हींग की खेती
हींग की खेती

हींग बहुउपयोगी खाद्य पदार्थ है। इसका उपयोग रसोई में बघार लगाने के लिए बहुतायत में किया जाता है। इसके अलावा भी हींग के कई औषधीय गुण हैं। जिसके कारण हर रसोई घर में यह मौजूद रहता है।  औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण आयुर्वेद में इसका बहुत महत्व है। यह शरीर में वात और कफ ठीक करने के साथ पित्त के स्तर को भी बढ़ाता है। यह शरीर को गर्म रखता है तथा भूख बढ़ाता है। हींग का अभी तक आयात किया जाता रहा है। लेकिन अब भारत में भी इसकी खेती शुरू करने की तैयारी है। भारत में पहली बार इसकी खेती हिमाचल प्रदेश में इस्तेमाल की जा रही है। कॉउन्सिल फॉर साइंटिफिक एंड रिसर्च के अनुसार हमारे देश में इसकी खेती पहली बार की जा रही है।

40 प्रतिशत इस्तेमाल भारत में
वैसे तो हींग की अभी तक भारत में नहीं की जाती है, लेकिन बताया जा रहा है कि कुल हींग उत्पादन का 40 प्रतिशत इस्तेमाल अकेले भारत में किया जाता है। वैसे आपको बता दें कि भारत में इसका आयात ईरान, अफऩागिस्तान और उजबेगिस्तान आदि देशों से किया जाता है। इसमें भी अफऩागिस्तान से आने वाले हींग को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।

जलवायु
यह ठंडे और शुष्क वातावरण में उगाया जाता है। इसलिए इसकी खेती ऐसी जगह में की जाती है जहां तापमान ठंडा और वातावरण शुष्क हो।

किस्में
हींग की अब तक 130 किस्में मिलती है। इसमें कुछ तो भारत में उगाई जा रही हैं, लेकिन ज्यादा आयात पर निर्भर हैं। इसकी सबसे प्रमुख कि़स्म फेरूला एसफोइटीडा की खेती भारत में नहीं की जाती है। जिसे ईरान से मंगवाया गया है।

उत्पादन
एक हींग के पौधे से उत्पादन प्राप्त करने में लगभग 4 साल का समय लग जाता है। इसलिए इसकी कीमत भी 40 हजार प्रतिकिलो के आसपास होती है। हींग इसके पौधों के जड़ों से निकाले गए रस से बनाया जाता है।

दो प्रकार
बताया जाता है कि हींग के भी दो प्रकार होते हैं- एक सफेद और एक लाल।  सफ़ेद हींग पानी में घुल जाता तथा लाल या काला हींग तेल में घुलता है। कच्चे हींग की गंध बहुत तीखी होती है इसलिए वह खाने लायक नहीं होता है। इसलिए गोंद तथा स्टार्च को मिलाकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में खाने लायक तैयार किया जाता है।