सिंघाड़ा की खेती
सिंघाड़ा की खेती

पानी का फल सिंघाड़ा की खेती…
सिंघाड़ा पानी में होने वाला बहुउपयोगी फल है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर उपवास के फलों के रूप में किया जाता है। यह मौसमी फल है। सिंघाड़ा फल खाने के साथ-साथ इसका आटा भी बनाया जाता है। इसी आटे का इस्तेमाल उपवास के दौरान किया जाता है। इसे पानी का फल भी कहते हैं। तो चलिए आज हम बात करते हैं सिंघाड़ा की खेती के बारे में…

1. स्थान

जैसा कि आप जानते ही हैं कि सिंघाड़ा का फल पानी में होता है। इसलिए इसकी खेती तालाबों, नहरों पोखरों जैसी जलीय जगहो में होती है। सिंघाड़े की खेती मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में होती है।

2. फायदा

सिंघाड़ा में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, शर्करा, कैल्शियम, फास्फोरस, मैगनीज, पोटेशियम, विटामिन सी, जिंक, कॉपर और आयरन उपलब्ध होते हैं। इसलिए इसका सेवन शरीर के लिए काफी फायदेमंद है। सिंघाड़ा अस्थमा, बवासीर, फटी एडिय़ां, शरीर दर्द या सूजन, हड्डियां और दांत मजबूत, दस्त, रक्त संबंधी समस्याओं के उपचार में बहुत फायदेमंद है।

3. जलवायु

सिंघाड़ा वैसे तो पानी का फल है। लेकिन इसके लिए भी उष्णकटिबन्धीय जलवायु वाला जगह उत्तम होता है। ध्यान रखें सिंघाड़े की खेती के लिए खेत या तालाब में लगभग 1-2 फीट पानी होना चाहिए।

4. मिट्टी

सिंघाड़ा की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। लेकिन ध्यान रखें मिट्टी का पीएच मान 6 और 7 के बीच होना ज्यादा अच्छा होगा।

5. किस्में

सिंघाड़ा की दो प्रकार की किस्में होती है। इसके लिए जल्दी पकने वाली और दूसरी देर से पकने वाली मानी जाती है। जल्द पकने वाली जातियां लाल चिकनी गुलरी, लाल गठुआ, हरीरा गठुआ, कटीला है। वहीं देर से पकने वाली जातियां गुलरा हरीरा, करिया हरीरा है।

6. विधि

यदि आप सिंघाड़े की व्यापारिक खेती करना चाहते हैं तो बोआई के लिए  बिना कांटों वाले सिंघाड़े का चुनाव करें। सिंघाड़े की नर्सरी तैयार करने के लिए पहले की गयी खेती के स्वस्थ पके फलों का बीज जिसकी तुराई दिसंबर में हुई है उसे जनबरी तक (1 महीने तक) पानी में रखना है। फरवरी के दूसरे सप्ताह में इन बीजों को सुरक्षित जगह पर गहरे पानी में जैसे की तालाबों, नहरों पोखर में डाल दे। मार्च महीने तक इसमें से बेल निकलने लगती है।

7. रोपाई

सिंघाड़ा के बेलों की रोपाई अप्रैल से जून के महीने में तालाब में रोपना है। ध्यान रखें तालाब में खरपतवार नहीं होना चाहिए। इसके साथ ही तालाब में प्रति हेक्टेयर 300 किलो सुपर फॉस्फेट, 60 किलो पोटाश और 20 किलो यूरिया दे देना चाहिए।

8. तोड़ाई

जल्दी पकने वाले सिंघाड़े के प्रजातियों की पहली तुड़ाई अक्टूबर के शुरुआत में और अंतिम तुड़ाई दिसम्बर के अंत में होती है। इसी प्रकार देर से पकने वाले सिंघाड़े के प्रजातियों की पहली तुड़ाई नवम्बर के शुरुआत में और अंतिम तुड़ाई जनवरी के अंत में होती है।

9. कीट और रोग

सिंघाड़ा में भृंग, नीला भृंग, माहू, घुन और लाल खजूरा नाम के कीट का खतरा होता है। इसके अलावा लोहिया और दहिया रोग का खतरा होता है। इससे बचाव के लिए हमें समय रहते कीटनाशक का इस्तेमाल कर लेना चाहिए।

Read More