रामतिल यानी नाइजर की खेती में किसान भाईयों को सिर्फ फायदा ही फायदा होगा। क्योंकि इसकी फसल अनुपजाऊ या कम उपजाऊ जमीन पर भी आसानी से ली जा सकती है। इसके साथ ही अन्य फसलों की पैदावार के पहले जो तैयारियां की जाती है, वैसे ही तैयारियां इसमें भी शामिल हैं। मसलन, भूमि का चयन, भूमि की तैयारी, फसल चक्र, बोवनी का समय, खाद एवं उर्वरक की मात्रा, निंदाई-गुड़ाई और फसल कटाई की कटाई। वैसे रामतिल की फसल लगभग 90 से 100 दिनों में पककर तैयार होती है। फल्ली का शीर्ष भाग काले रंग का होकर मुडऩे लगे तब फसल काटनी चाहिए। रामतिल एक तिलहनी फसल है। रामतिल के बीजों में 35-45 प्रतिशत तेल रहता है। इसका तेल एवं बीज पूर्णत: विषैले तत्वों से मुक्त रहता है तथा फसल में कीट व बीमारियां कम लगती है।
रामतिल की फसल की पैदावार बड़े पैमाने पर मध्यप्रदेश में की जाती है। मध्यप्रदेश में इसकी खेती लगभग 87 हजार हेक्टेयर भूमि में की जाती है तथा 30 हजार टन उत्पादन मिलता है। प्रदेश में देश के अन्य रामतिल उत्पादक प्रदेशों की तुलना से औसत उपज अत्यंत कम (343 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) है। मध्यप्रदेश में इसकी खेती मुख्य रूप से छिंदवाड़ा, बैतूल, मंडला, डिन्डौरी, कटनी, उमरिया एवं शहडोल जिलों में की जाती है।
रामतिल के बीजों में 38-43 प्रतिशत तेल एवं 20से30प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पायी जाती है। रामतिल की फसल को नमी के अभाव में अथवा विषम परिस्थितियों में अनुपजाऊ एवं कम उर्वराशक्ति वाली भूमि में भी उगाया जा सकता है। फसल भूमि का कटाव रोकती है। रामतिल की फसल के बाद उगाई जाने वाली फसल की उपज अच्छी आती है। इसलिए रामतिल की फसल लेने में किसान भाईयों को सिर्फ फायदा ही फायदा होगा। और इसके लिए जमीन में खास तैयारी की जरूरत भी नहीं के बराबर ही है, तो एक बार इसकी फसल लेकर तो देखिए, फायदा खुद ब खुद पता चल जाएगा।