मूंग की खेती
मूंग की खेती

मूंग की खेती…आवश्यक जानकारी

मूंग को कई तरह से इस्तेमाल किया जाता है। मूंग दाल स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद है। इसके अलावा मूंग की दाल की तरह साबूत मूंग भी काफी हेल्दी होती है। इसके साथ-साथ मूंग के कई और फायदे हैं जिनमें से एक मूंग वजन घटाने के लिए कमाल मानी जाती है। मूंग में पोषक तत्वों की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। मूंग ब्लड शुगर को कंट्रोल करने में भी फायदेमंद माना जाता है। तो आइए आज जानते हैं मूंग की खेती के बारे में…

परिचय
मूंग ग्रीष्म एवं खरीफ दोनो मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। इसके दानों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं वसा होता है।

जलवायु
इसकी खेती मुख्यत: वर्षा ऋतु में की जा सकती है। पकाव के समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है। मूंग के लिए नम एंव गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।

भूमि
मूंग की खेती के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त है। और ध्यान रहें मिट्टी का पी. एच. 7.0 से 7.5 हो। साथ ही खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिए।

तैयारी
वर्षाप्रराम्भ होते ही 2-3 बार देशी हल या कल्टीवेटर से जुताई कर खरपतवार रहित करने के उपरान्त खेत में पाटा चलाकर समतल करें। ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिये रबी फसलों के कटने के तुरन्त बाद खेत की तुरन्त जुताई कर 4-5 दिन छोड़ कर पलेवा करना चाहिए।

बोआई का समय
खरीफ मूंग की खेती जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई का प्रथम सप्ताह में की जाती है। वहीं ग्रीष्मकालीन फसल को 15 मार्च तक बोनी कर देना चाहिये।

उन्नत किस्में
टॉम्बे जवाहर मूंग-3, के – 851, एच.यू.एम. 1, पी.डी.एम – 11, पूसा विशाल।

बोआई की विधि
अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए पंक्तियों अथवा कतारों में बोआई करना उपयुक्त रहता है। साथ ही कतार से कतार की दूरी 30-45 से.मी. तथा बसंत (ग्रीष्म) के लिये 20-22.5 से.मी. रखी जाती है।

खरपतवार नियंत्रण
मूंग की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए समय-समय पर निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। अन्यथा खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्व सोख लेते हैं और फसल की वृद्धि प्रभावित होती है।

कीटों से सुरक्षा
मूंग की फसल में प्रमुख रूप से फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू, तथा कम्बल कीट का प्रकोप होता है। इसके नियंत्रण के लिए उपाय अवश्य करना चाहिए।

रोग
मूंग में अधिकतर पीत रोग, पर्णदाग तथा भभूतिया रोग प्रमुखतया आते हैं। इसलिए इससे सुरक्षा आवश्यक है।

लागत के मुकाबले मुनाफा की हो बात तो करें मूंग की खेती

वैसे तो खेती-किसानी में आधुनिक तरीके के इस्तेमाल से काफी मात्रा में पैदावार में वृद्धि की जा सकती है। लेकिन अन्य फसलों के मुकाबले दलहनी फसलों की ओर किसान ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। इसके पीछे मुख्य वजह लागत के मुकाबले ज्यादा मुनाफा की बात है। अब खबर आ रही है कि आगरा के किसानों को मूंग की खेती रास आने लगी है। तभी तो यहां के किसान इस ओर ज्यादा रुचि दिखा रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस बार मूंग की ढाई गुना खेती की गई है। किसानों ने जैविक खाद के इस्तेमाल करने से फसल भी बेहतर है। यहां इस बार सात हजार हेक्टेयर से अधिक मूंग की खेती की है। मार्च में इसकी बुवाई हुई और 90 दिन में फसल तैयार हो जाती है। किसानों के मुताबिक इसमें प्रति हेक्टेयर 12 से 15 क्विंटल तक पैदावार होती है। इसकी प्रति हेक्टेयर की लागत सात से आठ हजार रुपये है। बाजार में छह से सात हजार रुपये प्रति क्विंटल तक दाम मिल जाते हैं।

वैसे भी मूंग के लिए नम एंव गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती वर्षा ऋतु में की जा सकती है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए 25-32 डिग्री तापमान अनुकूल पाया गया हैं। मूंग के लिए 75-90 से.मी.वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रउपयुक्त पाये गये है। पकने के समय साफ मौसम तथा 60 प्रतिशत आर्दता होना चाहिये। पकाव के समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है। मूंग की खेती हेतु दोमट से बलुअर दोमट भूमियाँ जिनका पी. एच. 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम हैं। खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिये।

दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ों में गठाने पाई जाती है जो कि वायुमण्डलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण (38-40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टयर) एवं फसल की खेत से कटाई उपरांत जड़ो एवं पत्तियो के रूप में प्रति हैक्टयर 1.5टन जैविक पदार्थ भूमि में छोड़ा जाता है जिससे भूमि में जैविक कार्बन का अनुरक्षण होता है एवं मृदा की उर्वराशक्ति बढाती है। वहीं मध्यप्रदेश में मूंग की फसल हरदा, होशंगाबाद, जवलपुर, ग्वालियर, भिण्ड, मुरेना, श्योपुर एवं शिवपुरी जिले में अधिक मात्रा में उगाया जाता है। और जब अन्य फसलों के मुकाबले मूंग की खेती में ज्यादा मुनाफा हो तो किसान बेझिझक इसकी ही खेती करना चाहेंगे।