भिंडी: सब्जियों की बात हो और भिंडी का जिक्र ना हो, भला ऐसे कैसे हो सकता है। क्योंकि भिंडी की सब्जी कई प्रकार से बनाई जाती है, खासकर कुछ राज्यों में तो इसे दही या टमाटर के साथ बनाया जाता है, जो काफी स्वादिष्ट होता है। सूखी सब्जी तो लोग बड़े चांव से खाते हैं। इसे लडी फिंगर या ओकरा भी कहा जाता है। वैसे आपको बता दें कि भिंडी आपको हर मौसम में मिल जाएगी। क्योंकि इसकी खेती साल में दो बार की जाती है। तो हैं भिंडी का उत्पादन फायदे का सौदा। तो चलिए आज हम बात करते हैं भिंडी की खेती के बारे…
जलवायु
भिंडी की खेती के लिए बीज अंकुरण के समय ना ज्यादा तापमान और ना ही एकदम कम तापमान की जरूरत होती है। इसके बीजों के अंकुरण के लिए आपको 25 से 32 डिग्री सेल्सियस तापमान उपयुक्त माना जाता है। लेकिन याद रहे यदि तापमान ज्यादा रहा तो बीजों का अंकुरण प्रभावित हो सकता है।
भूमि
भिंडी की खेती वैसे तो उपजाऊ वाली भूमि पर की जाती है। लेकिन ध्यान रखें कि लवणीय भूमि इसके लिए उपयुक्त नहीं है। इसके साथ ही खेत में भिंडी लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि यहां पानी की निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
खेत की तैयारी
किसी भी फसल की बोआई से पहले खेत की तैयारी की जाती है। भिंडी के लिए भी खेत को दो से तीन बार जुताई कर समतल कर लेनी चाहिए। याद रखें मिट्टी भुरभुरी भी बनी रही तो ज्यादा अच्छा होगा।
किस्में
भिंडी की वैसी तो कई किस्में प्रचलित हैं। लेकिन फिर भी आप इनकी विकसित प्रजातियां जैसे कि पूसा ए, पंजाब, अर्का अभय, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, वि.आर.ओ.- 6 जैसी किस्मों की खेती करें तो ज्यादा फायदा होगा।
समय
जैसा कि आपको पहले ही बताया जा चुका है कि भिंडी की फसल साल में दो बार ली जा सकती है। लेकिन यदि आप ग्रीष्मकाल में इसकी बोआई करते हैं तो फरवरी या मार्च में इसकी बोआई कर सकते हैं। वहीं वर्षाकाल भिंडी जुन या जुलाई के महीने में जब बारिश की शुरूआत हो रही होती है, तब लगा सकते हैं।
ऐसे करें बोआई
भिंडी की बोआई करते समय आपको कतार का खास ध्यान रखना होगा। यदि आप वर्षा कालीन भिंडी लगा रहे हैं तो कतार को 40 से 50 सेंटीमीटर की दूरी पर रखें। वहीं पौधों को भी आपको 20 से 30 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया होगा। ऐसा करें से पौधों का विकास अच्छा होता है और उत्पादन भी बढ़ता है। ग्रीष्मकालीन भिंडी में भी दूरी बराबर रखें।
सिंचाई
वैसे भिंडी की फसल में सिंचाई मौसम के हिसाब से करना चाहिए। यदि आप वर्षा ऋतु की फसल ले रहे हैं तो सिंचाई की आवश्यकता बहुत कम होगी, लेकिन गर्मी के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता महीने के हिसाब से करें। यानी मार्च महीने में 10 से 15 दिनों का अंतराल रखें, तो अप्रैल और मई महीने में 4-5 के अंतराल में नियमित सिंचाई करनी होगी।
रोग नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण : किसी भी फसल में खरपतवार से सबसे बड़ी समस्या होती है। अत: इसके नियंत्रण के लिए समय-समय पर निंदाई करते रहें, नहीं तो खरपतवार मिट्टी से सारे पोषक तत्व सोख लेते हैं और पौधों की बढ़वार प्रभावित हो सकती है। इसके लिए आप फ्लूक्लोरेलिन की 1.0 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में बीज बोने के पूर्व मिलाने से खरपतवार पर कंट्रोल कर सकते हैं, लेकिन इसका उपयोग कम ही करें तो ज्यादा अच्छा होगा। वहीं भिंडी के बीज खरीदते समय आप इस बात का ध्यान रखें कि बीज रोगरोधी हो। इसके अलावा भिंडी में पीत शिरा रोग, चूर्णिल आसिता जैसे रोग भी लगते हैं। इसलिए इनका उपचार करना बहुत जरूरी होता है।
कीट सुरक्षा
इसके अलावा भिंडी की फसल में प्ररोह एवं फलछेदक की वर्षाकाल में ज्यादा लगता है। इसकी इल्लियां भिंडी के तने को छेदकर पौधों का सुखा देती है। इसके बचाव के लिए आपको ई.सी. की 2.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी के मान से छिडकाव करना चाहिए। वहीं भिंडी में हरा तेला, मोयला एवं सफेद मक्खी भी लगते हैं, इसकी रोकथाम के लिए आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
तो इस प्रकार आप भिंडी की खेती कर सकते हैं, जिससे आपको ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले। कीटों से सुरक्षा तो हर फसल की आवश्यकता होती है, क्योंकि पौधे जब बहुत छोटे होते हैं तो उनकी बढ़वार प्रभावित होती है, वहीं फल लगते समय भी इल्लियां बहुत ज्यादा पैदावार को प्रभावित कर सकती हैं। इसलिए इसका खास ध्यान रखना जरूरी है।
भिंडी में लगने वाले कीट और रोग, बचाव के उपाय-
स्वादिष्ट और पोषक तत्वों से भरपूर भिंडी हर किसी को बहुत पसंद आती है। इसकी सब्जी चाहे आप सूखा बनाएं या फिर रसेदार, सभी बड़े चांव से खाते हैं। भिंडी की फसल भी बड़े पैमाने पर की जाती है और लेकिन इसकी खासी देखभाल की जरूरत होती है। भिंडी गर्मी और बरसात दोनों ही मौसम में लगाई जाती है। बरसात में इसकी सिंचाई की उतनी जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन गर्मियों के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। ये तो हुई भिंडी की फसल के बारे में। लेकिन आज हम बात करते हैं भिंडी में लगने वाले प्रमुख कीट और रोगों के बारे में-
यलो वन मोजैक वायरस-
भिंडी की फसल में लगने वाला यह रोग बहुतायत में होता है। इसे पीत शिरा रोग भी कहते हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इससे भिंडी की शिराएं पीली पडऩे लगती है। इसके साथ ही पत्तियां और यहां तक के फल भी पीले-पीले हो जाते हैं। जिसकी वजह से इसकी पैदावार रूक जाती है और फसल को काफी नुकसान होता है। इसकी रोकथाम के लिए आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाइक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. अथवा एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
चूर्णिल आसिता
भिंडी की फसल में यदि यह रोग दिखाई दे तो इसके लक्षणों की पहचान बड़ा आसान है। इस रोग में भिंडी की पुरानी निचली पत्तियों पर सफेद चूर्ण युक्त हल्के पीले धब्बे पडऩे लगते हैं। ये बड़े ही तेजी से फैलते हैं और देखते ही देखते पूरे पौधे को अपनी चपेट में ले लेते हैं, इसलिए यदि ये दिखाई दें तो घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा अथवा हेक्साकोनोजोल 5 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 या 3 बार 12-15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करते रहें।
भिंडी में लगने वाले कीट
फल छेदक
फल छेदक कीट का प्रकोप वर्षा ऋतु में ज्यादा होता है। शुरू शुरू में इल्ली कोमल तने में छेद करती है जिससे तना सूख जाता है। और फल लगने पर इल्ली उनका खाती रहती है, जिसकी वजह से भिंडी खाने योग्य नहीं रह जाते है और इससे नुकसान उठाना पड़ता है। इसकी रोकथाम हेतु क्विनॉलफॉस 25 प्रतिशत ई.सी., क्लोरपाइरोफॉस 20 प्रतिशत ई.सी. अथवा प्रोफेनफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. की 2.5 मिली. मात्रा प्रति लीटर पानी के मान से छिडकाव करें।
सफेद मक्खी
इसके अलावा भिंडी में सूक्ष्य आकार के कई कीट लगते हैं। इसमें सफेद मक्खी, मोयला और हरा तेला मुख्य है। ये फल का रस चूसते हैं और फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए रोकथाम हेतु आक्सी मिथाइल डेमेटान 25 प्रतिशत ई.सी. अथवा डाइमिथोएट 30 प्रतिशत ई.सी. की 1.5 मिली मात्रा प्रति लीटर पानी में अथवा इमिडाइक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस.एल. अथवा एसिटामिप्रिड 20 प्रतिशत एस. पी. की 5 मिली./ग्राम मात्रा प्रति 15 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
रेड स्पाइडर माइट
रेड स्पाइडर माइट के प्रकोप से भिंडी की पत्तियां पीली पडकर टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं। अधिक प्रकोप हो ने पर संपूर्ण पौधे सूख कर नष्ट हो जाता है। इसकी रोकथाम हेतु डाइकोफॉल 18.5 ई. सी. की 2.0 मिली मात्रा प्रति लीटर अथवा घुलनशील गंधक 2.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करें एवं आवश्यकतानुसार छिडकाव को दोहराएं।