कटहल का एक वृक्ष तैयार होने में ही 5 से 6 साल का समय लगता है। इसलिए इसकी देखभाल की खास जरूरत होती है, जब तक पौधा वृक्ष के रूप में ना बदल जाए। कटहल कच्चा या पका, दोनों उपयोगी होता है। इसकी बाजार में डिमांड भी काफी होती है। इसके बाग यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल और दक्षिण भारत के कई राज्यों में होती है। इसकी किस्में रसदार, खजवा, सिंगापुरी, गुलाबी, रुद्राक्षी आदि प्रमुख हैं।
कटहल शुष्क और नम, दोनों प्रकार की जलवायु में उगाया जा सकता है। प्राय: दोमट और बलुई दोमट में इसका उत्पादन ज्यादा अच्छा होता है, इसलिए इसी मिट्टी में इसकी खेती की जाती है।
कटहल की खेती के वक्त पौधों की दूरी का खास ध्यान रखना पड़ता है। ताकि पौधा आसानी से पेड़ों में तब्दील हो तो उसे फल-फूलने में किसी प्रकार की दिक्कत ना हो।
विधियां
कटहल की खेती के लिए मुख्यत: दो प्रकार की विधियां आजमाई जाती है। इसमें पहली गूटी विधि और दूसरा ग्राफ्टिंग विधि है। गूटी विधि में पौधों को पेड़ की डालियां पर तैयार किया जाता है। वहीं ग्राफ्टिंग में कटहल के पेड़ से कलम तैयार कर इसकी खेती की जाती है। इन दोनों ही प्रकार के लिए आप कृषि वैज्ञानिकों से सलाह लेकर अच्छा उत्पादन कर सकते हैं।
कटहल की खेती के लिए बारिश का समय सबसे अच्छा माना जाता है। इसे जून-जुलाई के महीने में ही लगाना चाहिए। ताकि पौधों का विकास जल्दी हो सके।