मसूर दाल में भरपूर मात्रा में प्रोटीन, फाइबर, कार्बोहाइड्रेड व कम मात्रा में कैलोरी होती है। इसके अलावा फोलेट, ट्राइपोफान, मैंगनीज, लौह, फॉस्फोरस, तांबे, विटामिन बी1 और पोटेशियम आदि मौजूद होता है। इसके साथ ही मसूर दाल कोलेस्ट्रॉल को कम करने में, दिल को स्वस्थ रखने में, मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए और अच्छे पाचन के लिए मसूर दाल उपयोगी को उपयोगी बताया गया है। तो आइए आज जानते हैं मसूर की खेती के बारे में…
जलवायु
मसूर की खेती के लिए उपोष्ण जलवायु उत्तम होती है। साथ ही इसकी खेती जाड़े के मौसम में की जाती है। इससे फसल उत्पादन अच्छा होता है।
मिट्टी
वैसे तो मसूर की खेती प्राय: सभी प्रकार की मिट्टियों में की जाती है। किन्तु दोमट एवं बलुई दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम होती है। साथ ही काली मिट्टी मटियार मिट्टी एवं लैटराइट मिट्टी में भी इसकी अच्छी खेती की जा सकती है। लेकिन ध्यान रखें मिट्टी में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
किस्में
मसूर की अच्छी पैदावार वाली किस्में जे.एल-3, जे.एल-1, आई. पी. एल 8 पंत एल 209, पूसा मसूर 5, पूसा वैभव, पूसा शिवालिक आदि हैं।
मात्रा
मसूर की बोनी के लिए एक हेक्टेयर में 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते हैं। यदि बीज का आकार छोटा हो तो 35 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से बोनी की जा सकती है। बड़े दानों के लिए 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर उपयोग करें।
बोनी
मसूर की बोनी के लिए यदि आप कतार पद्धति का उपयोग कर रहे हों तो कतार से कतार की दूरी 30 सेमी रखनी चाहिए।
ऐसे करें बीज का उपचार
जैसा कि आप जानते ही हैं कि बोने से पहले बीजोपचार करना जरूरी होती है। इससे फसल अच्छी होती है और कीड़ों के नुकसान की आशंका भी नहीं रहती है। इसलिए मसूर की बोनी से पहले बीज जनित रोगों से बचाव के लिये 2 ग्राम थाइरम +1 ग्राम कार्वेन्डाजिम से एक किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोआई करें।
समय
मसूर की बोनी अक्टूवर के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक मसूर की बोनी करना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण
किसी भी फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए निंदाई गुड़ाई महत्वपूर्ण है। इसलिए मसूर की फसल में यदि खरपतवार दिखाई दें तो इसका तुरंत उपचार कर लेना चाहिए। अन्यथा खरपतवार फसल से जरूरी तत्वों को सोख कर फसल को कमजोर कर सकते हैं।
कालर राट या पद गलन
यह रोग पौधे पर प्रारंभिक अवस्था में होता है। पौधे का तना भूमि सतह के पास सड जाता है। जिससे पौधा खिचने पर बडी आसानी से निकल आता है। इसके साथ ही जड़ सडन रोग मसूर के पौधो पर देरी से प्रकट होता है, रोग ग्रसित पौधे खेत में जगह जगह टुकडों में दिखाई देते है व पत्ते पीले पड़ जाते है तथा पौधे सूख जाते है। जड़े काली पड़कर सड़ जाती है।
गेरूई रोग
इस रोग का प्रकोप होने पर सर्वप्रथम पत्तियों तथा तनों पर भूरे अथवा गुलावी रंग के फफोले दिखाई देते है जो बाद में काले पढ जाते है रोग का भीषण प्रकोप होने पर सम्पूर्ण पौधा सूख जाता है। इसके प्रबंधन के लिए प्र्रभावित फसल में 0.3प्र. मेन्कोजेब एम-45 का 15 दिन के अन्तर पर दो बार अथवा हेक्जाकोनाजोल 0.1प्र. की दर से छिडकाव करना चाहिये।
कीटों से सुरक्षा
इसमें मुख्य रूप से माहु तथा फलीछेदक कीट का प्रकोप होता है। इसके नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोरपिड 150 मिलीलीटर / हें. एवं फली छेदक हेतु इमामेक्टीन बेजोइट 100 ग्रा. प्रति हें. की दर से छिडकाव करना चाहिये।
कटाई
मसूर की फसल के पककर पीली पडने पर कटाई करनी चाहिए।