सदाबहार कटहल आय की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण
सदाबहार कटहल आय की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण

कटहल की सब्जी भला किसे अच्छी नहीं लगती। वैसे आपको बता दें कि कटहल की खेती में मुनाफा ही मुनाफा होता है। यदि इसकी उन्नत किस्में का उत्पादन किया जाए तो किसान इससे सालभर में लाखों रुपए कमा सकते हैं। तो चलिए आज हम आपको कटहल की खेती के बारे में बताते हैं।

कटहल के वृक्ष को सदाबहार माना जाता है। लेकिन एक वृक्ष तैयार होने में ही 5 से 6 साल का समय लगता है। इसलिए इसकी देखभाल की खास जरूरत होती है, जब तक पौधा वृक्ष के रूप में ना बदल जाए। उसके बाद वो फल देते  ही रहता है। वैसे कटहल कच्चा या पका,  दोनों उपयोगी होता है और इसकी बाजार में डिमांड भी काफी होती है। इसके बाग यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के कई राज्यों में होती है।

कटहल उष्ण कटिबन्धीय फल है। इसलिए इसको शुष्क और नम, दोनों प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है। और इसकी खेती के लिए किसी भी प्रकार की मिट्टी उपयुक्त होती है, लेकिन प्राय: दोमट और बलुई दोमट में इसका उत्पादन ज्यादा अच्छा होता है, इसलिए इसी मिट्टी में इसकी खेती की जाती है। इसमें किस्मों रसदार, खजवा, सिंगापुरी, गुलाबी, रुद्राक्षी आदि प्रमुख हैं।

कटहल की खेती के लिए खेत की तैयारी काफी महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि कटहल पौधों से पेड़ों में तब्दील होता है, इसलिए खेती के वक्त पौधों की दूरी का खास ध्यान रखना पड़ता है। ताकि पौधा आसानी से पेड़ों में तब्दील हो तो उसे फल-फूलने में किसी प्रकार की दिक्कत ना हो।

दो प्रकार से लगाए जा सकते हैं पौधे
कटहल की खेती के लिए मुख्यत: दो प्रकार की विधियां आजमाई जाती है। इसमें पहली गूटी विधि और दूसरा ग्राफ्टिंग विधि है। गूटी विधि में पौधों को पेड़ की डालियां पर तैयार किया जाता है। वहीं ग्राफ्टिंग में कटहल के पेड़ से कलम तैयार कर इसकी खेती की जाती है। इन दोनों ही प्रकार के लिए आप कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेकर अच्छा उत्पादन कर सकते हैं।
खेती के लिए बारिश का समय सबसे अच्छा
कटहल की खेती के लिए बारिश का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इसे जून-जुलाई के महीने में ही लगाना चाहिए। ताकि पौधों का विकास जल्दी हो सके। इसकी खेती में ज्यादा पानी की ज़रूरत नहीं पड़ती है, इसलिए अगर बारिश का मौसम है, तो पौधे को पानी न दें। बारिश न हो, तो पौधों को ज़रूरत के हिसाब से पानी देना चाहिए।