मूली खेती
मूली खेती

ठंडी जलवायु की फसल है मूली…जानें कैसे होती है खेती…

मूली की खूबियों के बारे में आप तो सभी जानते ही हैं। ठंड के समय खासकर इसकी मांग काफी बढ़ जाती है और सलाद में इसका बहुतायत उपयोग होता है। इसके अलावा मूली की सब्जी और मूली के परांठे भी बनाए जाते हैं। क्योंकि मूली पचने में आसान और पौष्टिक तत्वों से भरपूर होती है, इसलिए लोग इसे पसंद भी खूब करते हैं। तो चलिए आज हम बात करते हैं मूली की खेती के बारे में…

मिट्टी
वैसे तो मूली की खेती के लिए किसी विशेष प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। फिर यदि आप इसे रेतीली दोमट मिट्टी में लगाएं तो फसल की पैदावार अच्छी होने के साथ-साथ स्वाद भी बरकरार रहता है।

ऐसे करें तैयारी
मूली की खेती के लिए आवश्यक है कि भूमि की गहरी जुताई करने की। पहली जुताई के बाद 2-3 बार कल्टीवेटर चलाकर भूमि को समतल करना ज्यादा अच्छा है।

जलवायु
वैसे तो कहा जाता है कि मूली की खेती के लिए ठंडी जलवायु उपयुक्त होती है। यानी इसकी अच्छी खेती के लिए कम तापमान की जरूरत होती है। लेकिन यदि तापमान ज्यादा भी हो मूली की फसल इसे सह सकती है, लेकिन अत्यधिक तापमान से इसकी फसल को नुकसान हो सकता है।

किस्में
मूली की बाजार में वैसे तो कई किस्में चलन में हैं। लेकिन यदि आप पूसा चेतकी, जापानीज़ व्हाइट, पूसा हिमानी, पूसा रेशमी, जोनपुरी मूली, जापानी सफेद, कल्याणपुर, पंजाब अगेती, पंजाब सफेद, व्हाइट लौंग, हिसार मूली एवं संकर किस्में आदि प्रमुख मानी गई है।

उर्वरक
मूली की खेती के लिए 150 क्विंटल गोबर की खाद या कम्पोस्ट, 100 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो स्फुर तथा 100 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। गोबर की खाद, स्फुर तथा पोटाश भूमि की तैयारी के समय और नाइट्रोजन दो भागों में बोने के 15 और 30 दिन बाद उपयोग करना चाहिए।

एक हेक्टेयर में बीज की मात्रा
मूली के बीजों की मात्रा उसकी किस्में, बोने की विधि और बीज के आकार पर निर्भर करती है। और एक हेक्टेयर में अधिकतम 10 किलोग्राम बीज की बोनी की जा सकती है।

बोआई का समय
आजकल मूली की फसल ज्यादा लाभ के लिए सालभर की जाती है। लेकिन यदि समय की बात करें तो सितंबर से जनवरी तक मौसम मूली की फसल के लिए उपयुक्त होता है।

विधि
मूली की खेती मुख्यत: दो प्रकार से की जाती है- पहला कतारों में और दूसरा मेड़ों पर।  कतारों पर यदि आप मूली की खेती करना चाहते हैं तो बीजों को ज्यादा से ज्यादा 5 सेमी गहराई पर बोएं और कतार से कतार की दूरी पर्याप्त रखें।  इसके साथ ही मेड़ों पर खेती के लिए भी क्यारियों का खास ख्याल रखने की जरूरत होती है।

सिंचाई
मूली चूंकि ठंड के मौसम की फसल है, अत: इसकी सिंचाई की जरूरत नहीं होती है। लेकिन यदि भूमि में नमी की कमी रह गई हो तो आप आवश्यकता अनुसार सिंचाई कर सकते हैं। गर्मी में हफ्ते भर का तो सर्दियों में कम से कम 14 दिन का अंतराल सिंचाई के लिए अवश्य रखें।

कीट और रोग
मूली में माहू, जो पत्तियों का रस चूसते हैं, का ज्यादा प्रकोप देखा जाता है। इसलिए
इसके नियंत्रण हेतू मैलाथियान 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से लाभ होता है। इसके अलावा रोयेंदार सूंडी और अल्टेरनेरिया झुलसा रोग भी इसकी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है। अत: इनकी रोकथाम अवश्य करें।

उपज
मूली की औसत उपज 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के आसपास हो सकती है। लेकिन यह भी मूली की किस्में और लगाने की विधि पर निर्भर होता है। वहीं मूली की जड़ें विकसित होने और मुलायम अवस्था भी इसे तोड़ लेना चाहिए। ज्यादा कड़े हो जाने पर इसका वाजिब दाम नहीं मिल पाता है।