घर की सजावट के लिए काम आने वाले फर्नीचर और घर की जरूरत के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले फर्नीचर में शीशम की लकड़ी का इस्तेमाल ज्यादातर किया जाता है। इसलिए शीशम की लकड़ी का व्यापारिक महत्व भी काफी है। शीशम के लकड़ी का इस्तेमाल दरवाजे, खिड़की के फ्रेम, बिजली के बोर्ड, रेलगाड़ी के डब्बे आदि बनाने में की जाती है। इसके अलावा शीशम की पत्तियों का इस्तेमाल पशुओं के चारा के रूप में किया जाता है। इसलिए इसकी खेती दोहरे फायदे वाली है। तो चलिए आज हम बात करते हैं शीशम की खेती के बारे में…
1. परिचय
शीशम की खेती के बारे में जानकारी लेने से पहले हम सबसे पहले इसका परिचय थोड़ा सा ले लेते हैं। दरअसल, शीशम का पेड़ मजबूत, बादामी या भूरा सफेद रंग की लकड़ी और छोटी पत्ती वाला है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का वृक्ष है। इसकी ऊंचाई 25 मीटर और गोलाई 2 मीटर से ज्यादा होती है। भारत के प्राय: हर राज्य में यह पाया जाता है। लेकिन यह वृक्ष धीरे-धीरे बढ़ते हैं, इसलिए इसे व्यावसायिक स्तर पर नहीं उगाया जाता है। लेकिन यदि आप इसकी अच्छी कीमत चाहते हैं और थोड़ा इंतजार कर सकते हैं, तो इसकी खेती आसानी से कर सकते हैं।
2. जलवायु
शीशम के पेड़ की अच्छी बढ़वार के लिए तापमान का खास ध्यान रखना होता है। इसके लिए आपको औसत वार्षिक तापमान 4 से 45 सेल्सियस और वार्षिक वर्षा 500 से 4500 मिलीमीटर वाले क्षेत्रों में इसके वृक्षों का रोपण करना चाहिए।
3. मिट्टी
शीशम की खेती के लिए रेतीली मिट्टी उपयुक्त होती है, लेकिन ध्यान रखें मिट्टी का पीएच मान 5 से 7.7 होना चाहिए। शीशम के वृक्षों का रोपण तालाब के पास या पानी वाले स्थान के आसपास नहीं करनी चाहिए। अन्यथा पेड़ों में फफूंद लगने का खतरा बना रहता है।
4. तैयारी
शीशम के वृक्षों का रोपण करने से पहले खेत की अच्छी से 4 से 5 बार जुताई कर लेनी चाहिए। जिससे खेत समतल हो जाए और पानी का जमाव ना हो।
5. बीज रोपण
बोआई से पहले शीशम के बीजों को 12 से 15 घंटे तक भिगो कर रखें। इन उपचारित बीजों को पॉलिथीन बैग में उगाया जाता है। बीज की बुआई से 7-14 दिन में बीज अंकुरण हो जाता है। जब अंकुरित पौधे 20 सेंटीमीटर तक हो जाए तो उन्हें खेतों में लगा दें। पौधशाला में पौध फरवरी-मार्च में पौध सीधी बोआई, पौधारोपण या स्टंप रोपण या फिर वेजीटेटिव प्रोपेगेशन से उगाई जाती है।
6. अन्य फसलें भी
खेत की मेड़ों पर शीशम के पेड़ 4 बाई 4 मीटर की दूरी या खेतों के बीच में 3 बाई 3 मीटर की दूरी पर लगानी चाहिए। इसके अलावा इसके साथ-साथ मक्का, मटर, अरंडी, सरसों, चना, गेहूं, गन्ना और कपास की खेती भी की जा सकती है। क्योंकि शीशम का पेड़ धीरे-धीरे बढ़ता है, इसलिए अन्य फसल लगाना आपके लिए फायदेमंद होगा।
7. सिंचाई
पौधरोपण के तुरंत बाद पहली सिंचाई अवश्य करें। इसके बाद जरूरत के हिसाब से सिंचाई करते रहे। वर्षा यदि पर्याप्त हो तो सिंचाई की आवश्यकता कम ही होती है। लेकिन यदि पानी की समस्या हो तो सिंचाई करते रहें।
8. रोग और कीटों से बचाव
शीशम के पेड़ों में कवक से उपजे रोग ज्यादातर देखने को मिलता है। इसलिए जहां पानी का जमाव हो ऐसे स्थानों पर इसकी खेती बिल्कुल ना करें। इसके अलावा इसमें लीफ माइनर, तना छेदक, डिफोलिएटर आदि कीटों का प्रकोप देखा गया है। इसलिए इसका उपचार अवश्य करें।
9. खाद एवं उर्वरक
शीशम की खेती से पहले मिट्टी की जांच कर उसमें उपयुक्त मात्रा में खाद एवं उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहिए।
10. पैदावार
वैसे तो शीशम के पेड़ों की आयु 25 से 35 वर्ष की होती है। लेकिन 10 से 12 वर्ष में ही पेड़ के तने की गोलाई 75 सेंटीमीटर और 30 वर्ष तक 135 से 140 सेंटीमीटर के आसपास हो जाती है। और बाजार में इसकी लकड़ी को अच्छी कीमत पर बेच सकते हैं।