की बढ़वार, रोग से लडऩे की क्षमता, उत्पादकता एवं उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसलिए बीज भंडारण के पूर्व अथवा बोवाई के पूर्व जैविक या रासायनिक अथवा दोनों द्वारा बीज का उपचार किया जाना चाहिए।

धान बीजोपचार 17 प्रतिशत नमक घोल से किया जाता है। इस विधि में साधारण नमक के 17 प्रतिशत घोल में बीज को डुबोया जाता है। जिससे बदरा, मटबदरा, कीट से प्रभावित बीज, खरपतवार के बीज ऊपर तैरने लगते है और स्वस्थ्य एवं हष्ट पुष्ट बीज नीचे बैठ जाता है। जिसे अलग कर साफ पानी से धोकर भंडारित करें अथवा सीधे खेत में बुआई करें। बीज जनित बीमारी जैसे उकटा, जडग़लन आदि के उपचार हेतु जैविक फफूंदनाशी जैसे ट्राइकोडर्मा या स्यूडोमोनास से 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें, इससे उकटा अथवा जड़ गलन से फसल प्रभावित नहीं होता है।

बीजोपचार के लाभ
बीज एवं मृदा जनित रोग जैसे ब्लास्ट, फाल्सस्मट (लाई फूटना) उकटा, जडग़लन आदि बीमारी से फसल प्रभावित नहीं होता है। बीजाउपचार करने से बीज के ऊपर एक दवाई का परत चढ़ जाता है, जो बीज को अथवा मृदा जनित सूक्ष्म जीवों के नुकसान से बचाता है। बीज की अकुंरण क्षमता को बनाये रखने के लिए बीजोपचार जरूरी होता है, क्योंकि बीज उपचार करने से कीड़ों अथवा बीमारियों का प्रकोप भंडारित बीज में कम होता है। बुआई पूर्व कीटनाशी से बीज का उपचार करने पर मृदा में उपस्थित हानिकारक कीटो से बीज की सुरक्षा होती है।