बैंगन की खेती
बैंगन की खेती

वैसे तो सब्जियों की खेती अगर सही समय और वातावरण में की जाए तो ये फायदा ही फायदा देता है। लेकिन हां, इसके लिए बाजार की उपलब्धता काफी मायने रखती है। अगर बाजार है तो फायदा जरूर होगा। नहीं तो सब्जियां ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाती और खराब हो जाती है। इसके साथ ही सब्जियों की ज्यादा से ज्यादा खेती करनी होगी तो उन्नत किस्म और सही वातावरण का चयन काफी मायने रखता है।

आज हम आपको बता रहे हैं बैंगन की खेती के बारे में। बैंगन की खेती पूरे भारतवर्ष में की जाती है, लेकिन इसके लिए किसानों को अपने क्षेत्र के हिसाब से बैंगन की किस्म का चयन करना आवश्यक है। बैंगन की दो प्रकार की किस्में पायी जाती है। एक सामान्य उन्नतशील किस्में, दूसरी संकर किस्में। इसमें भी दो वर्ग शामिल है। एक वर्ग में लंबे फल वाली बैंगन है, तो दूसरे वर्ग में गोल किस्म के बैंगन शामिल हैं।

वैसे प्राय: बैंगन की खेती का सही समय सितम्बर-अक्टूबर का है। इस महीने में पौध की रोपाई की जाती है। इसके करीब दो महीने बाद यानी दिसम्बर-जनवरी में बैंगन की फसल तैयार हो जाती है। बैंगन की उन्नत किस्में पूसा पर्पल राउंड, पूसा हाईब्रिड-6, पूसा अनमोल और पूसा पर्पल लोंग में से आप किसी भी चुन सकते हैं।

इसके साथ ही अगर ज्यादा उत्पादन चाहिए, तो दो पौधों के बीच की दूरी का खास ध्यान रखा होता है। खाद और उर्वरक खाद व उर्वरक की मात्रा मिट्टी की जांच के हिसाब से ही करनी चाहिए। कतारों का फासला लंबी किस्मों में 60 सेंटीमीटर और गोल किस्मों में 75 सेंटीमीटर रखें। पौधे से पौधे की दूरी 60 सेंटीमीटर रखें। पौधरोपण के बाद सिंचाई अवश्य करें। विषाणु रोग से बचाव के लिए शुरू से ही कीटनाशक दवाएं प्रयोग में लें।