भारत में राजमा चावल लोगों की पसंदीदा खाने में से एक है। वहीं राजमा को किडनी बींस भी कहा जाता है। वैसे तो राजमा की खेती पहाड़ी जगहों पर की जाती है, लेकिन अब नए-नए तरीकों से इसकी खेती मैदानी भागों में भी की जाने लगी है। तो चलिए आज हम आप बताते हैं राजमा की खेती के बारे में…इसे पहले आपको बता दें कि राजमा में काफी पोषक तत्व पाये जाये है जैसे कि पोटेशियम, प्रोटीन, मैग्नीशियम आदि जो की हमारे शरीर को स्वस्थ रखता है। भारत में इसकी खेती महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल, जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक में मुख्य रूप से की जाती है।
मिट्टी
राजमा की खेती के लिए चिकनी मिट्टी उपयुक्त होती है। लेकिन यह मिट्टी भी कार्र्बनिक गुणों वाली हो तो बेहतर होगा। ध्यान रखें मिट्टी का पीएच मान 5 से 6 होना चाहिए। राजमा के लिए कार्बनिक गुणों वाली चिकनी मिट्टी अच्छा माना जाता है।
जलवायु
राजमा उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जलवायु की फसल है। इसलिए जहां 60 से 150 सेमी वार्षिक वर्षा हो, वहां इसकी उपज अच्छी होती है। साथ ही इसे 15 से 25 डिग्री सेल्सिय तापमान की जरूरत होती है।
बोआई का समय
राजमा रबी और खरीफ दोनों ही मौसम में बोआ जा सकता है। मौसम के अनुसार अलग-अलग राज्यों में इसकी खेती अलग मौसम में होती है। बिहार और यूपी में नवम्बर, महाराष्ट्र में अक्टूबर के बीच का समय अच्छा होता है।
किस्में
भारत में राजमा की कई किस्में हैं। अलग-अलग स्थानों और मिट्टी के हिसाब से इसके किस्मों की खेती की जाती है। जैसे- पी.डी.आर. 14, एच.यू.आर 15, मालवीय 137, अम्बर, उत्कर्ष, वी.एल. 63। इसके अलावा राजमा के और भी कई किस्में है जैसे की आई.आई.पी.आर 96-4, आई.आई.पी.आर 98, हूर -15, एच.पी.आर 35, बी.एल 63,अरुण।
बीज का चयन
राजमा की अच्छी उपज के लिए बीजों का चयन बहुत जरूरी है। जितना अच्छा बीज होगा, फसल भी उतना ही अच्छा होगा। इसलिए बीज भंडार केंद्र से बीज खरीदना या फिर किसी भी सरकारी मान्यता प्राप्त संस्थान से बीज खऱीदा जा सकता है।
खेती का समय
राजमा की खेती रबी और खरीफ दोनों ही फसल के रूप में की जाती है। इसलिए इसकी बोआई का समय भी अलग-अलग होता है। बिहार और यूपी में नवम्बर, महाराष्ट्र में अक्टूबर के बीच का समय अच्छा होता है। यह फसल वार्षिक 60 -150 सेमी वर्षा वाले उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जगहों में अच्छी तरह से बढ़ती है।
सिंचाई
राजमा को 2-3 सिंचाई की जरुरत पड़ती है। बुआई के बाद 4 सप्ताह बाद पहली हलकी सिंचाई होनी चाहिए। इसके बाद की सिचाई एक महीने के अंतराल में होनी चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
राजमा के पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए इसे खरपतवार से बचाना बहुत जरूरी है। अन्यथा खरपतवार मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्वों को सोख लेते हैं और पौधों की बढ़वार रूक जाती है। जिससे उत्पादन पर फर्क पड़ सकता है। इसलिए खरपतवार नियंत्रण के लिए बुवाई के बाद पेंडीमेथालिन छिरकव 3.3 लीटर प्रति हेक्टर के हिसाब से 700-800 लीटर जल में मिला के छिड़काव करना चाहिए।
रोगों से रोकथाम
राजमा के पौधौं में कई तरह के रोग देखे जाते हैं। इसलिए समय रहते इसका नियंत्रण कर लेना चाहिए, अन्यथा फसल खराब हो सकती है। राजमा में तना गलन प्राय: देखा जाता है। इसकी रोकथाम के लिए उचित मात्रा में कार्बेन्डाजिम छिड़क देना चाहिए। इसके अलावा कोणीय धब्बा रोग से पौधे को बचने के लिए उसपे उचित मात्रा में कार्बेन्डाजिम को छिड़क देना चाहिए। इसके अलावा माहू, फली छेदक, पर्ण सुरंगक से भी राजमा की सुरक्षा आवश्यक है।
कटाई
राजमा के बीज जब पक जाए तो उसे काट कर एक दिन के लिए खेत में ही छोड़ देना चाहिए। उसके बाद दाना निकाल लें। अच्छी फसल होने पर राजमा एक हेक्टेयर में 1500 से 2000 किलो उपज दे सकता है।