लौंग का उपयोग प्राय: हर व्यक्ति करता है। चाहे वो मसाले के रूप में हो, खाने में हो, या फिर पान के साथ चबाने में हो। यानी लौंग अपनी औषधीय गुणों और महत्व के साथ-साथ आज हर किसी से जुड़ा हुआ है। और भी क्यों ना…लौंग चीज ही ऐसी है। इसके औषधीय महत्व की बात करें तो यह कई प्रकार की दवाईयों में प्रयोग में आता है, खासकर दांतों के दर्द और मसूड़ों के दर्द का रामबाण इलाज है लौंग। इसके अलावा लौंग के तेल भी बाजार में मिलता है, जिसकी अपनी अलग ही उपयोगिता है। तो चलिए आज बात करते हैं लौंग की खेती के बारे में। वैसे इसकी खेती के पहले एक बात जरूर जान लें कि लौंग हमेशा मुनाफा ही देता है।
जलवायु और तापमान
लौंग की खेती के लिए तापमान सामान्य ही रहना बेहद जरूरी है। क्योंकि लौंग के पौधों ना तो ज्यादा ठंड ही बर्दाश्त कर पाते हैं और ना ही ज्यादा गर्मी। इन दोनों ही स्थितियों में पौधों का विकास रूक जाता है। इसलिए लौंग की खेती के लिए छायादार स्थान और सामान्य तापमान की जरूरत होती है। याद रखें गर्मियों में यदि आप लौंग के पौधे लगाना चाहते हैं तो अधिकतम तापमान 35 डिग्री और सर्दियों में 15 डिग्री सेंटीग्रेड में पौधों का विकास बेहतर होता है।
मिट्टी
लौंग की खेती के लिए जीवाश्मयुक्त दोमट मिट्टी सबसे अच्छी है। लौंग की नर्सरी में जैविक खाद वाली मिट्टी के साथ अधिकतम 10 सेंटीमीटर की दूरी रखतें हुए कतार बोनी करनी चाहिए। याद रखें लौंग के पौधे तैयार होने में डेढ़ से 2 वर्ष का समय लग सकता है। इसलिए मिट्टी जितनी अच्छी होगी, उतना ही अच्छा।
खेत की तैयारी
लौंग को खेत में लगाने से पहले अच्छी तरह जुताई कर भूमि को भुरभुरा बना लें। इसके बाद 15 से 20 फिट की दूरी पर एक मीटर व्यास की डेढ़ से दो फीट की गहरे गड्ढे तैयार करें। फिर मिट्टी में जैविक खाद तथा रसायनिक खाद की पर्याप्त मात्रा मिला कर गड्ढे में भर देते हैं। लौंग का पौधा 4 से 5 साल बाद फल देने लगता है। और एक बार पेड़ बन जाने के बाद आप कई वर्षों तक निश्चित हो जाते हैं। क्योंकि लौंग कई सालों तक फल देता है, जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है।
सिंचाई
लौंग के पौधों की मौसम के अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक या दो बार तो सर्दियों में 10-15 दिनों के अंतराल में सिंचाई करते रहे।
खाद
लौंग के पौधों में शुरूआत में तो सिंचाई की आवश्यकता बहुत ही कम पड़ती है, लेकिन जैसे-जैसे पौधों की बढ़वार होती है, वैसे-वैसे खाद एवं उर्वरक की मात्रा में बढ़ोतरी करते रहना चाहिए। पौध रोपण से पहले तैयार गड्ढों में पर्याप्त मात्रा में गोबर खाद अवश्य मिलाना चाहिए। प्रत्येक पौधे को 40-50 किलोग्राम गोबर की खाद तथा 1 किलोग्राम रसायन खाद की मात्रा साल में तीन से चार बार आवश्य दें।
खरपतवार से सुरक्षा
हर फसल की भांति इसमें भी खरपतवार की संभावना बनी रहती है। खरपतवार हर फसल के साथ उग आते हैं और मिट्टी से भरपूर पोषक तत्वों का उपयोग कर पौधों के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए समय-समय पर खरपतवार की निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। लौंग में शुरूआत में तो खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता नहीं पड़ती, लेकिन रोपाई के लगभग 1 माह बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें। और उसके बाद लगातार खरपतवार नियंत्रण के उपाय करते रहना चाहिए।
रोगों से सुरक्षा
वैसे तो लौंग की फसल में रोग नहीं के बराबर लगते हैं। लेकिन कुछ कीट इसे अवश्य नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे सफेद मक्खी, सुंडी आदि। वहीं ध्यान रखें कि लौंग के पौधों के आसपास पानी निकासी की पर्याप्त व्यवस्था हो, अन्यथा उनमें रोग लग जाता है, इसलिए जलभराव पर नियंत्रण रखें।
तोड़ाई
लौंग का रंग लाल गुलाबी होता है, जिसे फूल खिलने से पहले ही तोड़ दिया जाता है। इसकी अधिकतम लंबाई 2 सेंटीमीटर होती है। जिसे अच्छे से सुखाने के बाद उपयोग में लाया जाता है। चाहे खाने में, मसालों के रूप में हो या फिर औषधीय प्रयोग के लिए।
700 से 1000 रुपए है प्रति किलो कीमत
तो आपने देखा, लौंग हर प्रकार से रोगों से सुरक्षित और औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण शुरूआती दौर में अच्छे से देखभाल करने पर कई सालों तक लगातार फल देने वाला पौधा है। और एक पूर्ण विकसित पौधा एक बार में ढाई से तीन किलों तक फल देता है, जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। वैसे बाजार में लौंग की कीमत 700 से 1000 रुपए प्रति किलो के आसपास होती है।