के सेवढ़ा के युवा कृषक  दयाशंकर राजपूत परम्परागत फसलों के साथ आधा बीघा जमीन में ब्रोकिली (हरी गोभी) एवं लाल पत्ता गोभी की खेती कर सामान्य फसलों की अपेक्षा तीन गुना अधिक मुनाफा ले रहे है। उनके द्वारा पैदा की जा रही ब्रोकिली की खरीदी कंपनी द्वारा खेत से ही कर रही है।

    रसायन शास्त्र में एमएससी की शिक्षा ग्रहण कर गांव में अतिथि शिक्षक के रूप में बच्चों को अध्यापन का कार्य करते थे। लेकिन विश्वव्यापी कोरोना महामारी के कारण लॉक डाउन के दौरान स्कूल बंद होने से बच्चों को पढ़ाने का कार्य भी बंद हो गया। इसी बीच दयाशंकर ने सोचा क्यों न कुछ नया किया जाए। इसके लिए उनके मन में विचार आया कि परम्परागत खेती के साथ ऐसी खेती की जाए जिससे नगद पैसा भी मिले। वे इस बात को भली भांति जानते थे कि समय के अनुसार कम भूमि में कम लागत की अधिक मुनाफा की खेती कैसे लें। इसके लिए उन्होंने उद्यान विस्तार अधिका श्री मनोज माहौर से सम्पर्क किया। माहौर ने बताया कि ब्रोकिली एवं लाल पत्ता गोभी की खेती कर अधिक मुनाफा ले सकते है।  दयाशंकर ने उद्यान विस्तार अधिकारी से मिले परामर्श एवं मार्गदर्शन उपरांत आधा बीघा जमीन में तीन रूपये के मान से दो हजार ब्रोकिली के पौधे और 300 पौधे लाल गोभी के लगाए। इस प्रकार कुल 10 हजार रूपये का खर्चा आया।  यह ब्रोकिली की खेती  तीन माह में तैयार हो गई। ब्रोकिली की खेती से उन्हें 30 से 40 हजार रूपये की आय हुई। दयाशंकर ने बताय कि 30 रूपये प्रति किलो के मान से एक निजी कंपनी उनके खेत से ही ब्रोकिली खरीद रही है। उन्होंने बताया कि ब्रोकिली के एक पौधे तीन से चार वार फसल ली जाती है। उन्होंने बताया कि परम्परागत गेंहूं, चने की फसल से उन्हें बमुश्किल 7 से 8 हजार रूपये की आय होती थी। लेकिन ब्रोकिली की फसल लेने में गोबर की खाद, सिंचाई हेतु ड्रिप एवं मर्चिग का उपयोग किया गया जिस कारण कम भूमि कम लागत एवं कम पानी में अधिक आय हो रही है।

दयाशंकर ने बताया कि ब्रोकिली की मांग प्रमुख रूप से दिल्ली, मुंबई ग्वालियर सहित महानगरों के पांच सितारा होटलों में बड़े पैमाने पर उपयोग की जाती है। ब्रोकिली गोभी की ही प्रजाति है जो हरे रंग की होती है। ब्रोकिली का उपयोग कैंसर को रोकने के साथ-साथ विभिन्न बीमारियों से शरीर में लडऩे की क्षमता पैदा करती है।