मशरूम की खेती को बढ़ावा देने किसानों को दिया गया प्रशिक्षण – उत्पादन की विधि और कच्ची सामग्री

जिला प्रशासन कोरिया् एवं इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के मार्गदर्शन में कृषि विज्ञान केन्द्र में मशरुम की खेती को बढ़ावा देने एवं रोजगार से जोडऩे के लिए 50 से अधिक कृषकों को प्रशिक्षण प्रदाय किया गया। वर्श 2020-21 कोरोना काल में कोरिया जिला के कृषकों को मौसम के अनुसार अलग-अलग मशरुम प्रजाति के मशरुम उत्पादन प्रयोगशाला से उच्च गुणवत्ता वाले मशरुम बीज तैयार कर प्रदाय किया गया जिसमें मुख्य रुप से ऑस्टर मशरुम बीज की 615 किलोग्राम 71 कृषक, बटन मशरुम बीज 80 किलेाग्राम 6 कृषक, दुधिया मशरुम के 20 किलोग्राम 04 कृषक एवं पैरा मशरुम के 30 किलोग्राम 05 कृषकों को दिया गया जिससे कोरिया जिला में मशरुम की उत्पादन में काफी बढोत्तरी हुई। विगत वर्ष कोरिया जिला में बटन मशरुम के कुल उत्पादन लगभग 670 किलोग्राम हुआ था जिससे कृषकों  को लगभग 2 लाख रुपये का शुद्ध लाभ प्राप्त हुई, वहीं आस्टर मशरुम की उत्पादन लगभग 5 हजार 890 किलोग्राम हुआ जिससे कृषकों को लगभग 3 लाख 50 हजार की आमदनी हुई।आयस्टर मशरुम की खेती कोरिया जिला में काफी मात्रा में की जाती है। ऑस्टर कच्चा मशरुम को कृषकों  द्वारा लोकल बाजार, दुकानों एवं बचे हुए कच्चा मशरुम, सूखा मशरुम को कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा गठित किसान उत्पादक संगठन को बेचा जिसमें ऑयस्टर मशरुम को मूल्य संवद्र्धन एवं प्रसंस्करण कर ऑयस्टर सुखा मशरुम लगभग 80 हजार रुपये, मशरुम बड़ी 20 हजार हजार रुपये एवं मशरुम पापड़ 15 हजार रुपये कृषकों द्वारा विगत वर्श में बेचा गया। किसान उत्पादक संगठन द्वारा मशरुम उत्पाद को ट्राईफेड, हस्तशिल्पबोर्ड, खादी ग्रामोद्योग एवं फिल्पकार्ड में बेचा गया, जिससे कोरिया जिला के कृषकों को मार्केटिंग का प्लेटफार्म मिलने से काफी आमदनी प्राप्त हो रही है।

इसी तरह दुधिया मशरुम का कुल उत्पादन लगभग 50 किलोग्राम रहा और पैरा मशरुम का अनुमानित उत्पादन 120 किलोग्राम तक रहा विगत वर्षों में कोरिया जिला के 10 कृषकों  को मशरुम बीज बनाने की विधि एवं उत्पादन तकनीक पर कोरोना काल में 5-5 के समूह बनाकर 14 दिवस का प्रशिक्षण दिया गया। 3 महिला समूह को मशरुम की मूल्य संवद्र्धन एवं प्रसंस्करण पर प्रशिक्षण दिया गया मशरुम की खेती से कृषकों को नई दिशा एवं रोजगार मिला।

के.वी.के. कोरिया के कृषि वैज्ञानिक विजय कुमार अनंत ने बताया कि कोरोनाकाल में कृषकों  का रुझान मशरुम की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है। कोरिया जिला के मशरुम उत्पादक कृषकों एवं किसान उत्पादक संगठन को बाजारों से जोड़ा गया है। विगत वर्शों से कोरिया जिला में मशरुम की खेती को बढ़ावा देने एवं मशरुम की खेेती का प्रचार-प्रसार करने के लिए तथा कृषकों  को आत्मनिर्भर बनाने के लिए व्यावसायिक रुप से की जाने वाली मशरुम की खेती जैसे-बटन मशरुम, पैरा मशरुम, ऑयस्टर मशरुम एवं दुधिया मशरुम को मौसम के अनुसार कृषकों के प्रक्षेत्र में प्रयोगिक तौर पर अलग-अलग मशरुम की खेती कराकर व्यावसायिक मशरुम की खेती को फैलाया गया है साथ ही साथ कृषकों  को मशरुम बीज बनाने एवं उत्पादन तकनीक तथा मशरुम की मूल्य संवद्र्धन एवं प्रसंस्करण पर प्रशिक्षण दिया गया, जिससे मशरुम उत्पादक कृषक मशरुम से विभिन्न उत्पाद तैयार कर अधिक आमदनी प्राप्त कर रहे है।

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. रंजीत सिंह राजपूत ने बताया कि के.वी.के. में स्थापित मशरुम प्रयोगशाला से उच्च गुणवत्ता की मशरुम बीज तैयार कर विगत वर्षों में कोरिया जिला के 80 से 90 कृषकों 745 किलोग्राम विभिन्न प्रजाति के मशरुम का बीज प्रदाय किया गया है। जिससे कृषकों को मशरुम की खेती से 6 से 7 लाख की आमदनी प्राप्त हुई है। आगे मशरुम की मूल्य संवद्र्धन एवं प्रसंस्करण कर मशरुम बड़ी, मशरुम पापड़ एवं मशरुम पावडर बनाकर किसान उत्पादक संगठन के द्वारा ट्राईफेड, हस्तशिल्प बोर्ड एवं खादी इंडिया को बेचने की तैयारी है।

मशरूम : उत्पादन की विधि और कच्ची सामग्री…

बरसात के मौसम के आगमन के साथ ही बाजार में मशरूम बहुतायत में दिखने लगते हैं। स्वाद और स्वास्थ्य दोनों ही दृष्टिकोण से ये काफी फायदेमंद माने जाते हैं। इसलिए इसकी मांग भी काफी होती है। मशरूम शुरूआत से ही 500 से 600 प्रतिकिलो की दर से बाजार में बिकता है और महंगी कीमतों के बाद भी लोग इसे हाथों-हाथ लेते हैं। मशरूम सिर्फ दो महीने तक ही मिलता है। इसलिए भी इसकी मांग काफी होती है। मशरूम सेहत के लिए फायदेमंद तो होता ही है और तो और इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि कम  मेहनत एवं न्यूनतम लागत में इसकी खेती बखूबी की जा सकती है। तो चलिए आज बात करते हैं मशरूम उत्पादन की विधि और इसमें लगने वाली कच्ची सामग्रियां के बारे में…

1. कच्ची सामग्री
मशरूम उत्पादन के लिए कच्ची सामग्री के तहत मशरूम स्पॉज (बीज) गेहूं व धान के पैरे की कुट्टी (लगभग 10 किलो), फार्मेलिन/ चुना उपचार हेतु, कवकनाशी, पॉलिथीन बैग (साइज 16/21) की आवश्यकता होती है।

2. उत्पादन की तकनीकी
1. सबसे पहले पैरा के 5 -10 इंच की कृट्टी कर लें।

2. इसकें पश्चात 100 लीटर पानी मे 1 से 2 किलोग्राम चूना या 120 मि.ली. फॉर्मेलिन  मिलाकर, अच्छे से घोलने के बाद 10 किलोग्राम पैरे की कुट्टी डालकर रातभर ढंक कर छोड़ दें।

3. दूसरे दिन सुबह उसे छांव में अतिरिक्त नमी सोखने हेतु सूखा दें।

4. कुट्टी में नमी मापने हेतु यह ध्यान दना जरूरी है उसे दबाने पर पानी नहीं छूटना चाहिए, लेकिन हल्की नमी अवश्य रखें।

5. इस प्रकार पैरे की कुट्टी तैयार होने के बाद उसे एक जगह पर ढ़ेर बना कर रख लें।

6. फिर से उसे फॉर्मेलिन के घोल मे डुबा कर पैकिंग की प्रक्रिया शुरू कर दें।

7. पॉलिथिन बैग मे पैरे कुट्टी की एक परत फिर बीज की एक परत के साथ 4 से 5 लेयर डालकर पालिथिन बैग को कड़क बांध दें।  और सभी बैग्स मे 18-20 छेद किये जाते हैं ताकि आक्सीजन का आदान प्रदान हो सके।

8. बैग तैयार होने के पश्चात उसे एक बंद कमरे मे उपचारित करने के बाद (फॉर्मेलिन का स्प्रे) रेक व रस्सी की सहायता से लटकाया जाता है जहां 15 से 20 दिन की अंतराल मे मशरूम पॉलिथिन बैगो मे आने लगते है।

बीमारी नियंत्रण
पॉलिथिन बैगों मे समय-समय पर आवश्यकता अनुसार कीट बीमारी आदि से नियंत्रण हेतु कीट एवं कवकनाशक का भी उपयोग किया जा सकता हैं। लेकिन ध्यान रखें इसकी मात्रा सीमित ही हो तो ज्यादा अच्छा है।

उत्पादन
एक किलो स्पॉजं से 10 बैग तैयार किये जाते हंै। एक बैग में 100 ग्राम बीज की ही मात्रा लगती है। और अगर उत्पादन की बात की जाये तो एक बैग से कम से कम दो किलो से अधिकतम 5 किलो उत्पादन लिया जा सकता है और यह दो से 3 माह की फसल होती है। जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है।