तेजपत्ता औषधीय गुणों से भरपूर होने के चलते इसकी खेती की ओर आजकल किसान उन्मुख होते जा रहे हैं। इसके साथ ही तेजपत्ता को मसाले और सब्जियों या दूसरे व्यंजनों में भी खासा इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि इसकी खुशबू ही ऐसी होती है कि सभी इसे पसंद करते हैं। वैसे आपको बता दें कि इसके मुख्य उत्पादक देश भारत, रूस, मध्य अमेरिका, इटली, फ्रांस, उत्तर अमेरिका और बेल्जियम आदि है। भारत में इसका उत्पादन मुख्यत: उत्तरप्रदेश, बिहार, केरल, कर्नाटक के अलावा उतरी पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है। तो आइए आज जानकारी लेते हैं तेजपत्ता की खेती के बारे में…
सब्सिडी
सबसे पहले बात करते हैं इसकी सब्सिडी के बारे में। इसकी खेती करने वाले किसानों को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की ओर से 30 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। ताकि किसान इसकी खेती के लिए ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहित हों और कमाई के साथ-साथ अपनी जीविकापार्जन के साधन भी बनाते जाएं।
जलवायु
कहा जाता है कि इसकी खेती सबसे पहले भूमध्य और इसके पास के देशों में होती थी। लेकिन लगातार बढ़ते मांग ने इसे अन्य देशों में भी प्रोत्साहित किया और आज कई देशों में इसकी खेती की जाती है। तेजपत्ता की खेती के लिए उष्ण जलवायु अथवा हल्के ठंडे वाले क्षेत्र काफी उत्तम माने जाते हैं।
मिट्टी
तेजपत्ता को हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन यह मुख्यत: ऊसर और पथरीली जमीन की खेती है। क्योंकि इसके वृक्ष 30 फीट से ऊपर ही होते हैं। लेकिन फिर भी इसके लिए मिट्टी का चयन ऐसा करें, जिसका पीएच मान 6-8 के मध्य हो। मिट्टी की अच्छी तरह से जुताई करके सूखने दें। फिर जैविक खाद मिलाकर कम से कम 15 फीट की दूरी पर गढ्डे तैयार कर इसकी बीजों को लगाएं।
रोग
वैसे तो तेजपत्ता में कीट या रोग बहुत कम ही लगते हैं। और लग भी जाए तो ये साधारण कीट-पतंग ही होते हैं, जैसे एफिड्स, हार्ड शैलेड स्केल, माईट्स आदि। इनसे बचाव के लिए आप पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव कर सकते हंै।
खरपतवार से सुरक्षा
हर फसल की भांति इसमें भी खरपतवार की संभावना बनी रहती है। खरपतवार हर फसल के साथ उग आते हैं और मिट्टी से भरपूर पोषक तत्वों का उपयोग कर पौधों के विकास को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए समय-समय पर खरपतवार की निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। छटाई करने से पेड़ों का विकास पूरी तरह होता है। अत: समय-समय पर छटाई आवश्यक है।