कई फसल ऐसे होते हैं, जो पौष्टिक होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। इसलिए इसकी खेती दोतरफा फायदे वाली होती है। इसमें भी एक नाम कलौंजी यानी मंगरैला का है। कलौंजी का उपयोग औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण कई प्रकार की आयुर्वेदिक दवाईयों में भी किया जाता है। तो आइए, आज जानकारी लेते हैं कलौंजी के खेती के बारे में…
1. मिट्टी
कलौंजी की खेती पथरीली भूमि में तो बिल्कुल भी नहीं की जा सकती है। इसलिए इसकी खेती के लिए जीवाश्म वाली बलुई दोमट मिट्टी को सबसे उपयुक्त माना गया है। लेकिन खेत में पर्याप्त जल निकासी के साथ-साथ मिट्टी का पीएच मान 6-7 होना चाहिए, तभी फसल आपको अच्छी मिलेगी।
2. किस्में
बाजार में वैसे तो कलौंजी की कई किस्में मौजूद हैं। लेकिन एन.आर.सी.एस.एस.ए.एन.-1, आजाद कलौंजी, पंत कृष्णा जैसी किस्में अच्छी मानी जाती है।
3. खेत की तैयारी
फसल लगाने से पहले खेत की तैयारी काफी जरूरी होती है। इसलिए कलौंजी की खेती के पहले खेत की दो या तीन जुताई कर लें और अंतिम जुताई के समय गोबर खाद अवश्य डालें। फिर पाटा चलाकर मिट्टी को समतल बना लें।
4. तापमान
कलौंजी की खेती के लिए किसी प्रकार की जलवायु या तापमान की आवश्यकता नहीं होती है बल्कि सर्दी और गर्मी दोनों तापमान बराबर होने चाहिए। यानी पौधे के विकसित होने के लिए ठंड और पकने के समय तेज गर्मी दोनों आवश्यक है। इसे रबी की फसल माना गया है। इसलिए कम बारिश की जरूरत होती है।
5. सिंचाई
कलौंजी के पौधों को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके पौधों के विकास के लिए सामान्य सिंचाई ही उपयुक्त है। लेकिन बीज लगाने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर लें। दूसरी सिंचाई अंकुरण के समय। इसके बाद पौधे के विकास के लिए दो-दो हफ्ते में सिंचाई करते रहें।
6. बीज बोआई की विधि और तकनीक
कलौंजी के बीजों को रोपण से पहले क्यारी तैयार कर लें। बीजों की रोपाई खेत में छिटकवा विधि से की जाती है। बीज को बुआई से पहले थीरम से उपचारित कर ले। इसकी रोपाई मध्य सितम्बर से मध्य अक्टूबर तक की जाती है।
7. उर्वरक
जुताई के वक्त लगभग 10 से 12 गाड़ी गोबर की खाद तथा रासायनिक खाद के रूप में दो से तीन बोर एन.पी.के. प्रति हेक्टेयर को खेत में आखिरी जुताई के वक्त देनी चाहिए।
8. रोगों से बचाव
कलौंजी में कटवा इल्ली का प्रकोप देखा गया है। ये अंकुरण के बाद किसी भी अवस्था में लग सकता है। इसलिए यदि ये दिखाई दें तो क्लोरोपाइरीफास का छिड़काव करें। इसके साथ ही जड़ गलन भी इसमें देखा गया है। इसलिए समय-समय पर पौधों की देखभाल करते रहें।
9. खरपतवार से सुरक्षा
कलौंजी के फसल को खरपतवार से बचाना भी जरूरी है। अन्यथा मिट्टी से पोषक तत्वों को खरपतवार खींच लेते हैं और फसल प्रभावित हो जाता है। इसलिए इसके नियंत्रण के लिए निंदाई-गुड़ाई समय-समय पर करते रहें।
10. पैदावार
कलौंजी की फसल पौध रोपण के 4 से 5 महीने में तैयार हो जाती है। तब इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। पौधों को जड़ से उखाड़ कर कुछ दिन तेज धूप में रखें फिर दानों को निकाल लें। कलौंजी की औसतन पैदावार 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से पाई जाती है। जिसका बाजार में अच्छा-खासा दाम मिलता है।
पौष्टिकता के साथ औषधीय गुणों से भरे कलौंजी की खेती…मुनाफे वाली
