बहुत दिनों से कलू अहिरवार के दिमाग में चल रहा था कि कुछ ऐसा काम किया जाये जिसमें ज्यादा समय और मेहनत न लगे और मजदूरी के साथ-साथ कुछ और धन्धा- पानी भी शुरु हो जाये। थोड़ा मनन करने के पश्चात उन्होंने सोचा कि, क्यों न मुर्गी पालन शुरू किया जाये?  यह सोच कर वे पशु चिकित्सालय मालथौन पहुँचे। उन्होंने बताया कि एक दिन साप्ताहिक बजार था और उन्हें बाजार तक जाना ही था। फिर क्या था वे बाजार के दिन ही पशु चिकित्सालय के डॉक्टर के पास पहुँचे। डॉक्टर के पास बैठ कर उन्होंने अपने मन की बात रखी। डाक्टर साहब ने उनकी बात ध्यान से समझी और कलू से कहा कि वे उन्हें एक योजना बता रहे हैं। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि म.प्र. शासन द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों के लिए एक योजना चलाई जा रही है जिसमें मुर्गी पालकर कुछ अतिरिक्त आय के साथ घर पर ही मीट, मांस और अण्डे का जुगाड हो सकता है। जिसमें आप थोडी देखभाल कर लाभ कमा सकते हैं। इसके बाद कलू ने डॉक्टर से योजना के बारे में विस्तार से समझा। कलू को योजना अच्छी लगी तो उन्होंने तुरन्त ही फार्म लिया और उसे पूर्ण कर अपने ग्राम पंचायत से अनुमोदन करवा करवा लिया। अंशदान की राशि डॉ साहब को जमा की और कुछ ही दिन पश्चात् उन्हें दो किस्तों में अ_ाईस दिवसीय कलरफुल चूजे प्राप्त हो गये।डाक्टर द्वारा बताई गई विधि के अनुसार उन्होंने चूजों का रख रखाव शुरु कर दिया। कुछ दिन बीते और लगभग ढेड माह पश्चात् चूजे बड़े हो चुके थे।अब नर और मादा चूजों की अलग – अलग पहचान होने लगी थी। हालांकि इस बीच बिल्ली और नेवले के कारण कुछ चूजों छति भी हो गयी थी। फिर भी उनके पास चूजों की संतोष जनक संख्या थी। कुछ मुर्गीयों ने तो अण्डे देना भी शुरु कर दिया था। अब कलू सुबह-शाम स्वयं और बच्चों के लिए आमलेट बना कर खा लेता जिससे उसका परिवार खुश रहने लगा। कलू के पास जो मुर्गे थे उनका भी सेवन शुरु कर दिया था। यह सब देखकर उनके पड़ोसी को भी जिज्ञासा हुई। पड़ोसी ने जानना चाहा तो कलू ने योजना के बारे में उन्हें पूरी जानकारी दी। अब कलू और कलू जैसे अन्य लोगों के माध्यम से इस योजना का प्रचार – प्रसार पूरे ग्राम में हो गया और ग्राम के अन्य लोगों ने भी योजना का लाभ लिया।