रबी की फसलों में फूल बनने या बालियां फलियां बनते समय शीतकाल में जब तापमान शून्य डिग्री से नीचे सेल्सियस के नीचे गिर जाता है तथा हवा रूक जाती है, तो रात्रि में पाला पडऩे की संभावना रहती है, जिसमें पौधे पर उपस्थित नमी बर्फ का रूप ले लेती है और पौधे की पोषक तत्व ग्रहण करने की क्षमता खत्म हो जाती है तथा धीरे-धीरे पौधा सूख जाता है, जिससे फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन दिनों जिले में न्यूनतम तापमान लगभग 4 डिग्री सेल्सियस के आसपास बना हुआ है तथा लगातार शीत लहर भी चल रही है। यदि तापक्रम और गिरता है तो पाला पडऩे की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता।
के बचाव के लिये किसान भाईयों को खेत में सिंचाई कर देनी चाहिये। नमीयुक्त खेत में काफी देर तक गर्मी रहती है और भूमि का तापमान एकदम से कम नहीं होता है। जिस रात में पाला पडऩे की संभावना हो उस दिन शाम को 6 बजे के बीच खेत की उत्तर-पश्चिम दिशा में खेत के किनारे फसल के आस-पास की मेड़ों पर 10.20 फुट के अंतर पर कूड़ा कचरा घास फूस जलाकर धुंआ कराना चाहिए ताकि वातावरण में गर्मी आ जाए। जब पाला पडऩे की संभावना हो उन दिनों सभी प्रकार की फसलों पर 20 से 25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर सल्फर डस्ट या घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से भी पाले के असर को नियंत्रित किया जा सकता है। अगर पाला पड़ गया है तो सुबह-सुबह एक लंबी रस्सी लेकर खेत के दोनों ओर दो व्यक्ति रस्सी पकड़कर इस तरह चले कि रस्सी की रगड़ से पौधे हिल जाए और पौधों पर जमी बर्फ या ओस की बूंदें झड़कर गिर जाए, तो कुछ हद तक पाले के नुकसान से फसलों का बचाव किया जा सकता है।