फसलों में रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से होने वाले दुष्परिणामों से हम सभी भलीभांति परिचित हैं। आमजन से लेकर पशुओं और मिट्टी से लेकर पेड़-पौधों के लिये यह काफी नुकसानदायक है। इससे न केवल हमारे स्वास्थ्य को नुकसान हो रहा है, बल्कि खेतों की उर्वरा शक्ति क्षीण हो रही है। साथ ही पर्यावरण भी दूषित हो रहा है। इसीलिये कई किसान अब धीरे-धीरे रासायनिक खेती के बजाय जैविक खेती को अपनाने लगे हैं। इन्हीं किसानों में अब उज्जैन की बडऩगर तहसील के ग्राम सरसाना में रहने वाले 40 वर्षीय किसान राजेश त्रिवेदी पिता गोवर्धनलाल त्रिवेदी भी शामिल हो गये हैं।
राजेश के पास लगभग आठ से नौ बीघा कृषि भूमि है। उनके परिवार में माता-पिता, दो बच्चे व पत्नी है। राजेश कई सालों से रासायनिक खेती करते आ रहे थे, लेकिन धीरे-धीरे इसके दुष्परिणाम उनके सामने आने लगे। रासायनिक खाद से उगे अनाज खाने के कारण राजेश और उनके परिवार के लोगों को अक्सर कब्ज, एसिडिटी और पाचन से जुड़ी अन्य समस्याएं होने लगी थी। यहां तक कि रासायनिक खाद से उगा चारा खाने से उनके घर की गाय-भैंस के दूध में भी पौष्टिकता की कमी होने लगी थी। साथ ही रासायनिक खाद के कारण जमीन की कठोरता भी बढ़ती जा रही थी।
राजेश के मन में आया कि यदि अब भी रासायनिक खाद के प्रयोग पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आगे चलकर समस्या और विकट हो सकती है। इसलिये राजेश ने नवाचार करते हुए जैविक खेती को पुन: प्रारम्भ करने का फैसला किया। अभी वर्तमान में राजेश सिर्फ एक बीघा में जैविक खेती कर रहे हैं। इसमें वे गोभी, बैंगन और कुछ अन्य सब्जियां तथा घर के पशुओं के लिये चरी उगाते हैं। इसके सुखद परिणाम अब धीरे-धीरे आने लगे हैं। जैविक खाद के प्रयोग से उगाई गई सब्जियां अपेक्षाकृत अधिक स्वादिष्ट और पोषण से भरपूर हैं। राजेश इससे काफी प्रसन्न हैं और वे अब जैविक खेती के दायरे को और बढ़ाना चाहते हैं। राजेश ने अपने खेत में ही अब घर के पशुओं के गोबर और नरवाई को जलाने के स्थान पर उसका उपयोग खाद बनाने के लिये प्रारम्भ कर दिया है। आगे चलकर वे खेत में ही बायोगैस प्लांट लगाने का विचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि प्रकृति के निकट हम जितना रहेंगे, उतना ही लाभ हम सबको प्राप्त होगा।