वैश्विक बाजार में आखिर क्यों बढ़ रही रागी की खेती की मांग
वैश्विक बाजार में आखिर क्यों बढ़ रही रागी की खेती की मांग

रागी फसल की तकनीक…

रागी पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है। इसकी सबसे खास बात यह है कि इसमें कैल्शियम की मात्रा भरपूर होती है। इसके उपयोग से हड्डियों को मजबूती मिलती है। इसके साथ ही ये सभी के लिए उत्तम आहार है। क्योंकि इसमें  प्रोटीन, वसा, रेशा व कार्बोहाइड्रेट्स प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। तो आइए आज जानकारी लेते हैं रागी की खेती के बारे में..

मिट्टी

रागी को किसी भी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। बढिय़ा दोमट से जैविक तत्वों वाली कम उपजाऊ पहाड़ी मिट्टी, काली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है। क्योंकि यह सोखित पानी को काफी हद तक सहन कर सकती है। इसकी खेती से पहले मानसून प्रारम्भ होते ही खेत की एक या दो जुताई करके पाटा लगाकर समतल करें।

बोआई का समय और विधि
रागी की सीधी बोआई अथवा रोपा पद्धति से बोआई की जाती है। सीधी बोआई जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई मध्य तक मानसून वर्षा होने पर की जाती है। छिंटवा विधि या कतारों में बोनी की जाती है।  रोपाई के लिये नर्सरी में बीज जून के मध्य से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक डाल देना चाहिये।

प्रति हेक्टेयर बीज दर
एक हेक्टेयर खेत में रोपाई के लिये बीज की मात्रा 4 से 5 कि.ग्राम लगती है एवं 25 से 30 दिन की पौध होने पर रोपाई करनी चाहिये। कतार में बोआई करने हेतु बीज दर 8 से 10 किलो प्रति हेक्टेयर एवं छिंटवा पद्धति से बोआई करने पर बीज दर 12-15 किलो प्रति हेक्टेयर रखते हैं।

किस्में
जी.पी.यू. 45, चिलिका (ओ.ई.बी.-10), 3. शुव्रा (ओ.यू.ए.टी.-2), भैरवी (बी.एम. 9-1), व्ही.एल.-149।

खाद एवं उर्वरक
रागी की खेती के लिए असिंचित खेती के लिये 40 किलो नत्रजन व 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। गोवर अथवा कम्पोस्ट खाद (100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) का उपयोग अच्छी उपज के लिये लाभदायक पाया गया है।

रोगों से सुरक्षा
रागी में मुख्यत: फफूंदजनित झुलसन एवं भूरा धब्बा रोग लगता है। जिसका यदि समय पर निदान नहीं किया गया तो फसल प्रभावित हो सकती है। रागी की फसल में किसी भी अवस्था में फफूंदजनित झुलसन रोग का प्रकोप हो सकता है। अत: इसका उपचार अवश्य करें।

कीट सुरक्षा
रागी की फसलों में तना छेदक एवं बालियों की सूड़ी रागी की फसल के प्रमुख कीट है। इसकी रोकथाम के लिए कीटनाषक दवा डाइमेथोऐट या फास्फोमिडान या न्यूवाक्रान दवा 1 से 1.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें। इसके साथ ही बालियों की सूड़ी का प्रकोप दिखाई दे तो इसकी रोकथाम के लिए 1. क्विनालफास (1.5 प्रतिषत) या थायोडान डस्ट (4 प्रतिषत) का प्रयोग 24 कि. प्रति हेक्टेयर की दर से करें।

फसल कटाई
रागी की फसल आमतौर पर 4 से 5 महीने में पक जाती है। लेकिन यह भी इसकी किस्मों पर निर्भर करता है। कटाई दो बार की जानी चाहिए। बालियों को काट लें और पौधे के बाकी हिस्से को ज़मीन के साथ में से काट लें।

अच्छी तरह सुखाएं

बालियों का ढेर बनाकर धूप में 3-4 दिनों के लिए सुखाएं। अच्छी तरह सुखाने के बाद थ्रेशिंग करें। 

वैश्विक बाजार में आखिर क्यों बढ़ रही रागी की खेती की मांग

बिलासपुर जिले में पहली बार रागी फसल पर बीज उत्पादन ग्राम रिस्दा विकासखंड मस्तूरी के कृषक राघवेन्द्र चंदेल द्वारा 8 एकड़ में लिया जा रहा है। रागी बीजोत्पादन कार्यक्रम से प्राप्त बीज का उपयोग आगामी वर्ष में अन्य कृषकों को रागी फसल उत्पादन लेने हेतु प्रोत्साहित कर क्षेत्राच्छादन वृद्धि का प्रयास किया जाएगा।

कृषि उप संचालक शशांक शिंदे ने बताया कि रागी के पोषण मूल्यों को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं भारत सरकार ने इसे मानव के लिए सबसे सस्ता एवं संपूर्ण आहार माना है। वैश्विक बाजार में रागी की बढ़ती मांग को देखते हुए कई किसान रागी की खेती के लिये आकर्षित हुए हैं। रागी की बढ़ती खेती के कारण इसके बीजों की मांग बढ़ी है। खरीफ 2019 में रागी का विक्रय दर 3 हजार रुपये प्रति क्विंटल तथा खरीफ वर्ष 2019 में उत्पादन कार्यक्रम अंतर्गत रागी बीज उपार्जन दर रुपये 4 हजार रु प्रति क्विंटल निर्धारित है। इस उपार्जन दर पर बीज निगम को उत्पादित बीज बेचा जा सकता है। इसके अलावा स्थानीय रूप से व्यापारियों को भी किसान विक्रय कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिय किसान इस कार्यालय के फोन नंबर 07752-426644 या विकासखंड के वरिष्ठ कृषि अधिकारी से संपर्क कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं

ज्ञात हो कि रागी बच्चों एवं वयस्कों के लिये उत्तम आहार हो सकता है। इसमें फाईबर, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम की मात्रा सर्वाधिक पायी जाती है, जिसका उपयोग करने पर हड्डियां मजबूत होती है
रागी खरीफ एवं रबी मौसम में बोया जा सकता है। इसे हर प्रकार हल्कीए मध्यम एवं भारी की मृदा में बोयी जा सकती है। पड़त या अनुपयोगी भूमि में भी यह फसल ली जाती है। खरीफ में रागी की बोनी जून की अंतिम से जुलाई मध्यम तक मानसून वर्षा होने पर की जाती है। रागी 100.120 दिन की फसल है। खेत की तैयारी मानसून आने पर खेत को दो बार हल एवं बखर से अच्छी तरह से जुताई करनी चाहिये। कतार से बोवाई करने हेतु 8.10 किलो प्रति हेक्टेयर एवं छिड़का पद्धति से बोवाई करने पर 12.15 किलो प्रति हेक्टेयर बीज लगता है। रागी को अंतवर्तीय फसल के रूप में अरहर के साथ रागी की 8 कतारों के बाद अरहर की दो कतार बोना भी लाभदायक पाया गया है