भारत वर्ष में वैसे तो हर प्रकार की फसल, फूल, फल और सब्जियों की खेती की जाती है।  क्योंकि यहां प्रकार की जलवायु वाले क्षेत्र हैं। इसलिए भी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग फसल, फूल और सब्जियों की खेती की जाती है।हम यदि फलों की बात करें तो जम्मू कश्मीर से लेकर केरल तक हर तरह के फल यहां उपलब्ध हैं। लेकिन भारत में एक और फल की खेती की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं ये है डै्रगन फ्रूट। ड्रैगन फ्रूट की खेती विशेष रूप से थाइलैंड, वियतनाम, इजऱायल और श्रीलंका में लोकप्रिय है। लेकिन अब इसकी अच्छी कीमत और रंग के चलते ये तेजी से भारत के बाजार में काफी लोकप्रिय होता जा रहा है। वैसे एक अनुमान के मुताबिक इसके फल 200 से 250 रुपए प्रति फल के हिसाब से बिकते हैं। और इसके पौधे का उपयोग सजावट के साथ-साथ व्यवसायिक गतिविधियों जैसे जैम, आइस क्रीम, जैली, जूस आदि बनाने में भी किया जाता है। वहीं कहीं-कहीं सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। तो इतनी खूबियों से भरी ड्रैगन फूट की खेती कैसे की जाती है, कम खर्च में ज्यादा मुनाफा देता है ये फल खेती भी आसान और जानवरों का भी डर छू…आइए इस पर चर्चा करें-

1. मिट्टी और जलवायु
वैसे कई फसलों, फलों और फूलों के लिए खास प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता होती है, लेकिन ड्रैगन फ्रूट की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से की जा सकती है। लेकिन अच्छी फसल के लिए रेतीली दोमट मिट्टी और दोमट मिट्टी ज्यादा उपयुक्त होता है। जल निकासी वाली बलुई मिट्टी को इसके लिए सबसे उत्तम माना गया है। वहीं जलवायु की बात करें तो 50 सेमी वार्षिक औसत की दर से बारिश तथा 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान ड्रैगन फ्रूट के उपयुक्त है।

2. छायादार जगह उपयुक्त
जिस हिसाब से ड्रैगन फ्रूट के लिए 50 सेमी वार्षिक औसत की बारिश और 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त है, तो ये सही है कि तेज सूर्य के प्रकाश इसकी खेती पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं, इसलिए अच्छी उपज के लिए छायादर जगहों में इसकी खेती की जा सकती है। जहां उपयुक्त प्रकार की जलवायु हो।

3.ऐसे करें खेत की तैयारी
अन्य फसलों की तरह इसकी खेती के लिए अच्छी तरह से जुताई कर मिट्टी के सारे खरपतवार नष्ट कर देना चाहिए। इसके बाद मिट्टी परीक्षण के आधार पर इसमें जैविक खाद या कम्पोस्ट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

4. बीज के बजाय कटिंग कर खेती
वैसा देखा जा रहा है कि बीज के जरिए खेती के बजाय ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए कटिंग या कलम लगाकर खेती की जाती है। क्योंकि बीज के माध्यम से इसकी खेती में लंबा वक्त लग सकता है। इसलिए गुणवत्ता पूर्ण पौधे की छंटाई से ही इसके सैंपल तैयार करने चाहिए।

5. पौध रोपण
इसके पौधों को कम से कम डेढ़ से 2 मीटर की दूरी बनाकर रोपे जाने चाहिए। लेकिन छाया का खास ध्यान रखा जाए, क्योंकि तेज रौशनी में पौधों को नुकसान हो सकता है।

6. जैविक खाद को प्राथमिकता
इसके पौधों के लिए जैविक खाद को प्राथमिकता देना चाहिए। जिससे फल और पौधों दोनों उच्च गुणवत्ता के हों। फल लगने के समय कम मात्रा में नाइट्रोजन और अधिक मात्रा में पोटाश दिया जाने से उपज अच्छी होती है।

7.कीट प्रकोप नहीं के बराबर
वैसे अब तक देखा गया है कि ड्रैगन फ्रूट में किसी प्रकार के कीट या रोग लगने का कोई मामला अब तक सामने नहीं आया है। यानी इसके पौधे और फल दोनों कीट प्रकोपों से सुरक्षित हैं, लेकिन फिर भी सावधानी जरूरी है। पौधों में मई-जून के महीने में फूल लगते हैं तथा अगस्त से दिसंबर तक फल। एक पेड़ से एक मौसम में कम से कम छह बार फल तोड़ा जा सकता है। कुल मिलाकर ड्रैगन फ्रूट की खेती से किसानों का लाभ ही लाभ होता है। लेकिन फिर फसल की सुरक्षा जरूरी होती है।

कर्म खर्च में यदि आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाना चाहते हैं, तो आप निसंदेह ड्रैगन फ्रूट की खेती कर सकते हैं। ड्रैगन फल का फूल खुशबूदार होता है। फल लाल रंग का, गोल और कांटेदार होता है। फल पकने पर नरम हो जाता है। फल के अंदर का रंग गहरा लाल होता है. यह खाने में जायकेदार और मीठा होता है. तो आइए आज आपको बताते हैं इस फल की खेती के बारे में…

परिचय
ड्रेगन फ्रूट एक उष्ण कटिबंधीय (ट्रोपीकल)  फल है। यह कैक्टस फैमिली का पौधा है जिसे पिताया नाम से भी जानते हैं। इसकी खेती थाइलैंड देश में व्यापक पैमाने में की जाती है जो अब भारत के कुछ राज्यों में भी हो रही है। लाल रंग का यह विदेशी फल दिखने में काफी सुंदर, स्वादिष्ट एवं मीठा होता है, जिसका स्वाद किवी और नाशपती फल के समान ही होता है।

मिट्टी
इस फसल को उन सभी जगहों पर लगाया जा सकता है जहाँ पर पानी बहुत कम है, मिट्टी हल्की है।  यह लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में लगायी जा सकती है मगर रेतीली दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी है। किसी भी फसल के उत्पादन के लिए उचित मात्रा में पानी की उपलब्धता एवं अच्छी गुणवत्ता वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। ऐसी मिट्टी में फसल लगाने से किसानों को 1 से 2 लाख रूपये तक का मुनाफा प्राप्त होता है, मुरूमी, हल्की, भाटा मिट्टीयों में फसल लगाने में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है लेकिन ऐसी मिट्टी में ड्रेगन फ्रूट की फसल को लगाकर काफी लाभ कमाया जा सकता है।

जानवरों से सुरक्षित
जहां जानवरों एवं बंदरों का प्रकोप ज्यादा है उन क्षेत्रों में भी ड्रैगन फ्रूट खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है क्योंकि इसका पौधा कांटेंदार होता है।

तापमान
25 से 40 डिग्री तापमान इसकी वृद्धि के लिए आवश्यक है। आज के परिवेश में जहां हर फसल में दवाइयों का बेतहासा उपयोग हो रहा है जो हमारे स्वास्थ्य को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। इस फसल को उगाने के लिए बहुत की कम रासायनिक खादों की आवश्यकता होती है एवं रोग-व्याध भी कम लगते हैं। यह फसल जैविक खेती के लिए बहुत ही उपयुक्त है, क्योंकि सामान्य कंपोस्ट खाद देकर भी अच्छी फसल ली जा सकती है।

कीमत
ड्रैगन फ्रूट बाजार में 80 से 200 रूपये प्रति कि.ग्रा. से अधिक मूल्य में बिकते हंै। कम से कम मूल्य (80 रूपये) में बेचने पर 5 से 6 लाख रूपये प्रति हेक्टेयर शुद्ध आय किसान कमा सकते हैं।

स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभदायक
ड्रैगन फ्रूट को सुपर फ्रूट भी कहा जाता क्योंकि इसके बहुत से स्वास्थ्य लाभ होते हैं। यह ब्लडप्लेटलेट्स को बढ़ाने में बहुत ही फायदेमंद है। इसमें जीरो फैट, फाइबर (3ग्राम/100गा्रम) एंटी-ऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन (1.2 ग्राम), आयरन (4 प्रतिशत), मैग्नीशियम(10 प्रतिशत), तथा विटामिन सी (3 प्रतिशत), प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इसका उपयोग शराब (वॉइन), जैम-जेली बनाने में भी किया जाता है।

आधुनिक खेती
इसकी खेती एक आधुनिक खेती है, जिसमें  खर्च कम लगता है। इसका फूल तीन हफ्तों में फल में बदल जाता है। ये रात को ही बढ़ता है, इसलिए इसके फूल को रात की रानी भी कहते हैं। ये फल लाल, गुलाबी तथा पीले रंग के होते हैं। लाल गुदा वाला फल ज्यादा अच्छा तथा स्वादिष्ट होता है और बाजार में लाल किस्म को ज्यादा पसंद किया जा रहा है तथा इसकी बाजार मांग भी ज्यादा है। अन्य फलों की तुलना में इस फल को लंबे समय तक भंडारित किया जा सकता है।

कृषि अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया में ली जा रही फसल
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया, बेमेतरा में क्षेत्र के लिए ड्रेगन फ्रूट अनुकूलता एवं अन्य घटकों के संबंधी अनुसंधान विगत 3 वर्षों से डॉ. के. पी. वर्मा, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय के सफल निर्देशन में श्रीमति कुंती बंजारे, वैज्ञानिक, उद्यानशास्त्री के द्वारा किया जा रहा है। अनुसंधान प्रक्षेत्र के मिट्टी काफी हल्की, जल निकास वाली एवं मुरूमी व भाटा मिट्टी है। इस मिट्टी में लाल से लाल प्रजाति लगायी गयी है और अभी तक पौधों की बढ़वार अच्छी है एवं पौधों के अनुसार दो से चार किलो प्रति पेड़ उपज प्राप्त हो रही है।

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