मीठे रस से भरे गन्ने की खेती
मीठे रस से भरे गन्ने की खेती

गन्ना की मिठास का हर कोई दीवाना होता है। और इसका रस तो गर्मियों में बड़े चांव से इस्तेमाल किया जाता है। वहीं यह महत्वपूर्ण फसलों में है। साथ ही यह वाणिज्यिक फसल होने के कारण इसे नकद की फसल भी कहते हैं। क्योंकि यह शक्कर और गुड़ उत्पादन में काम आता है। और शक्कर और गुड़ का उपयोग तो हर घर में होता है, इसलिए इसकी महत्ता सभी को पता है। इसके साथ ही गन्ने की खेती बड़ी संख्या में लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप में रोजगार देती है। गन्ने की खेती से 50 हजार से 2 लाख तक प्रति एकड़ कमाई हो सकती है।  लेकिन यह कृषि तकनीक पर निर्भर है। वैसे देखा जा रहा है कि कृषि तकनीक से एक एकड़ में 400 क्विंटल से 1000 क्विंटल प्रति एकड़ फसल उगाई जा सकती है। तो चलिए आज बात करते हैं गन्ने की खेती के बारे में…
समय और किस्में
वैसे गन्ना की अच्छी पैदावार के लिए अक्टूबर-नवंबर का समय सबसे उत्तम होता है। वहीं बसंत ऋतु में लगने वाला गन्ना फरवरी या मार्च महीने में लगाया जाता है। वहीं किस्मों की बात करें तो इसकी दो किस्में हैं- एक शीघ्र पकने वाली, जो 10-11 महीने में ही तैयार हो जाती है। इसमें  को-7314, को-64, कोसी 671। देर से पकने वाली किस्मोंं में को-6304, को-7318, को-6217 प्रमुख हैं। इसके उन्नत किस्मों की बात करें तो को-8209, को-7704, को-87010, को-जवाहर 86-141, जवाहर 86-572, 12-14 माह में पकने वाली को-जवाहर 94-141, को. जवाहर 86-600, को.जवाहर 86-2087 है।
मिट्टी
गन्ने की खेती के लिए काली भारी मिट्टी, पीली मिट्टी और रेतीली मिट्टी जरूरी है। लेकिन ध्यान रखें कि इसमें नमी तो बरकरार रहे, लेकिन जल भराव बिल्कुल ना होने पाए। साथ ही खेत को अच्छी तरह जुताई कर समतल कर लेना चाहिए। ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके और इसकी जड़ें गहराई तक जा सके।
सिंचाई
गन्ने की फसल के लिए सिंचाई मिट्टी पर निर्भर करती है। यदि मिट्टी रेतीली हो तो सिंचाई की आवश्यकता ज्यादा होगी। लेकिन इसके विपरीत भारी काली मिट्टी में सिंचाई की आवश्यकता कम होती है। इसलिए इसका ध्यान रखें।
कटाई
कटाई करते समय ध्यान रखें की ऑख के ऊपर वाला भाग 1/3 तथा निचला हिस्सा 2/3 भाग रहे।
खाद एवं उर्वरक
गन्ने की बोआई के समय गोबर खाद जरूरी होता है। वहीं यूरिया, सुपरफास्फेट, व म्यूरेट ऑफ़ पोटाश जैसे उर्वरकों उचित मात्रा में फसल को देना चाहिए।
खरपतवार से सुरक्षा
हर फसल की भांति इसमें भी खरपतवार की संभावना बनी रहती है। खरपतवार हर फसल के साथ उग आते हैं और मिट्टी से भरपूर पोषक तत्वों का उपयोग कर पौधों के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए समय-समय पर खरपतवार की निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। पहली बुआई के पश्चात खरपतवार नियंत्रण आवश्यक हो जाता है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो पैदावार प्रभावित हो सकता है। वहीं फसल पकने तक कम से कम 3-4 बार गुड़ाई करते रहना चाहिए।