मेहनत करने वालों के लिए राहें खुद बन जाती हैं। ग्राम पंचायत रोझी में रहने वाले किसान धर्मपाल के परिवार पर यह कहावत चरितार्थ होती है। पहले महात्मा गांधी नरेगा के अकुषल श्रम पर आश्रित धर्मपाल का परिवार अब अपने खेतों में सब्जी उत्पादन कर पूरी तरह से आजीविका के स्थायी साधन से जुड़ गया है। इनके खेतों में होने वाली सब्जी की उपज से इन्हे प्रतिमाह औसतन 12 से 13 हजार रूपए की आय होने लगी है। श्री धर्मपाल के परिवार को रोजगार के अवसरों के लिए परेषान नहीं होना पड़ता है और साथ ही दैनिक खर्च के लिए आवष्यक धनराषि की समस्या से भी निजात मिल गई है। महात्मा गांधी नरेगा के तहत पंजीकृत इस श्रमिक परिवार को अब रोजगार की कोई चिंता नहीं है। महात्मा गांधी नरेगा के तहत बनी डबरी से अब इनकी हर समस्या आसानी से सुलझ रही है। मुस्कुराते हुए श्री धर्मपाल बतलाते हैं कि अब कोनो चिंता नई है डबरी के पानी ले मस्त सब्जी होवत है और केल्हारी बाजार में तुरत बिक जाथे। अपने गांव से महज पांच किलोमीटर दूर लगने वाले साप्ताहिक बाजार के अलावा ज्यादा फसल होने पर दैनिक रूप से भी यह परिवार अपनी सब्जियों को बेचकर अपना दैनिक खर्च आसानी से पूरा कर रहा है।
महात्मा गांधी नरेगा की मदद से एक पंजीकृत श्रमिक परिवार के सफलता की यह कहानी मनेन्द्रगढ़ जनपद पंचायत के अंतर्गत ग्राम पंचायत रोझी की है। यहां एक किसान परिवार के मुखिया धर्मपाल अपने बेटों श्री उदयपाल और अजयपाल के साथ रहते हैं। इनके परिवार में कुल आठ सदस्य हैं और घर में महात्मा गांधी नरेगा के तहत इनके पास दो जाबकार्ड हैं। श्री धर्मपाल ने बताया कि इनके पास कुल पांच एकड़ भूमि है जिसमें यह पहले केवल धान व गेंहू की फसल लगाते थे। परंतु उपज उतनी नहीं होती थी कि साल भर का दैनिक खर्च भी निकाल सकें। खेती के बाद इनके पास कोई अन्य रोजगार का साधन नहीं होने से इनके परिवार के सभी वयस्क सदस्य महात्मा गांधी नरेगा के रोजगारमूलक कार्यों पर ही आश्रित रहते थे। ग्राम पंचायत में आयोजित ग्राम सभा से इन्हे महात्मा गांधी नरेगा के तहत बनाए जानी वाली डबरी की जानकारी होने पर इन्होने अपने खेतों में डबरी बनाने का आवेदन ग्राम पंचायत को दिया। इनके परिवार को वित्तीय वर्ष 19-20 में ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत निजी भूमि में डबरी निर्माण कार्य एक लाख छियासी हजार की राषि से निर्माण हेतु स्वीकृत किया गया।
श्री धर्मपाल बतलाते हैं कि कार्य प्रारंभ होने से गत वर्ष लाकडाउन के दौरान उन्हे और उनके परिवार के सदस्यों को गांव में ही रोजगार का अवसर मिल गया और इनकी स्वयं की सिंचाई की सुविधा भी तैयार हो गई। डबरी का उचित स्थल पर निर्माण होने से उसमें पहली बारिष से ही पर्याप्त पानी भर गया। जिससे उन्हे धान की फसल की बोनी सही समय पर की और साथ ही अपने एक एकड़ खेतों में सब्जी का उत्पादन प्रारंभ कर दिया। ग्राम पंचायत के रोजगार सहायक श्री अंगद ने बताया कि स्वीकृति के बाद श्री धर्मपाल के खेतों में तकनीकी सहायक के मार्गदर्षन में ग्राम पंचायत के माध्यम से डबरी का निर्माण कराया गया। डबरी के निर्माण कार्य अप्रैल के दूसरे सप्ताह बाद प्रारंभ कर जून माह में कार्य को पूरा कराया गया। इस कार्य में इनके परिवार को 100 दिन का रोजगार करने से 18 हजार रूपए से ज्यादा का लाभ हुआ। अपने खेतों में डबरी बन जाने के बाद से खुषहाली के राह पर अग्रसर श्री धर्मपाल बतलाते हैं कि पानी अच्छा भरने पर इन्होने सौर सुजला योजना के तहत अपने डबरी में एक सोलर पंप लगा लिया जिससे भरपूर सिंचाई सुविधा मिल गई है। अपना साधन होने से सब्जी की खेती समय से पहले कर लेते हैं इससे बाजार में अच्छी कीमत मिल जाती है। गांव से पांच किलोमीटर दूर केल्हारी में साप्ताहिक बाजार प्रत्येक षनिवार को लगता है जहां हाथों हाथ सब्जियां बिक जाती हैं। इससे इनके परिवार को हर सप्ताह दो से ढाई हजार रूपए का लाभ हो जाता है। अब इनके खेती के कार्य में दोनों बेटे और पूरा परिवार मेहनत करके रोजगार की चिंता से मुक्त हो गया है। साथ ही इन्होने अपने डबरी में तीन किलो मछली बीज भी डाला है श्री धर्मपाल बताते हैं कि बारिष के बाद मछलियां बड़ी होने पर वह कम से कम पच्चीस से तीस हजार की मछली भी जरूर बेच सकेंगे। महात्मा गांधी नरेगा की मदद से यह परिवार अब निष्चिंत होकर अपनी आजीविका चला रहा है।