लगभग 20 वर्ष पूर्व रजूर के रामचंद्र पाटीदार ने पिता से खेती किसानी का काम अपने हाथों में लिया था। विरासत में मिली 8 हेक्टेयर की भरपुर उपजाऊ भूमि पर रामचंद्र ने अधिक उत्पादन और प्रतियोगात्मक खेती शुरू की। अधिक उत्पादन के चक्कर में रामचंद्र ने मिर्च की फसल के लिए अंधाधुंध रासायनिक कीटनाषकों और उर्वरको के सहारे उम्मीद के अनुरूप 10 वर्षो तक लाभ लिया। भूमि की उर्वरा शक्ति को नजरअंदाज करने के बाद मिर्च और कपास का उत्पादन घटने लगा तो रामचंद्र और अधिक रासायनिक कीटनाषको और उर्वरको का उपयोग करने लगा। अगले 2 वर्ष तक उत्पादन अत्यंत कम हुआ। इस बात से रामचंद्र परेषान रहने लगा, 12 वर्षो में रामचंद्र अपने क्षेत्र में मिर्च उत्पादन में सिरमोर किसान के तौर पहचान स्थापित कर ली थी। उत्पादन कम हो जाने के बाद एक समय ऐसा आया जब रामचंद्र अपने खेत में जाने से कतराने लगा। इस बीच मोठापुरा के अपने रिष्तेदार जैविक खेती के प्रेरक दिनेष से खेती किसानी की बात हुई। दिनेश पाटीदार ने ऐसे में रामचंद्र को जैविक नुस्खें बताए।
2012 में रामचंद्र ने फिर नए सीरे से खेती करने का निर्णय लिया और मिक्स जैविक खेती की ओर रूख किया। इस दौरान रामचंद्र ने 75:25 के अनुपात में रासायनिक और जैविक के तौर पर धीरे-धीरे खेती किसानी का तरीका बदला। इसके बाद से रामचंद्र ने रासायनिक खेती को कम करते-करते वर्ष 2017 तक 25:75 के अनुपात में जैविक और रासायनिक का उपयोग किया है। अब वे 3 वर्षो से 100 प्रतिशत रूप से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रहे है। रामचंद्र बताते है कि वर्ष 2018 में उन्होंने 1 एकड़ में 16 किलो मुंगफली से 24 क्विंटल का उत्पादन लिया। इसी साल 1 पैकेट कपास से 18 क्विंटल उत्पादन हुआ। इसके बाद से रामचंद्र ने जैविक खेती के लाभ से परिचित हो गए। उन्होने पिछले 8 वर्षो में वेस्ट डीकंपोसर, गौकृपा अमृतम, जीवामृत, धन जीवामृत, बीजामृत और आच्छादन से भूमि को उपजाऊ बना लिया। रामचंद्र अपने खेत से अनाज के सिवा कुछ भी नहीं निकालते चाहे वो मक्का, गेहूं हो या मुंगफली का बचा हुआ हिस्सा हो सब जमीन में रहने देते है।
इस समय रामचंद्र अपने खेत में वीएनआर और पिंक अमरूद के तीन-तीन हजार पौधों के साथ अंतरवर्ती फसल का अच्छा उत्पादन करने में लगे है। रामचंद्र ने वर्ष 2019 और 2020 दो वर्षो में 400 क्विंटल अमरूद से लगभग 18 लाख रूपये का मुनाफा लिया है। अब वे अमरूद के बीच अदरक, चना और गेहूं की फसल ले रहे है। 8वीं पास 40 वर्षीय रामचंद्र ने खेती में अवसर को लेकर जबलपुर के कृषि महाविद्यालय में दाखिला कराया है। रामचंद्र आज पूरी तरह से रासायनिक खेती को त्याग कर दिया है वे साफ तौर पर प्राकृतिक खेती और उद्यानिकी फसलों की खेती करने लगे है। अब रामचंद्र जैविक नुस्खों से भूमि की खोई उर्वरा शक्ति को फिर से पा लिया और उनके जीवन में प्रसन्नता लौट आई है।