सब्जियों में बैंगन की अपनी अलग ही मांग रहती है। प्राय: हर मौसम में इसका दाम भी सबकी पहुंच के भीतर रहता है, इसलिए अमीर हो या गरीब सभी इसे पसंद करते हैं। इसके अलावा बैंगन में और भी बहुत गुण होते हैं। इसकी हरी पत्तियों में विटामिन ‘सीÓ पाया गया है। इसके बीज क्षुधावर्द्धक होते हैं तथा पत्तियां मन्दाग्नि व कब्ज में फायदा पहुंचाती हैं। साथ ही बैंगन की कई किस्में बाजार में उपलब्ध होती है। इसलिए इसकी मांग भी बराबर बनी रहती है। तो आइए आज चर्चा करते बैंगन की किस्में और उसकी खेती के बारे में
साल में दो बार उगा सकते हैं
बैंगन को साल में दो बार उगाया जा सकता है। यानी सालभर आप इसकी खेती कर सकते हैं। वैसे अक्टूबर नवंबर और जुलाई अगस्त का मौसम इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम है। बैंगन की खेती के लिए ऊंचाई वाले स्थान को छोड़कर किसी भी जगह इसकी खेती की जा सकती है।
जलवायु
जैसा कि आप जानते हैं बैंगन की कई किस्में होती है। इसलिए जलवायु का ध्यान रखना जरूरी है। लेकिन इसे यदि पर्याप्त पानी मिले तो हर मौसम इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। गर्मी में विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
खेती की तैयारी
बैंगन की खेती के लिए खेतों की तैयारी काफी महत्वपूर्ण है। खासकर कीट नियंत्रण के लिए मिट्टी को सूर्य के प्रकाश से उपचारित करना पड़ता है। इसके लिए अप्रैल महीने में आप 20-30 सेंटीमीटर ऊँची क्यारियां लें। इसके बाद सभी क्यारियों में गोबर की खाद तथा करंज कि खली क्यारी में डालकर अच्छी तरह मिला लें। इसके बाद सिंचाई करके इन्हें प्लास्टिक की चादर से ढंक कर मिट्टी से दबा दें। एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई के लिए ऐसी 20-25 क्यारियों की आवश्यकता होती है। ऐसा करने से कवकों और हानिकारक कीटों की उपस्थिति कम हो जाती है।
बोआई का समय
सर्दियों के समय बैंगन की खेती के लिए जुलाई-अगस्त और गर्मियों की फसल के लिए जनवरी-फरवरी तथा वर्षा काल में अप्रैल के महीने में बोआई करें। एक हेक्टेयर खेत में बैगन की रोपाई के लिए समान्य किस्मों का 250-300 ग्रा. एवं संकर किस्मों का 200-250 ग्रा. बीज पर्याप्त होता है।
मिट्टी
बैंगन की खेती के लिए पानी निकासी की अच्छी व्यवस्था वाली मिट्टी सर्वोत्तम होती है। लेकिन यदि इसकी खेती बलुई दोमट जिसमें कार्बिनक पदार्थ की पर्याप्त मात्रा हो, ज्यादा अच्छी मानी जाती है।
किस्में
बैंगन खेतों में बोए जाने के साथ ही आजकल इसे गमले में या छोटे पैमाने पर लगाए जाते हैं। इसकी कई किस्में बाजारों में उपलब्ध है। इसमें पंजाब बहार, पंजाब नंबर 8, जमुनी जीओआई (एस-16), पंजाब बरसाती, पंजाब नीलम, पूसा परपल लौंग, पूसा परपल क्लसचर, पूसा हाइब्रिड 5 प्रमुख है। इसके अलावा अन्य किस्मों की बात करें तो स्वर्ण शक्ति, स्वर्ण श्री, स्वर्ण मणि, स्वर्ण श्यामलीभू भी है। इन किस्मों की बैंगन की खेती किसानों के लिए काफी फायदमंद है। क्योंकि ये बहुत जल्द ही पक जाते हैं और फसल का उत्पादन भरपूर होता है।
तुड़ाई
बैंगन की तुड़ाई के लिए समय का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। अन्यथा यदि इसमें देरी हुई तो फल सख्त और बेरंग हो जाते हैं। इसके चलते इनका उचित दाम नहीं मिल पाता और नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए फलों की मुलायम अवस्था में तुड़ाई करनी चाहिए।
बैंगन में लगने वाले रोग और उपचार
बैंगन में मुख्यत: तना एवं फल बेधक कीट लगता है, जो फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इसके लिए फसल में फेरोमोन पाश लगाकर इस कीट के प्रभाव को कम किया जा सकता है। वहीं जैसिड्स कीट पत्तियों का रस चूसते हैं। इसके फलस्वरूप पत्तियां पीली और पौधे कमजोर हो जाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कार्बराइल (2.0 ग्रा./ली.) अथवा पडान (1.0 ग्रा. ली.) का 10 दिन के अंतर पर प्रयोग करें।
फफूंदजनित रोग
बैंगन मं फफूंदजनित रोग भी लगते हैं। इसका प्रकोप दो अवस्थाओं में देखा गया है। प्रथम अवस्था में, पौधे जमीन की सतह से बाहर निकलने की अवस्था में। तथा अंकुरण के बाद के बाद। इसलिए इसकी रोकथाम के लिए बाविस्टिन (2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) नामक फफुन्दनाशी दवा से बीजों का उपचार करें।
इसके अलावा बैंगन में फल सडऩ मुरझा रोग का प्रकोप भी देखा जाता है। इसलिए विशेषज्ञों से राय लेकर इसका उपचार समय-समय पर करते रहना चाहिए।