एक पुरानी कहावत है आम के आम और गुटलियों के दाम। इस कहावत को महेश्वर जनपद में सिटोका गांव के दो मछुवारें सार्थक कर रहे है। लगभग 3 वर्ष पूर्व लखन पिता सखाराम वर्मा और सुखराम पिता चेतराम वर्मा मछली पकड़कर या कभी-कभी मजदूरी कर अपनी जीविकोपार्जन करते थे। वर्ष 2017-18 में मप्र शासन ने नर्मदा क्षेत्र में हरियाली की चादर ओढ़ाने की दिशा में पौधारोपण का कार्य प्रारंभ किया। सिटोका गांव में नर्मदा किनारे की शासकीय भूमि पर सामुदायिक पौधारोपण किया गया, जहां इन दोनों को 200-200 पौधे लगाने के लिए पौधरक्षक के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई। इस अवसर को लखन और सुखराम ने भुनाया और खेती करने का रास्ता निकाला। दोनों ने पौधों के बीच में अंतरवर्तीय फसल लेना प्रारंभ कर दी। दोनों की साझेदारी रंग लाई ओर आज न सिर्फ 400 पौधे जीवित है, बल्कि दोनों ने मिलकर पहले 10 क्ंिवटल गेहू फिर 8 क्विंटल मक्का और उसके बाद करीब 10 हजार की छतरफली और अब गिलकी से भरपूर लाभ ले रहे है। इतना ही नहीं मनरेगा के अंतर्गत इन्हें पौधरक्षक के रूप में लखन 82 हजार 30 रूपए और सुखराम को 73 हजार 684 रूपए का भुगतान भी हुआ है। इस तरह 3 वर्ष में दोनों ने पौधे जीवित रखकर 1 लाख 55 हजार 714 रूपए प्राप्त किए है। वास्तव में दोनों की यह साझेदारी पर्यावरण के लिए तो हितकारी साबित हो ही रही है। साथ ही अपनी आजीविका संवारने में भरपूर योगदान दे रही है।
2 हजार सामुदायिक पौधारोपण है जिले में
मनरेगा के अधिकारी श्याम रघुवंशी ने बताया कि 2017-18 में जिले में मनरेगा के अंतर्गत विस्तृत पौधारोपण किया गया था, जिसमें 2 हजार ऐसे क्षेत्र है, जहां शासकीय भूमि पर 200-200 पौधों का पौधारोपण कर पौधरक्षक नियुक्त किए गए। शासकीय भूमि पर पौधारोपण के पश्चात पौधरक्षक को इन पौधों की जिम्मेदारी लेनी होती है और मनरेगा के तहत इन्हें मजदूरी का भुगतान भी किया जाता है। दोनों ने मिलकर मनरेगा में मिशाल पेश की है कि किस तरह पौधो के बीच अंतरवर्तीय फसल लेकर आजीविका को संवारा जा सकता है।