मूंगफली की खेती मिट्टी, खेत की तैयारी, भूमि का उपचार, किस्में, उर्वरक, बोआई का समय और विधि, खरपतवार से सुरक्षा, सिंचाई कीटों व रोगों से बचाव, भंडारण

फायदेमंद है मूंगफली की खेती

वैसे तो प्राय: सभी फली वाली फसलों की खेती फायदेमंद होती है, लेकिन इसमें भी यदि मूंगफली की बात की जाए तो क्या कहने। मूंगफली की फसल बहुु-उपयोगी होती है। इसके कच्चे फल तो मार्केट में बिकते ही हैं, साथ ही इसका तेल भी निकाला जाता है। जो खाद्य तेल के रूप में काफी लोकप्रिय है। वहीं आपको बता दें कि उत्तरप्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूँगफली की खेती का प्रचार-प्रसार जनपद फर्रूखाबाद मैनपुरी हरदोई, अलीगढ़ आदि जिलों में बढ़ा है क्योंकि खरीफ की अपेक्षा जायद में कीड़े आदि बीमारियों का प्रकोप कम होता है।

मूँगफली की खेती के लिए बलुअर, बलुअर दोमट या हल्की दोमट भूमि अच्छी रहती है। ग्रीष्मकालीन मूँगफली के लिये भारी दोमट भूमि का चयन करना उपयुक्त नहीं होता। ग्रीष्मकालीन मूँगफली के लिए खेत की तैयारी अच्छी प्रकार कर लेनी चाहिए। आलू तथा सब्जी मटर की खेती के बाद मूँगफली उगाई जाने की दशा में गहरी जुताई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। कम अवधि में पकने वाली तथा गुच्छेदार प्रजातियों का चयन ग्रीष्मकालीन मूँगफली की खेती के लिये कर सकते है।

खेत में पर्याप्त नमी के लिए पलेवा देकर ग्रीष्मकालीन मूँगफली की बुवाई करना उचित होगा। यदि खेत मे उचित नमी नही हैं तो मूँगफली का जमाव अच्छा नही होगा जो उपज को सीधा प्रभावित करेगा। गुच्छेदार प्रजातियों ग्रीष्मकालीन खेती के लिए उत्तम रहती है। ग्रीष्मकालीन मूँगफली की अच्छी उपज लेने के लिए अच्छा होगा कि बुवाई मार्च के प्रथम सप्ताह में अवश्य समाप्त कर लें। ग्रीष्मकालीन मूँगफली की खेती में फलियों को सुखाना एक महत्वपूर्ण कड़ी है। फलियों की सुखाई पेड़ों की छाया में करें

स्वाद और सेहत से भरपूर मूंगफली की खेती…

स्वाद और सेहत से भरपूर मूंगफली को भला कौन भूल सकता है। मूंगफली हर घर के किचन में अपनी उपस्थिति जरूर दर्ज कराता है। इसके अलावा मूंगफली के लड्डू, पापड़ी और अन्य के व्यंजन भी बनाए जाते हैं। मूंगफली का तेल भी बनता है, जो स्वाद में बेहतरीन होता है। इसके साथ ही आपको बता दें कि मूंगफली के तेल 45 से 55 प्रतिशत, प्रोटीन 28 से 30 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेठ 21-25 प्रतिशत, विटामिन बी समूह, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस, पोटाश जैसे खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। तो चलिए आज हम बात करते हैं मूंगफली की खेती के बारे में…

मिट्टी
वैसे कहा जाता है कि मूंगफली की खेती सभी प्रकार की मिट्टियों में की जाती है। फिर भी इसकी अच्छी फसल के लिए कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। ध्यान रखें मिट्टी का पीएच मान 6.0 से 8.0 होना चाहिए। इसके साथ ही  जल निकासी का उचित प्रबंध भी होना चाहिए।

खेत की तैयारी
मूंगफली की खेती के लिए आपको खेत की तैयारी मई महीने से ही शुरू करनी होगी।  सबसे पहले खेत की एक जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके 2-3 बार हैरो चलावें जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जावें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल करें जिससे नमी संचित रहें। और आखिरी तैयारी के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर की दर से जिप्सम का उपयोग करना चाहिए।

ऐसे करें भूमि का उपचार
मूंगफली फसल में मुख्यत: दीमक का प्रकोप देखा गया है। इसलिए आखरी जुताई के समय फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान 3 जी से 20-25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से उपचारित कर लें।

किस्में
वैसे तो मूंगफली की कई किस्में बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन मिट्टी के आधार पर विशेषज्ञों से सलाह लेकर आप इसके उन्नत किस्म की खेती कर सकते हैं।

उर्वरक
मूंगफली की अधिक पैदावार के लिए मिट्टी परीक्षण के बाद ही खाद एवं उर्वरक की मात्रा  तय करनी चाहिए। मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद प्रति हैक्टर की दर से खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला देनी चाहिए। उर्वरक के नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में करना चाहिए। जिप्सम की 250 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग बुवाई से पूर्व आखरी तैयारी के समय प्रयोग करें।

बोआई का समय और विधि
मूंगफली की बोआई जून-जुलाई में की जाती है। मूंगफली की कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखना चाहिए। बीज की गहराई 3 से 5 से.मी. रखनी चाहिए।

खरपतवार से सुरक्षा
हर फसल की तरह मूंगफली के फसलों को भी खरपतवार से बचाने समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहें, ताकि फसल अच्छी हो। निराई-गुड़ाई से जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है।

सिंचाई
वैसे तो वर्षा आधारित फसल होने के चलते मूंगफली को सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन प्रारंभिक वानस्पतिक वृद्धि अवस्था, फूल बनना, अधिकीलन (पैगिंग) व फली बनने की अवस्था सिंचाई आवश्यक है। अत: इस समय सिंचाई अवश्य करें।

कीटों व रोगों से बचाव
मूंगफली की फसलों में सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक का प्रकोप ज्यादा देखा गया है। अत: विशेषज्ञों से सलाह लेकर इनका उपचार कर लें। मूंगफली में मूंगफली में टक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग का प्रकोप होता है।  इन रोगों का लक्षण दिखते ही इनका उपचार अवश्य करें।

भंडारण
मूंगफली की फसलों के भंडारण के समय खास ध्यान रखें। क्योंकि इस दौरान कीट पतंग मूंगफली के दानों को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। अत: इनसे सुरक्षा अवश्य करें।