माउथ फ्रेशनर के रूप में बहुतायत में प्रयोग होने वाला सौंफ एक जड़ी बूटी औषधी भी है। इसके उपयोग से पेट संबंधी कई तरह के विकार दूर होते हैं। इसके साथ ही यह एक मसाला फसल भी है। यानी इसका उपयोग मसालों के रूप में भी किया जाता है। आचार और सब्जियों का जायका बढ़ाने में तो यह सबसे आगे रहता है। इसे देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। तो चलिए आज हम बात करते हैं सौंफ की खेती के बारे में-
1. जलवायु
सौंफी की खेती के लिए शुष्क और ठंडी जलवायु को सबसे उत्तम माना गया है। क्योंकि इसके अंकुरण के समय 20 से 30 डिग्री सेल्सियस की जरूरत होती है। लेकिन जब पौधों के बढ़वार की बारी आती है, तो तापमान 10 से 20 डिग्री ज्यादा अच्छा होता है। तो यदि आपके आप ऐसी उपयुक्त जलवायु है तो आप सौंफ की फसल ले सकते हैं।
2.भूमि
सौंफ की खेती हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन ध्यान रखें भूमि रेतीली ना हो। लेकिन यदि आप इसकी व्यापारिक खेती करना चाहते हैं तो जैविक गुणों से भरपूर बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 6 से 8 को, में इसकी खेती कर सकते हैं।
3.खेत की तैयारी
सौंफ की खेती के लिए तैयारी आवश्यक है। इसके लिए पहले तो आप एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से कर लें, उसके बाद 2 बार देशी हल या हैरो से, फिर पाटा चलाकर अच्छी तरह जुताई कर लें, ताकि मिट्टी भुरभूरी हो जाए। इसके बाद आप क्यारियां बना लें। ताकि पौधों की बढ़वार अच्छी तरह हो सके।
4. किस्में
सौंफ की उन्नत किस्मों में
आर एफ- 105, आर एफ- 125, पी एफ- 35, गुजरात सौंफ- 1, गुजरात सौंफ- 2, गुजरात सौंफ- 11, हिसार स्वरूप, एनआरसीएसएसएएफ-1, को-11 आदि शामिल हैं।
5. बोआई का समय
सौंफ की बोआई रबी मौसम में की जाती है। इसे आप नर्सरी में पौध तैयार कर या फिर सीधे खेतों में बो सकते हैं। बोआई के लिए अक्टूबर का प्रथम सप्ताह सर्वोत्तम होता है, जबकि नर्सरी विधि से बोने पर नर्सरी में बुआई जुलाई से अगस्त माह में की जाती है।
6. बीज उपचार
पौधों को रोग से बचाने बीज को उपचारित कर ही इसकी खेती करें, ताकि रोग की लगने की संभावना नहीं के बराबर हो। इसके लिए गोमूत्र अथवा बाविस्टीन दवा 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपयोग कर सकते हैं।
7. खाद एवं उर्वरक
सौंफ की खेती के लिए गोबर खाद या कम्पोस्ट अच्छा है। इसलिए सबसे पहले आप 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट मिला दे, फिर जुताई करें। इसके बाद 90 किलोग्रान नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
8. सिंचाई
सौंफ की फसल को सिंचाई की जरूरत ज्यादा होती है। ध्यान रखें पहली सिंचाई वो ही हल्की पौधरोपण या बोआई के तुरंत बाद कर लें। मृदा में यदि नमी की कमी दिखाई दे तो आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें। पहली सिंचाई के बाद दूसरी सिंचाई 15 दिनों में, फिर मौसम के अनुसार 10 से 15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करते रहें।
9. पाले से बचाव
सौंफ के पौधों को पाले से बचाना आवश्यक है। नहीं तो फसल प्रभावित हो सकती है। पाला पडऩे से सौंफ की फसलों को भारी नुकसान होता है।
10. खरपतवार से सुरक्षा
सौंफ की बढ़वार की गति बहुत ही धीमी होती है। इसलिए खरपतवार ज्यादा तेजी से बढ़ते जाते हैं। इसलिए समय-समय पर इसकी निंदाई गुड़ाई करते रहना चाहिए। प्रथम निराई 25 से 30 दिन बाद तथा दूसरी 60 दिन बाद करनी चाहिए। रासायनिक खरपतवार नियंत्रण के लिए पेन्डीमेथालिन 1.0 किलोग्राम अंकुरण से पूर्व 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर मिट्टी पर छिड़काव करें।
11. रोगों से बचाव
सौंफ की फसल को कॉलर रॉट से बचाव के लिए नियंत्रण के लिए 1.0 प्रतिशत बोर्डो मिश्रण (3:3:50) का छिड़काव करें। रेमुलेरिया झुलसा के लक्षण दिखने पर जेड- 78 के 0.2 प्रतिशत घोल का छिड़काव करना चाहिए। छाछ्या रोग का प्रकोप फरवरी से मार्च के महीने में अधिक रहता है। इसके नियंत्रण के लिए 20 से 25 किलोग्राम गंधक के चूर्ण का प्रयोग करें।
12. कीट
सौंफ की फसल में मोयला (माहू), बीज ततैया, कर्तन कीट का प्रकोप देखा जाता है। इसलिए इसके नियंत्रण के लिए उपाय करते रहना चाहिए।