दलहनी फसलें प्रोटीन का अच्छा स्रोत होती है। इसलिए इसकी खेती को काफी महत्व दिया जाता है। दलहनी फसलों में मुख्यत: अरहर, चना, मटर, मसूर और मूंग आदि शामिल हैं। इसमें में यदि हम बात करें तो अरहर की दाल का  उपयोग बहुतायत में किया जाता है। इसलिए यह किसानों के लिए फायदेमंद है। कहा जाता है कि इसमें 20-21 प्रतिशत तक प्रोटीन पाया जाता है। शुष्क क्षेत्रों में अरहर की बोआई को प्राथमिकता दी जाती है। हमारे देश में महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, कर्नाटक एवं आंध्रप्रदेश प्रमुख दलहन उत्पादक राज्य हैं। दलहन के खेत की तैयारी, मिट्टी पलट हल से एक गहरी जुताई के उपरांत 2-3 जुताई हल अथवा हैरो से करना उचित रहेगा।
अरहर की खासियत-
अरहर की खासियत यह है कि यह अकेली या दूसरी फसलों के साथ भी बोई जा सकती है। ज्वार , बाजरा, उर्द और कपास, अरहर के साथ बोई जाने वाली प्रमुख फसलें हैं।
बलुई दोमट और दोमट भूमि बेहतर
अरहर की खेती के लिए बलुई दोमट और दोमट भूमि अच्छी होती है। इसके अलावा जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए तथा हल्के ढालू खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं। ध्यान रहें लवणीय तथा क्षारीय भूमि में इसकी खेती सफलतापूर्वक नहीं की जा सकती है।
बोआई का समय
अरहर की फसलें की कई किस्में देर से पकती हैं, इसलिए इसकी  बुआई जुलाई के महीने में की जा सकती है। वहीं जल्दी पकने वाली अरहर को इससे एक महीने पहले यानी जून में बोया जा सकता है। जिससे यह फसल नवम्बर के अन्त तक पक कर तैयार हो जाए। इसके साथ ही मेड़ों पर बोने से अच्छी उपज मिलती है।
सिंचाई
खेत में कम नमी की अवस्था में एक सिंचाई फलियां बनने के समय अक्टूबर माह में अवश्य कर देनी चाहिए। देर से पकने वाली प्रजातियों में दिसम्बर या जनवरी माह में सिंचाई करना उचित है।
कीट प्रकोपों से सुरक्षा
इसके अलावा अरहर की फसलों में कीट प्रकोप की भी आशंका रहती है। इसमें मुख्यत : पत्ती लपेटक कीट, फली की मक्खी, चने का फली बेधक कीट जैसे कीट जल्दी पनपते हैं, इसलिए कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार इसमें समय-समय कीट नियंत्रण के उपाय भी करने चाहिए। ताकि अरहर की खेती से अच्छा उत्पादन हो सके।