पौष्टिक तत्वों से भरपूर चने की खेती और किस्में…
चना हर कोई खाता होगा। चाहे सब्जी के रूप में, भूनकर या फिर भिगोकर, हर दृष्टि से चना काफी फायदेमंद है। आयुर्वेद में भी चना के पौष्टिकता के आधार पर ही इसको बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग किया जाता है। चना खाने से न सिर्फ ऊर्जा मिलती है बल्कि वजन, कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज नियंत्रण में होने के साथ-साथ सिर दर्द, खांसी, हिचकी, उल्टी जैसे बीमारियों के लिए भी फायदेमंद साबित होता है। तो चलिए आज बात करते हैं चना की खेती के बारे में…
1. मिट्टी
चने की खेती के लिए किसी खास किस्म की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती। यह प्राय: सभी प्रकार की मिट्टियों में ली जा सकती है। लेकिन फिर भी जलवायु के हिसाब से मिट्टी का चयन उपयुक्त होता है। चना के लिए खेत की मिट्टी बहुत ज्यादा महीन या भुरभुरी बनाने की आवश्यकता नहीं होती।
2. खेत की तैयारी
चने की बोआई के पहले खेत की तैयारी कर लेना जरूरी होता है। बुआई के लिए खेत को तैयार करते समय 2-3 जुताईयाँ कर खेत को समतल बनाने के लिए पाटा लगाऐं। पाटा लगाने से नमी संरक्षित रहती है। इसके बाद ही बोआई करनी चाहिए।
3. किस्में
मुख्य रूप से चने की दो किस्में प्रचलित हैं- 1. काबुली चना, 2. देशी चना.।
काबुली चना की किस्में:- जे.जी.के 1, जे.जी.के 2, जे.जी.के 3।
देशी चना की किस्में :- जे.जी. 14, जाकी 9218, जे.जी 63, जे.जी 412, जे.जी 130, जे.जी 16, जे.जी 11, जे.जी 322 322, जे.जी 218, जे.जी 74।
4. बोआई का समय-
चने की बोआई प्राय: धान की फसल काटने के बाद की जाती है। इसलिए बोआई दिसंबर के मध्य तक अवश्यक कर लेनी चाहिए। वहीं असिंचित अवस्था में चना की बुआई अक्टूबर के द्वितीय सप्ताह तक कर देनी चाहिए।
आपको बता दें कि बोआई के समय का खास ध्यान रखना चाहिए, अन्यथा अधिक देरी से बोआई करने पर पैदावार कम हो जाती है। अत: अक्टूबर का प्रथम सप्ताह चना की बुआई के लिए सर्वोत्तम होता है।
5. बोआई की विधि-
चने की अच्छी पैदावार के लिए समुचित नमी में सीडड्रिल से बुआई करें। पौध संख्या 25 से 30 प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से रखे। पंक्तियों के बीच की दूरी 30 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखे । देरी से बोनी की अवस्था में पंक्ति से पंक्ति की दूरी घटाकर 25 से.मी. रखें।
6. खाद एवं उर्वरक
अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए 20-25 किलोग्राम नत्रजन 50-60 किलोग्राम फास्फोरस 20 किलोग्राम पोटाष व 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करे । वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि असिंचित अवस्था में 2 प्रतिषत यूरिया या डी.ए.पी. का फसल पर स्प्रे करने से चना की उपज में वृद्धि होती है।
7. खरपतवार नियंत्रण
किसी भी फसल को खरपतवार से बचाने की आवश्यकता होती है। क्योंकि खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्वों को खींचकर फसल को कमजोर बना सकते हैं। अत: समय-समय पर इसके नियंत्रण के लिए निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए।
8. रोग एवं कीट
चना में प्रमुख रोग रूप से उगरा रोग के लक्षण दिखाई देते हैं। इसके लक्षण बुआई के 30 दिन से फली लगने तक दिखाई देते हैं। इसके चलते पौधों का झुककर मुरझाना प्रमुख लक्षण है। अत: इसका नियंत्रण आवश्यक है।
9. प्रमुख कीट एवं नियंत्रण
चने की फसल पर लगने वाले कीटों में फली भेदक सबसे खतरनाक कीट है। भीषण प्रकोप की अवस्था में चने की 70-80 प्रतिशत तक की क्षति होती है। चना फलीभेदक के अंडे लगभग गोल, पीले रंग के मोती की तरह एक-एक करके पत्तियों पर बिखरे रहते हैं। इसके अलावा कटुआ इल्ली का प्रकोप भी देखा गया है। अत: विशेषज्ञों से सलाह कर इसका नियंत्रण कर लेना चाहिए।
10. भंडारण
चना का भण्डारण करते समय नमी पर ध्यान देना चाहिए। दानों को सुखाकर उपकी नमी को 10-12 प्रतिशत रखना चाहिए। पेलीथिन के अस्तर लगे बोरों तथा आधुनिक भण्डारण संरचनाओं का प्रयोग करना चाहिए। दानों को सरसों, महुआ या नारियल के तेल से 8-10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करने से घुन का प्रकोप कम होता है।
हल्के बादल वाले मौसम में चना में हो सकता है इल्लियों का प्रकोप…ऐसे रखें सावधानियां…
कृषि संचालनालय के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को मौसम आधारित कृषि सलाह दी है। कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए सलाह दी हैं कि आने वाले दिनों में हल्के बादल छाए रहने एवं हल्की वर्षा होने की संभावना को देखते हुए चने की फसल में इल्लीयों का प्रकोप बढ़ सकता है। अत: इसकी सतत निगरानी करते रहें। इसी प्रकार से आने वाले दिनों में हल्के बादल छाए रहने एवं हल्की वर्षा होने की संभवना को ध्यान में रखते हुए चने फसल की कटाई का कार्य करें। किसान भाइयों को सलाह दी हैं कि आने वाले दिनों में हल्के बादल छाए रहने एवं हल्की वर्षा होने की संभावना को देखते हुए धान की फसल में तना छेदक का प्रकोप बढ़ सकता है। अत: इसकी सतत निगरानी करें। मक्का की फसल में तना छेदक का प्रकोप बढ़ सकता है। अत: इसकी सतत निगरानी की जरूरत है। वर्षा की संभावना को देखते हुए थ्रिप्स कीट की उपस्थिति की जाँच की जाए। मैदानी भागों के जिलों में अधिकांश स्थानों पर हल्की बौछारे पडऩे की संभावना को देखते हुए पकी हुई दलहनी एवं तिलहनी फसलों की कटाई का कार्य सावधानी पूर्वक करें।
किसानों को एवं फलों की फसलों के लिए सलाह दी है कि ग्रीष्मकालीन सब्जियों की बोआई के लिए उपयुक्त हैं। अत: किसान भाइयों को सलाह है कि कद्दूवर्गीय सब्जियों की बैग में नर्सरी तैयार करें। पत्तेदार सब्जियों की बोआई करें तथा ग्रीष्मकालीन सब्जियों के लिए खेतों की तैयारी करें। भिंडी एवं भटे की फसल को बेधक कीटो से बचाने हेतु 10 फिरोमेन ट्रेप प्रति एकड़ लगाएं। कीट ग्रस्त पौधे के ऊपरी मुरझाएं हिस्से को मसलकर तोड़ देवें। आम में फल मटर के दाने के बराबर हो गए हो तो सिंचाई करने की सलाह दी जाती है जिससे कि फलो को झडऩे से बचाया जा सके। केला एवं पपीता के पौध में सप्ताह में एक बार पानी अवश्य देवें।