भोजन में धनिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा हमारे देश में धनिया एक महत्वपूर्ण मसाला है। इसकी खासियत यह है कि इसके बीज एवं पत्ते दोनों ही उपयोग में आते हैं। इसलिए इसकी मांग भी हर मौसम में बनी रहती है। धनिये का सिर्फ स्वाद ही बेहतरीन नहीं होता बल्कि ये एक औषधीय पौधा भी है जो कई गुणों से युक्त है। इसके सेवन से कई रोगों से छुटकारा मिल सकता है। धनिया पाचन शक्ति बढ़ाने, कोलेस्ट्रॉल लेवल मेंटेन करने, डाइबिटीज, किडनी के साथ कई रोगों में असरदार हो सकता है। इसमें प्रोटीन, वसा, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, मिनरल होते हैं जो इसको पावरफुल बनाते हैं। इसके अलावा हरे धनिया में कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थियामीन, पोटोशियम और विटामिन सी भी पाया जाता हैं. तो चलिए आज हम बताते हैं कि धनिया की खेती कैसे करना चाहिए…
जलवायु
धनिया के अच्छे उत्पादन के लिए शुष्क एवं ठंडा मौसम अनुकूल होता है। यह 20 से 30 डिग्री तापमान में अच्छी तरह अंकरित हो पाता है। लेकिन इसके पौधे पाला को सहन नहीं कर पाते, इसलिए यदि मौसम पाला रहित हो तो सबसे अच्छा है। ऐसे इलाके में धनिया की खेती बहुत अच्छी होती है।
किस्में
वैसे तो धनिया की कई किस्में आजकल बाजार में आ गई हैं। जिससे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लेकर आप फायदा ले सकते हैं। लेकिन फिर भी धनिया की उन्नत किस्में जैसे- हिसार सुगंध, आर.सी.आर-41, कुंभ राज, आरसीआर-435, पंत हरितमा और सिम्पो एस-33 किस्मों की खेती कर आप ज्यादा से ज्यादा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
मिट्टी
धनिया की खेती के लिए आपको दोमट मिट्टी की जरूरत होगी। वैसे अन्य प्रकार की मिट्टियों में इसकी खेती की जा सकती है, लेकिन यदि मिट्टी दोमट हो तो उत्पादन अच्छा होता है। धनिया की खेती करते समय इस बात का ध्यान अवश्य देना चाहिए कि धनिया के पौधे क्षारीय एवं लवणीय भूमि को सहन नहीं कर पाते हैं। इसलिए पीएचमान 6.5-7.5 वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी है।
खाद एवं उर्वरक
धनिया की खेती चूंकि सिंचित और असिंचित दोनों ही स्थितियों में की जा सकती है। इसलिए उर्वरक देते समय इसका ध्यान रखना आवश्यक है। असिंचित और सिंचित धनिया की अच्छी पैदावार हेतु गोबर खाद के साथ नत्रजन, स्फुर, पोटाश तथा सल्फर का उपयोग उपयुक्त मात्रा में करें। वैसे सिंचित अवस्था में अधिकतम 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित में 30 किग्रा प्रति हेक्टेयर बीज पर्याप्त है।
रोगों से रोकथाम
वैसे तो धनिया में कीट प्राय: नहीं के बराबर ही लगते हैं। लेकिन ज्यादा पानी से जरूर धनिया में गलन की समस्या देखी गई है। इसलिए मिट्टी में नमी का खास ध्यान रखना चाहिए। वहीं रोगों से बचाव के लिये बीज को बुआई से पहले उपचारित करना अनिवार्य है। धनिया में मुख्यत: माहू /चेपा (एफिड) कीट का प्रकोप देखा गया है। ये कीट रसचूसक होते हैं। इसलिए कीटनाशक का प्रकोप कर इस पर नियंत्रण करना चाहिए।
बोआई की समय
धनिया की बोआई के लिए रबी मौसम में अक्टूबर और नवंबर महीना सही माना जाता है। धनिया बोने का सबसे उपयुक्त समय 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर है । धनिया की सामयिक बोनी लाभदायक है। हरे पत्तों की फसल के लिये अक्टूबर से दिसम्बर का समय बिजाई के लिये उपयुक्त हं। पाले से बचाव के लिये धनिया को नवम्बर के द्वितीय सप्ताह मे बोना उपयुक्त होता है।
सिंचाई प्रबंधन
धनिया की फसल में सिंचाई आवश्यक होती है। अत: धनिया में पहली सिंचाई पत्ती बनने की अवस्था, दूसरी सिंचाई शाखा निकलने की अवस्था, तीसरी सिंचाई फूल आने की अवस्था तथा चौथी सिंचाई बीज बनने की अवस्था करना चाहिऐ। इसके साथ ही यदि पौधे में नमी की कमी दिखाई दें तो सिंचाई करते रहना चाहिए, अन्यथा पौधे कमजोर हो जाएंगे और फसल अच्छी नहीं हो पाएगी।
रोग प्रबंधन
धनिया में उकठा उगरा विल्ट/रोग का प्रकोप होता है। ये फ्यूजेरियम आक्सीस्पोरम एवं फ्यूजेरियम कोरिएनड्री कवक से फैलते हैं। इसके चलते पौधे मुरझा जाते हैं। इससे बचाव के लिए बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डिजम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें । उकठा के लक्षण दिखाई देने पर कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 2.0 ग्रा./ली. या हेक्जाकोनोजॉल 5 ईसी 2 एमएल/ली. या मेटालेक्जिल 35 प्रतिशत 1 ग्रा./ली या मेटालेक्जिल$मेंकोजेब 72 एम जेड 2 ग्रा./ली. दवा का छिड़काव कर जमीन को तर करें । इसके अलावा धनिया में तनाव्रण/तना सूजन/तना पिटिका (स्टेमगॉल) भी फैलता है। इसके चलते तनों, फूल वाली टहनियों एवं अन्य भागों पर गांठें बन जाती है । इससे बचाव के लिए बुवाई के पूर्व बीजों को कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू पी 3 ग्रा./कि.ग्रा. या ट्रायकोडरमा विरडी 5 ग्रा./कि. ग्रा.बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें । रोग के लक्षण दिखाई देने पर स्टेऊप्टोमाइसिन 0.04 प्रतिशत (0.4 ग्रा./ली.) का 20 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें ।
खरपतवार नियंत्रण
धनिया के पौधों को खरपतवार से बचाना जरूरी होता है। क्योंकि खरपतवार मिट्टी से पोषक तत्वों को सोखकर फसल की पैदावार को प्रभावित करते हैं। इसलिए समय-समय पर निंदाई-गुड़ाई आवश्यक है।
बाजार
धनिया की पत्तियां और बीज दोनों ही उपयोग में लाए जाते हैं। इसलिए सीजन में हरी पत्तेदार धनिया की काफी मांग होती है और बाजार में इसका मूल्य भी काफी होता है। वहीं बीजों का उपयोग भी होता है। इसे सूखाकर इसे साबूत या पीसकर मसाला बनाकर भी बेचा जाता है। बिना धनिया के सब्जियां का स्वाद फीका रहता है। इसलिए हर घर में धनिया आपको अवश्य मिलेगा। इसलिए धनिया की खेती में फायदा ही फायदा है।
कटाई एवं भंडारण
धनिया की कटाई कर उसका भंडारण उपयुक्त तरीके से करना चाहिए। अन्यथा खराब होने का डर रहता है। धनिया बीज का भण्डारण पतले जूट के बोरों में करना चाहिए । जमीन पर लकड़ी के गट्टों पर बोरों को रखना चाहिए। बीज के 4-5 बोरों से ज्यादा एक के ऊपर नही रखना चाहिए।