जैतुन की खेती और व्यापारिक लाभ
जैतुन की खेती और व्यापारिक लाभ

जैतुन बहुउपयोगी पौधा है। इसकी खेती प्राय: भूमध्यसागरीय, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, उत्तर और दक्षिण अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका, भारत सहित कई देशों में की जाती है।  जैतुन का इस्तेमाल तेल, सौन्दर्य प्रसाधनों और दवाइयों के निर्माण के लिए किया जाता है, इसलिए इसका महत्व काफी है। और व्यापारिक दृष्टिकोण से भी इसकी खेती अच्छे मुनाफे वाली है। इसलिए इसकी खेती आजकल बहुत की जाती है। तो चलिए आज हम बात करते हैं जैतुन की खेती के बारे में….

1. महत्व

जैतून की लकड़ी बहुत सख्त होती है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी बहुत मांग होने की वजह से ये महंगी बिकती है। भारत में राजस्थान के कुछ जिलों में जैसे की बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चुरू और जैसलमेर में इसका उत्पादन होता है। इसे आयुर्वेद में अनेक रोगों में उपयोगी बताया गया है। इसमें मुख्य रूप से आयरन, कैल्शियम, कोलिन, सोडियम, फाइबर, विटामिन इ, विटामिन क, ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सीडेंट के गुण आदि पाई जाती है।

2. किस्में

जैतुन की वैसे तो कई किस्मेें हैं। इसमें भी फ्रटियो, कोराटीना, लैक्सिनो, एस्कोलानो,  कोरनियकी, बरेनिया, पैंडोलीनो, अरबिकुना, फिशोलिना, एस्कोटिराना और पिकवाल आदि प्रमुख है।

3. जलवायु

जैतुन की खेती के लिए 15 से 20 सेल्सियस तापमान वाला क्षेत्र उपयुक्त होता है। इसके साथ ही जहां 100 से 120 सेमी बारिश होती हो, वहां इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। ध्यान रखें बसंत ऋतु से पहले पडऩे वाला पाला इसकी फसल को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए इस बात का खास ध्यान रखना पड़ता है।

4. मिट्टी

जैतुन की खेती के लिए अच्छी अम्लीय, क्षारीय और उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है। और मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 के बीच होना चाहिए। ध्यान रखें सख्त मिट्टी में जैतुन के पौधे विकसित नहीं हो पाते। इसलिए ऐसी मिट्टी में इसकी खेती नहीं की जानी चाहिए।

5. तैयारी

जैतुन की खेती के पहले भूमि की अच्छे से जुताई कर छोटी-छोटी क्यारियां बना लें। इसके साथ ही 2 पौधों की दूरी 6 मीटर रखें। इसके पौधों का रोपण जुलाई-अगस्त में या सिंचाई की सुविधा होने पर दिसंबर-जनवरी में किया जाता है।

6. सिंचाई

जैतुन की पहली सिंचाई पौधरोपण के तुरंत बाद कर लें। उसके बाद जरूरत के हिसाब से सिंचाई करते रहें।

7. छंटाई

जैतुन के पौधों में बारिश के मौसम में टहनियां ज्यादा आ जाती है। इसलिए यह झाड़ीनुमा दिखाई देता है। इसलिए समय-समय पर अतिरिक्त टहनियों को छांट लेना चाहिए।

8. रोग और रोकथाम

जैतुन के पौधों में एन्थ्रेक्नोज नामक रोग का प्रकोप देखा गया है। इसलिए इसकी रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशकों का उपयोग करें।

9. तोड़ाई

जैतुन की तोड़ाई 4 से 5 बार की जा सकती है। लेकिन ध्यान रखें जब जैतुन की तोड़ाई की जाए तो नीचे कपड़ा या पॉलीथीन बिछा कर रखें। और फलों को हाथ से हल्के डंडे का उपयोग कर तोडऩा चाहिए।

10. उत्पादन

एक हेक्टेयर में लगभग 450 से 575 पेड़ लगाए जा सकते हैं जिससे औसतन 20-27 क्विंटल तेल का उत्पादन हो सकता है। जिसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है।

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