पिछले दो दिनो से कई जगहो पर बेमौसम वर्षा हुई है। ऐसे स्थिति मे सब्जियो मे बीमारी एवं कीट के प्रकोप बढने की आशंका है। ऐसे में उद्यानिकी विभाग ने सब्जी उत्पादक किसानों को अपनी फसलों और टूट चुकी सब्जियों को बारिश और पाले से बचाने के लिए समसामयिक सलाह जारी की है। इस समय जिले के किसानों ने आलू, प्याज, टमाटर, बैगन, मिर्च, गोभी वर्गीय, पालक, मेथी, इत्यादि सब्जी की फसल खेतों में लगाई है। बेमौसम बारिश के इस मौसम में किसानो को अपनी फसल पर लगातार नजर रखनी होगी।
सब्जी की फसल मे किसी भी बीमारी के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी या डाइथेन-एम 45 2.00 ग्राम पर लीटर पानी का छिडकाव करना चाहिए। मौसम अनुसार पत्तियो मे किसी भी तरह की धब्बे या स्पॉट जैसे लक्षण नही दिखाई देने पर भी सुरक्षा की दृष्टि से फफूंद नाशक का स्प्रे करना चाहिए। आलू और दूसरी सब्जियो की फसलों में भी पत्तियो पर धब्बे जैसे लक्षण आने पर डाईथेन एम-45 या ब्लाइटॉक्स दवा की एक-दो छिडकाव बदल-बदल कर सकते है।
किसानों को मूली एवं सेम जैसी फसलो मे रस चुसने वाले कीट एफीड, जैसीड आदि का प्रकोप दिखने पर तुरंत 1 से 2 छिडकाव रोगर – 1 एम.एल प्रति लीटर पानी मे या इमीडाक्लोरप्रिड 0.60 एम.एल. प्रति लीटर या 10 एम. एल प्रति स्प्रे की मान से प्रभावित पौधो मे छिडकाव की सलाह दी जाती है। सब्जियो की फसल पर पत्ते खाने वाले कीड़े दिखने पर प्रोपेनोफॉस या क्यूनालफॉस 2 एम.एल. प्रति लीटर पानी के साथ छिडकाव करना चाहिए।
उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने बताया है कि ठंड का मौसम शुरू हो गया है और आने वाले समय मे जाडे का प्रकोप और बढने वाला है। दिन-प्रतिदिन तापमान मे कमी आ रही है। अधिक सर्दी से फसलो की उत्पादकता पर विपरित असर पडता है और परिणाम स्वरूप कम उत्पादन प्राप्त होता है। इसलिए सर्दी की मौसम मे फसलो को शीत लहर एवं पाले से बचाने जरूरी है। अधिकारियों ने बताया कि जब वायुमंडल का तापमान 0 डि. सेल्सीयस या इसके नीचे चला जाता है, तो हवा का प्रभाव बंद हो जाता है। जिसकी वजह से पौधो की कोशिकाओ के अंदर और ऊपर मौजूद पानी जम जाता है। इसे ही पाला कहते है। शाम को आसमान साफ हो, हवा बंद हो, तापमान कम हो तो सुबह पाला पडने की संभावना रहती है। पाला पडने से पौधो की कोशिकाओ की दीवारे क्षतिग्रस्त हो जाता है और कोशिका छिद्र (स्टोमेटा) नष्ट हो जाता है। पाला पडने की वजह से कार्बन-डाई ऑक्साइड एवं ऑक्सीजन वाष्प की विनियम प्रक्रिया भी बाधित होती है। पाला पडऩे से पौधो की पत्तियां झुलसने लगती है, पौधो के फल व फूल झडने लगते है। फूल झडने से पैदावार मे कमी आती है।
इस मौसम में पाले का सबसे अधिक असर पपीता, आम, टमाटर, मिर्च, बैंगन, मटर, धनिया की फसलों पर हो सकता है। पाला पडने की संभावना को देखते हुए फसलों को सुरक्षित रखने के लिए जरूरत के हिसाब से हल्की-हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। सुबह 4 बजे के आसपास खेत पर धुआ करना चाहिए। सल्फर (गधंक) का छिडकाव करने से रासायनिक सक्रियता बढ जाती है और पाले से बचाव के अलावा पौधे को सल्फर तत्व मिल जाता है। चूंकि सल्फर (गधंक) से पौधे मे गर्मी बनती है। इसलिए खेतों में 6 से 8 कि.ग्रा. सल्फर डस्ट प्रति एकड के हिसाब से डाल सकते है। घुलनशील सल्फर 2 ग्राम प्रति लीटर पानी मिला कर फसल पर छिडकाव करने से भी पाले के असर को कम किया जा सकता है। सब्जी वर्गीय फसलों को पाले से बचाने के लिए हायोयूरिया 1 ग्राम प्रति लीटर पानी मे घोलकर छिडकाव कर सकते है। यह छिड़काव 15 दिनो मे दोहराना चाहिए। पाला पडने की संभावना वाले दिनो मे मिट्टी की गुुडाई या जुताई नही करनी चाहिए, क्योकि ऐसा करने से मिट्टी का तापमान कम हो जाता है।