हमारे देश में परवल के प्रमुख उत्पादक राज्यों में बिहार, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश हैं। वहीं राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, असम तथा महाराष्ट्र में भी इसकी खेती की जाती है, लेकिन कुछ ही क्षेत्रों में। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं परवल की खेती के बारे। कैसे करें इसकी खेती तो होगा व्यवसायिक लाभ… परवल की खेती साल में दो बार की जाती है। परवल की खेती के लिए गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त है। इसे जून में तथा अगस्त में बोई जाती है। वहीं नदियों के किनारे अक्टूबर-नवंबर में परवल की रोपाई की जा सकती है। परवल की खेती के लिए रेतीली अथवा दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन ध्यान रखें कि अच्छी जल निकासी की व्यवस्था होना जरूरी है। क्योंकि इसकी लताएं जल जमाव को सहन नहीं कर पाती। परवल की खेती के लिए देशी हल से तीन बार जुताई कर खेत को तैयार कर लेना चाहिए। इसके बाद पौधे से पौधे की दूरी डेढ़ मीटर रखकर 30 बाई 30 बाई 30 सेमी का गहरा गड्ढा खोदकर उसमें पर्याप्त मात्रा में गोबर खाद मिला लें। परवल की मादा व नर दोनों होते हैं इनकी कटिंग का अनुपात 10:1 हैं। वैसे परवल की दो प्रजातियां प्रमुख हैं- इसमें क्षेत्रीय प्रजातियां और उन्नतशील प्रजातियां शामिल हैं। तो आप अपने क्षेत्र और भूमि के आधार पर इसका चयन कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य प्रजातियां भी हैं, जिसकी खेती आप विेशेषज्ञों से राय लेकर कर सकते हैं। किसी भी फसल की खेती में सिंचाई व उर्वरक की भूमि के आधार पर निर्धारित होती है। वहीं परवल में गोबर की खाद अंतिम जुताई के साथ मिलाएं। पौधरोपण के बाद नमी की आवयश्यकता अनुसार सिंचाई करनी चाहिए। ठंड के दिनों में पखवाड़े भर बाद बाद तथा गर्मियों में 10-12 दिन बाद नियमित सिंचाई करें।
किसी भी फसल की वृद्धि के समय खरपतवार ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए समय-समय पर इसके नियंत्रण के लिए उपचार करते रहे। वहीं निंदाई-गुड़ाई करते रहे। ताकि हवा का नियंत्रण बराबर बना रहे। परवल की फसल को कई प्रकार के कीटों से नुकसान की आशंका बनी रहती है। खासकर फल की मक्खी और फली भ्रंग से। इसलिए इसका उपचार कर लेना चाहिए। फल की मक्खी फलों में छेदकर उनमें अंडे दे देती है, इसलिए फसल सड़ जाते हैं। वहीं फली भ्रंग पत्तियों में छेद कर हानि पहुँचाता है। इसलिए विशेषज्ञों से राय लेकर इसका उपचार करना चाहिए। परवल में फफूंद भी लगते हैं, इससे पत्तियां व तने मुरझा जाते हैं।