गुलमेहंदी खेती
गुलमेहंदी खेती

गुलमेहंदी के फूल बैंगनी, गुलाबी, नीला या सफेद रंग के होते हैं। गुलमेहंदी का अंग्रेजी नाम रोजमेरी है। यह औषधीय गुणों से भरपूर एक सुगंधित पौधा है। गुलमेंहदी में कई तरह के एंटीएजिंग, एंटीऑक्सीडेंट आदि तत्व होते हैं। इसका उपयोग कई प्रकार से किया जाता है। गुलमेंहदी का इस्तेमाल सूप, स्टॉज, रोस्ट्स और स्टफिंग और सॉस आदि चीज़ों में फ्लेवर देने के लिए, माउथ फ्रेशनर के रूप में और चिकित्सीय सहायता के लिए इस्तेमाल किया जाता है। भारत में इसकी खेती मुख्यत: हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर जैसे ठंडे जलवायु वाले जगहों में की जा रही है। तो चलिए आज जानकारी लेते हैं गुलमेहंदी की खेती के बारे में…

  1. जलवायु

गुलमेहंदी की खेती के लिए ठंडा क्षेत्र सबसे उपयुक्त है। इसकी खेती के लिए शीतोष्णु जलवायु अच्छी होती है। इसलिए भारत में हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर जैसे पहाड़ी क्षेत्रों का वातावरण गुलमेंहदी खेती के लिए अनुकूल समझा जाता है।

  1. तैयारी

गुलमेहंदी की खेती के लिए सबसे पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए। इसके साथ-साथ संतुलित मात्रा में खाद डालकर मिट्टी को समतल बना लें। ध्यान रखें खेत में जल निकासी का अच्छा प्रबंध होना चाहिए। खाद के रूप में आप गोबर का इस्तेमाल करें तो बेहतर होगा।

  1. पौधरोपण

गुलमेहंदी की खेती के लिए सबसे पहले आप उच्च गुणवत्ता के बीजों का चयन कर लें। इसके बाद बीजों को सबसे पहले नर्सरी में तैयार कर लें। पौधरोपण के लिए तैयार होते ही पौधों को एक निश्चित दूरी यानी कम से कम 50 सेमी की दूरी पर रोपते जाएं। ध्यान रखें नर्सरी में पौधे तैयार करते समय जरूरी खाद मिलाएं।

4.सिंचाई

गुलमेहंदी वैसे तो ठंडे क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसलिए इसकी सिंचाई की आवश्यकता ज्यादा तो नहीं होती है, लेकिन पौध रोपण के तुरंत बाद शुरूआती समय में 2 से 3 बार सिंचाई अवश्य करें। फिर मौसम को ध्यान में रखते हुए आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहें।

5.खरपतवार से सुरक्षा

अन्य फसलों की भांति ही गुलमेहंदी को खरपतवार से बचाना आवश्यक है। इसलिए समय-समय पर इसकी निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। अन्यथा खरपतवार मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्वों को सोख लेते हैं और पौधों की बढ़वार प्रभावित हो सकती है।

6.कीटों व रोगों से सुरक्षा

गुलमेहंदी में कीटों और रोगों से प्रतिरोधक क्षमता होती है। फिर यदि आप पौधों की नियमित देखरेख करते रहें तो आवश्यकतानुसार उपचार कर सकते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमता होने के चलते गुलमेहंदी में कीटों का प्रकोप नहीं होता है, लेकिन कई बार इसकी जड़ों में जड़ गलन की समस्या देखी गई है, इसलिए इससे बचाव के लिए देसी जैव कवकनाशी नीम के तेल का इस्तेमाल करें।

  1. उपज

गुलमेहंदी का पौधा एक बार तैयार हो जाए तो यह कई सालों तक उपज देता रहता है। बोआई के 4-5 महीने में इसमें फूल आने शुरू हो जाते हैं। गुलमेहंदी के फूल बैंगनी, गुलाबी, नीला या सफेद रंग के होते हैं।

  1. कीमत

गुलमेहंदी का कई प्रकार से उपयोग होने के चलते इसकी खेती की ओर किसान लगातार उन्मुख होते जा रहे हैं। औषधीय और सुगंधित गुणों के चलते गुलमेहंदी काफी उपयोग में आने लगी है। खासकर इसके तेल का बाजार मूल्य काफी अधिक है। इसलिए इसका व्यापारिक महत्व भी काफी ैहै।