शहरी गौठानों के करीब हाइटेक तरीके से मत्स्यपालन को बढ़ावा देने के लिए डबरी बनाई जाएंगी। यहां अत्याधुनिक तरीके से मत्स्यपालन होगा। इसके लिए विशेषज्ञों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाएगा ताकि फिशरीज में आए हाईटेक तरीकों के अनुरूप मत्स्यपालन को बढ़ावा दिया जा सके और इस संबंध में विपुल संभावनाओं का लाभ उठाया जा सके। इस संबंध में आयोजित बैठक में कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने कहा कि जिले में मत्स्यपालन को लेकर बड़ी संभावनाएं हैं। यहां पर मछलियों की डिमांड काफी ज्यादा है और अभी सप्लाई बाहर से भी करनी होती है। यदि हाइटेक तरीके से मत्स्यपालन के लाभों के संबंध में अत्याधिक प्रचार किया जाए तो आय की बड़ी संभावनाएं पैदा होंगी। कलेक्टर ने कहा कि इसके लिए नगरीय निकायों के गौठानों के निकट संभावना देखी जाए। उन्होंने कहा कि इसके लिए विशेषज्ञों की भी मदद ली जाए क्योंकि मत्स्यपालन के लिए जो टैंक तैयार होता है उसके फलीभूत होने में जमीन की स्थिति अर्थात टोपोग्राफी की बड़ी भूमिका होती है जहां पर ऐसी डबरी प्लान की जा रही है वहां पर यह सफल होगी की नहीं। इसके बाद विशेषज्ञों के साथ यह देखें कि कौन-कौन सी प्रजाति की मछलियों का पालन किया जा सकता है। इनमें पूरी तरह से हाइटेक मछलीपालन होगा जैसा जिले के प्रगतिशील मत्स्यपालक कर रहे हैं। पानी में आक्सीजन की स्थिति, तालाब की गहराई जैसी छोटी-छोटी बारीकियों पर काम होगा। इस मौके पर जिले के प्रगतिशील मत्स्यपालक श्री बेलचंदन भी उपस्थित थे। उन्होंने हाइटेक मत्स्यपालन की बारीकियों से भी अधिकारियों को परिचित कराया।
ग्रामीण क्षेत्रों में होगा हजार हितग्राहियों का चिन्हांकन- मत्स्यपालन को बढ़ावा देने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भी विशेष पहल की जाएगी। इसके लिए ऐसे हितग्राहियों को तैयार किया जाएगा जिनके पास लगभग दस डिसमिल जमीन हो। इनकी जमीन पर डबरी खुदाई जाएगी, इसके खर्च का वहन जिला प्रशासन करेगा। डबरी मत्स्यपालन के लिए तकनीकी रूप से बनी डिजाइन के अनुसार बनेगी। यहां पर मत्स्यपालन किया जाएगा। हाइटेक मत्स्यपालन के लिए प्रशिक्षण विशेषज्ञों द्वारा दिया जाएगा। जिला पंचायत सीईओ ने कहा कि इसके लिए सभी जनपद सीईओ को हितग्राही चिन्हांकन के लिए कहा जाएगा ताकि समुचित रूप से सभी जगहों में बेहतर तरीके से मत्स्यपालन हो सके।
खरपतवार वाले तालाबों में विशेष तरह से मत्स्यपालन कई तालाबों में बेतरतीब जलीय खरपतवार विकसित हो गए हैं। इसके कारण इन तालाबों का विशेष उपयोग नहीं हो पा रहा है। यहां पर ऐसी मछलियों का उत्पादन होगा जिनका मूल आहार खरपतवार होता है। एक बार खरपतवार की समाप्ति के बाद तालाब के शुद्धिकरण का कार्य हो जाएगा और फिर नये तरीके से मत्स्यपालन शुरू हो पाएगा। कलेक्टर ने विशेषज्ञों से एनीकट आदि में भी मत्स्यपालन की संभावनाओं के विषय में जानकारी ली।