सब्जियों में जब तक तेजपत्ता का तकड़ा ना लगे, तब तक स्वाद नहीं बढ़ता, ऐसा सभी मानते हैं। मसालों में तेजपत्ता अहम भूमिका निभाता है। इसके अलावा तेजपत्ता का आयुर्वेदिक महत्व भी काफी है। यह औषधीय गुणों से भी भरपूर होता है, वजन घटाने के लिए लोग चाय में तेजपत्ता तथा दालचीनी का उपयोग करते हैं। औषधी महत्व के चलते तेजपत्ता की खेती भी आजकल व्यापक पैमाने पर होती है। तेजपत्ता की खेती बहुत ही आसान है, वहीं कमाई भी भरपूर होती है। इसके मुख्य उत्पादक देश भारत, रूस, मध्य अमेरिका, इटली, फ्रांस, उत्तर अमेरिका और बेल्जियम आदि है। तो चलिए आज हम बात करते हैं तेजपत्ता की खेती के बारे में…

1. जलवायु

तेजपत्ता की खेती के लिए उष्ण जलवायु आवश्यक है। इसके साथ ही हल्के ठंड वाले क्षेत्रों में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसके पेड़ों की अधिकतम लंबाई 40 से 50 फीट तक हो सकती है।  

2. मिट्टी

तेजपत्ता को ऊसर और पथरीली जमीनों पर उगाया जा सकता है। लेकिन आपको बता दें कि तेजपत्ता की खेती आप किसी भी प्रकार की मिट्टी में कर सकते हैं, लेकिन मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए। इसके साथ ही मिट्टी सूखी और कार्बनिक हो।

3. तैयारी

तेजपत्ता के पेड़ 40 से 50 फीट तक लंबे हो सकते हैं, इसलिए इसके रोपण के समय गड्ढों के बीच पर्याप्त दूरी होनी चाहिए। ताकि पौधों को बढ़वार के लिए पर्याप्त स्थान मिल सके।

4. कीट एवं रोग

वैसे देखा गया है कि तेजपत्ता औषधी गुणों से भरपूर होता है। इसलिए इसमें कीट और रोग कम ही लगते हैं। फिर भी इसमें एफिड्स, हाई शैलेड स्केल और माईट्स आदि कीट लग सकते हैं। यदि इनके लक्षण दिखाई दे तो आप पौधो पर नीम के तेल का छिड़काव कर सकते हैं।

5. खरपतवार से सुरक्षा

पौधरोपण के बाद पौधों के समुचित विकास के लिए खरपतवार से सुरक्षित करना जरूरी है। अन्यथा खरपतवार मिट्टी से आवश्यक पोषक तत्वों को सोख लेते हैं और पौधों की बढ़वार प्रभावित हो सकती है।

6. खाद

तेजपत्ता के पौध रोपण से पहले ही खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला लें। साथ ही समय-समय पर पौधों की देखभाल करते रहें।

7. सब्सिडी

आपको बता दें कि तेजपत्ता की खेती को बढ़ावा देने सरकार राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की ओर से किसानों को 30 प्रतिशत अनुदान भी दिया जाता है। तो हां ना, तेजपत्ता की खेती में मुनाफा ही मुनाफा।

तेजपत्ता की खेती के लिए मिट्टी और मौसम…

तेजपत्ता का मसाले और सब्जियों या दूसरे व्यंजनों में भी खासा इस्तेमाल किया जाता है। क्योंकि इसकी खुशबू ही ऐसी होती है कि सभी इसे पसंद करते हैं। औषधीय गुणों से भरपूर तेजपत्ता की खेती आजकल हर क्षेत्रों में की जाने लगी है। भारत में इसका उत्पादन मुख्यत: उत्तरप्रदेश, बिहार, केरल, कर्नाटक के अलावा उतरी पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि तेजपत्ता में कीट या रोग बहुत कम ही लगते हैं। और लग भी जाए तो ये साधारण कीट-पतंग ही होते हैं, जैसे एफिड्स, हार्ड शैलेड स्केल, माईट्स आदि। इनसे बचाव के लिए आप पौधों पर नीम के तेल का छिड़काव कर सकते हंै।

तेजपत्ता की खेती के लिए उष्ण जलवायु अथवा हल्के ठंडे वाले क्षेत्र काफी उत्तम माने जाते हैं। तेजपत्ता को हर प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है। लेकिन यह मुख्यत: ऊसर और पथरीली जमीन की खेती है। क्योंकि इसके वृक्ष 30 फीट से ऊपर ही होते हैं। लेकिन फिर भी इसके लिए मिट्टी का चयन ऐसा करें, जिसका पीएच मान 6-8 के मध्य हो। मिट्टी की अच्छी तरह से जुताई करके सूखने दें। फिर जैविक खाद मिलाकर कम से कम 15 फीट की दूरी पर गढ्डे तैयार कर इसकी बीजों को लगाएं। हर फसल की भांति इसमें भी खरपतवार की संभावना बनी रहती है। इसलिए समय-समय पर खरपतवार की निंदाई-गुड़ाई करते रहना चाहिए। छंटाई करने से पौधों का विकास पूरी तरह होता है।

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