आज हम बात करते हैं अरण्डी की खेती के बारे में… अरण्डी की स्वतंत्र रूप से भी खेती की जा सकती है, वहीं यदि इसकी मिश्रित बोआई करें तो इसके नीचे लगने वाली फसलों को सिंचाई की आवश्यकता बहुत ही कम होती है। 1 किलोग्राम अरण्डी के बीज से 550 ग्राम तेल प्राप्त होता है। अरण्डी की खेती के लिए मानसून आने के पहले खेतों की एक से दो जुताई अवश्य कर लें। ताकि सूर्य के तेज किरणों से मृदा का शोधन हो और बरसात का पानी समुचित रूप से मिल सके। वहीं रबी फसल की बोआई सितंबर-अक्टूबर में तो गर्मी की फसल के लिए जनवरी में बोआई कर लें।
अरण्डी की खेती के लिए बीजों का उच्च गुणवत्ता वाला होना आवश्यक है। पर्याप्त दूरी बनाकर इसके बीजों का रोपण करना जरूरी है। ताकि पौधों को विकसित होने पर्याप्त जगह मिल सके। वहीं बोने से पहले बीजोपचार अवश्य करें। बीजोपचार थीरम या कैप्टन से 3 ग्राम / किलोग्राम या कर्बेन्डेलियम 2 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से करें। वैसे देखा जा रहा है कि बाजार में आजकल अरण्डी की बहुत सी प्रजातियां उपलब्ध हैं। लेकिन इसकी मुख्य प्रजातियों की बात करें तो 47-1 ज्वाला, ज्योति, क्रांति किरण, हरिता, जीसी-2, टीएमवी-6, किस्में तथा डीसीएच 519, डीसीएच-177, डीसीएच-32, जी.सी.एच -4, जी.सी.एच -5, 6, 7 आदि अरण्डी महत्वपूर्ण किस्में हैं। अरण्डी के बीजों को बोआई से पहले एक या दो दिन तक लगातार भिगो के रखना चाहिए और देशी हल अथवा सीड ड्रिल से बीज की बुआई उचित नमी पर कर सकते हैं। इसके साथ ही बोआई से पहले मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में गोबर खाद मिलाएं। साथ ही अरण्डी के लिए सुझाए गए उर्वरक नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश उपयोग भी विशेषज्ञों से सलाह लेकर करें। अरण्डी की खेती के लिए वैसे तो बारिश का पानी ही पर्याप्त होता है। लेकिन यदि बारिश ना हो या कम हो तो समय-समय पर इसकी सिंचाई कर सकते हैं। साथ ही यदि ड्रीप पद्धति से सिंचाई करें तो 70 से 80 प्रतिशत पानी की बचत हो सकती है। अरण्डी के फसलों में कीट लगने की संभावना बनी रहती है। इसमें फ्यूजेरियम उखटा, जड़ों का गलना, अल्टेरनेरिया अंगमारी, ग्रे रांट आदि हो सकते हैं। इसलिए इसके लिए उचित प्रबंधन करना जरूरी है। इसके अलावा इसके पौधों में सेमीलूपर कीट भी लगते हैं, जो पत्तियों को खा जाती है। इसलिए खास सावधानी रखना चाहिए।