उर्वरक का करें इस्तेमाल
उर्वरक का करें इस्तेमाल

कृषि संचालनालय एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने राज्य के किसानों को मौसम आधारित सलाह दी है कि मानसून के आगमन को मद्देनजर रखते हुए किसान खरीफ सीजन के लिए धान एवं अन्य फसलों के लिए तैयारियां कर ले। कीट व्याधियों की प्रतिरोधी एवं सहनशील किस्में छत्तीसगढ़ राज्य एवं विकास निगम एवं इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर में उपलब्ध है।  

इन पर पौध रोगों एवं कीटों का असर कम होता है इसलिये किसान अपने प्रक्षेत्रों में लगाने वाली किस्मों का चुनाव करें एवं बीजों को फफूंद नाशी का उपचार करने के बाद ही बोवाई हेतु उपयोग करें। किसान भाई मृदा स्वास्थ्य के आधार पर ही खाद उर्वरक का उपयोग करें।

किसानों को मौसम आधारित सलाह दी गई है कि धान का रोपा पद्धति हेतु नर्सरी डालें। धान की रोपा हेतु नर्सरी की बोआई करे। इसके लिए मोटा धान 50 किलो ग्राम या पतला धान 40 कि.ग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से बीज डाले। धान का थरहा डालने या बोवाई से पूर्व स्वयं उत्पादित बीजों को नमक के घोल से उपचारित करें। प्रमाणित या आधार श्रेणी के बीजों को पैकेट में प्रदाय किये गये फफूंद नाशक से अवश्य उपचारित करें। किसान भाइयों को धान एवं अन्य फसल बोने के लिए तैयार रहने तथा सोसाइटी से उन्नत बीज एवं उर्वरक उठाकर भंडारण करने की सलाह दी जाती हैं।

जिन स्थानों में मानसून पूर्व वर्षा हुई हो वहाँ कृषक खेतों की जुताई आवश्यक रूप से करें। मानसून पूर्व खुर्रा बुवाई के लिए कतार में सीडड्रिल से बुवाई करें एवं बीज 4 से 5 से.मी. गहराई पर डालें। एवं बुआई पश्चात् वर्षा होने पर अंकुरण पूर्व निंदानाशक का छिडकाव करें। खरीफ फसल लगाने हेतु बीज एवं उर्वरक की अग्रिम व्यवस्था करें। सिंचाई के साधन उपलब्ध होने की स्थिति में धान का थरहा तैयार करने के लिए खेतों में पलेवा देकर उपयुक्त ओल आते ही खेतों की अच्छी तरह जुताई से मिट्टी भुरभुरी कर खेत तैयार करें। इस प्रक्रिया से न केवल खरपतवार एवं कीट व्याधियाँ काफी हद तक नियंत्रित हो जायेगें साथ ही साथ धान का थरहा तैयार करने में सुविधा हो जायेगी। सोयाबीन, मक्का, मूंगफली आदि फसलों की बुवाई के लिए खेतों को गहरी जुताई कर तैयार करें जिससे बहुवर्षीय घास नष्ट हो जाये।

सब्जियों एवं फलों की फसलों के लिए किसानों को सलाह दी गई है कि थरहा (नर्सरी) को ऊँचे स्थान पर 15 से.मी. ऊँची हुई क्यारियों में लगाये तथा वायरस रोग से बचाने हेतु सफेद एग्रोनेट (मच्छरदानी) के अंदर लगावें। थरहा के पौधों को गलन से बचाने हेतु बीज को उपचारित कर बुवाई करें। आम, नीबूं वर्गीय एवं अन्य फसलों में सिचाई प्रबंधन करें। नये फल उद्यान के लिए तैयारी करें। फलदार वृक्षों हेतु निर्धारित दूरी पर गड्डे खोदकर छोड़ दें। इसी तरह से पशुपालक किसानों को सलाह दी गई है कि पशुओं को 50-60 ग्राम नमक पानी में मिलाकर अवश्य खिलाये। दुधारू पशुओं के आहार में दाना मिश्रण की मात्रा जरूर बढ़ावें।