आकार में गोल, छोटा और स्वाद में खट्टा-मीठा ब्लूबेरी ग्रीष्मकालीन फसल है। इसे नीलबदरी भी कहा जाता है। इसकी खेती वैसे तो उत्तरी अमरीका में होती है। इसके साथ ही यह यूरोप, कनाडा और भारत में जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी उगाया जाता है। ब्लूबेरी में 84 प्रतिशत पानी, फाइबर, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन ई, विटामिन के, लोहा, मैंगनीज, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे खनिज शामिल हैं। यह वजन कम करने, त्वचा के दाग, झुर्री, मुहासों के लिए, दिल और दिमाग के लिए फायदेमंद है। तो चलिए आज हम बात करते हैं ब्लूबेरी की खेती के बारे में…
- जलवायु
ब्लूबेरी ठंडी जलवायु की फसल है। आद्र्र और हल्के ग्रीष्म जलवायु में भी इसकी खेती की जाती है।
- मिट्टी
इसकी खेती के लिए रेतीली, अम्लीय मिट्टी आवश्यक है। जिसका पीएच मान 4 से 4.5 होना चाहिए।
- मिट्टी की जांच
ब्लूबेरी की खेती से पहले मिट्टी की जांच आवश्यक है। क्योंकि यह अम्लीय मिट्टी की फसल है, इसलिए मिट्टी की जांच जरूरी है।
- तैयारी
ब्लूबेरी की खेती से पहले खेत में उपस्थित सारे खरपतवार को नष्ट करना जरूरी है। इसलिए खेत की तैयारी आवश्यक है। इसलिए खेत की जुताई अच्छी से करनी चाहिए। इसके अलावा जल निकासी की व्यवस्था भी आवश्यक है।
- किस्में
ब्लूबेरी की दो किस्में रेबिटआई ब्लूबेरी और हाईबश ब्लूबेरी है। इनमें में 3 अलग-अलग प्रकार के ब्लूबेरी शामिल हैं। रेबिटआई ब्लूबेरी में प्रीमियर, टिफब्लू, पाउडरब्लू प्रकार और हाईबश ब्लूबेरी में क्रोएशिया, जर्सी और मर्फी प्रकार की बेरीज शामिल हैं।
- नुकसान
वैसे तो ब्लूबेरी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। फिर भी जिन्हें इससे एलर्जी है और जो रक्त विकार से पीडि़त हैं, उन्हें इसके सेवन से परहेज करना चाहिए। इसीलिए इसे खाने से पहले अपने डॉक्टर से बात जरूर कर लें।
- सिंचाई
ब्लूबेरी की पहली सिंचाई पौध रोपने के तुरंत बाद और उसके बाद हफ्ते में एक बार करनी चाहिए।
- उर्वरक
ज्यादा उपज प्राप्त करने के लिए इसमें जैविक खाद जैसे की गोबर या वर्मीकम्पोस्ट दें। इसमें अमोनियम सल्फेट, अमोनियम नाइट्रेट, सल्फर लेपित यूरिया वसंत में पत्ती बढऩे से पहले दें।
- खरपतवार से सुरक्षा
ब्लूबेरी को खरपतवार से बचाना आवश्यक है। अन्यथा खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्वों को अवशोषित कर लेते हैं और फसल की उपज प्रभावित हो सकती है। इसलिए खरपतवार हटाने समय समय पर निंदाई गुड़ाई करते रहना चाहिए।
- कीट और रोगों से रोकथाम
वैसे तो इसकी खेती में कोई खास रोग नहीं होता है। फिर भी पक्षियों से इसकी सुरक्षा करना आवश्यक है, अन्यथा पक्षी इसकी फसल को खा लेते हैं।